यूक्रेन संकट ने भारत में महंगी उच्च शिक्षा की ओर ध्यान दिलाया

Edited By ,Updated: 03 Mar, 2022 04:38 AM

ukraine crisis draws attention to expensive higher education in india

विश्व समुदाय के प्रयासों और रूस पर लगाए विभिन्न प्रतिबंधों के बावजूद 2 मार्च को सातवें दिन भी रूसी सेनाओं ने यूक्रेन में तबाही मचाना जारी रखा, जिसके दौरान यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर खारकीव तथा एक अन्य प्रमुख शहर खरसोन पर रूसी सेनाओं का कब्जा हो...

विश्व समुदाय के प्रयासों और रूस पर लगाए विभिन्न प्रतिबंधों के बावजूद 2 मार्च को सातवें दिन भी रूसी सेनाओं ने यूक्रेन में तबाही मचाना जारी रखा, जिसके दौरान यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर खारकीव तथा एक अन्य प्रमुख शहर खरसोन पर रूसी सेनाओं का कब्जा हो गया है तथा भारत के विदेश मंत्रालय ने भारतीयों को तुरंत पैदल ही खारकीव छोड़ देने को कह दिया है। इसी बीच भारत के 4 केंद्रीय मंत्री वी.के. सिंह पोलैंड, हरदीप पुरी हंगरी, ज्योतिरादित्य सिंधिया रोमानिया और मोलदेवा तथा किरेन रिजिजू स्लोवाकिया में फंसे हुए भारतीय छात्रों को भारत लाने में मदद देने के लिए वहां पहुंचे हुए हैं। पिछले 7 दिनों से राजधानी कीव पर कब्जा करने के लिए प्रयत्नशील रूसी सेना अभी तक इसमें तो सफल नहीं हो सकी, परंतु उसने कीव का एक बड़ा हिस्सा तबाह कर दिया है। 

जहां अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 2 मार्च को ही पुतिन को तानाशाह करार देते हुए कहा कि ‘‘हम उसे मनमानी नहीं करने देंगे और उसे इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी’’  वहीं पुतिन ने पहले ही चेतावनी दे रखी थी कि ‘‘किसी ‘बाहरी’ के हमारे बीच आने पर वह होगा जो पहले कभी नहीं हुआ।’’ अब 2 मार्च को एक बार फिर पुतिन ने नाटो को धमकी दे दी है कि यूक्रेन की सहायता करने पर अंजाम बुरा होगा। राजनीतिक प्रेक्षक पुतिन की इस टिप्पणी को परमाणु युद्ध की चेतावनी के रूप में देख रहे हैं। एक ओर यूक्रेन का बच्चा-बच्चा अपने देश की रक्षा के लिए जूझ रहा है तो दूसरी ओर भारतीय छात्र स्वदेश लौटने के लिए रोमानिया और पोलैंड आदि देशों की सीमाओं पर फंसे हुए हैं।

इन हालात के बीच यूक्रेन पर रूस के हमले के छठे दिन खारकीव शहर में शत्रु के हमले से बचने के लिए अपने साथियों के साथ एक बंकर में रह रहा भारतीय छात्र नवीन उस समय मारा गया, जब वह अपने बंकर से मात्र 50 मीटर की दूरी पर स्थित किसी दुकान से अपने तथा अपने साथियों के लिए खाने-पीने का कुछ सामान लेने जा रहा था। 

हालांकि यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों को निकालने के लिए भारत सरकार ने अपने ‘आप्रेशन गंगा’ के अंतर्गत चलाए जा रहे अभियान में निजी विमान सेवाओं के साथ-साथ भारतीय वायुसेना के विमानों को भी शामिल कर लिया है, परंतु अभी भी यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्र सहायता के लिए अपने परिजनों तथा भारत सरकार से गुहार लगा रहे हैं। इनके अनुसार लगातार गोलाबारी के बीच वे अपनी रातें बंकरों में बिता रहे हैं जहां बहुत ठंड है। भोजन और पानी की भी कमी है और कई-कई दिन भूखे रह कर वे सिर्फ पानी पीकर गुजारा करने को विवश हैं। परेशानी के कारण कई छात्रों का मानसिक संतुलन बिगडऩे लगा है तथा कई छात्र बीमार हो गए हैं। रोमानिया की सीमा पर गुरदासपुर का एक छात्र बीमार पड़ा है तथा ‘जोनेशिया’ के अस्पताल के आई.सी.यू. में 3 फरवरी से कोमा में पड़े बरनाला के एक छात्र की 2 मार्च को मौत हो गई है। 

इनके अलावा भी यूक्रेन में फंसे हजारों भारतीय बच्चे कष्ट में हैं जिनके परिजनों का चिंता के मारे बुरा हाल है। भारतीय छात्र-छात्राओं को वहां रहने वाले पाकिस्तानियों तथा कुछ मामलों में वहां की सेना के सदस्यों द्वारा टार्चर करने और लूटने तक के समाचार मिल रहे हैं, जिससे उनको वहां से यथाशीघ्र निकालने की आवश्यकता और भी बढ़ गई है। यूक्रेन, चीन, रूस, जाॢजया और फिलीपींस आदि देशों में मैडीकल शिक्षा सस्ती होने के कारण बड़ी संख्या में भारतीय युवा पढ़ाई के लिए यूक्रेन जाते रहे हैं। जहां भारत में प्राइवेट मैडीकल कालेजों में एक वर्ष की पढ़ाई के लिए 10 से 15 लाख रुपए तक खर्च करने पड़ते हैं, वहीं यूक्रेन में मात्र 3 से 4 लाख रुपए में ही काम चल जाता है। लोगों का कहना है कि यदि भारत में उक्त देशों की तुलना में मैडीकल व अन्य उच्च शिक्षा पर आने वाला खर्च इनसे कम या इनके बराबर हो जाए तो शायद युवाओं को उक्त देशों में पढऩे के लिए जाने की नौबत ही न आए। 

भारत में महंगी मैडीकल शिक्षा के साथ-साथ इस संकट ने इस प्रकार की अप्रत्याशित स्थिति में अन्य देशों में रहने वाले भारतीय समुदाय के लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता की ओर भी ध्यान दिलाया है। अत: केंद्र सरकार को भविष्य के लिए अविलंब रूप से ऐसी रणनीति तैयार करनी चाहिए जिससे इस तरह का खतरा भांपते ही वहां से अपने लोगों को निकालने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाए। यदि यूक्रेन के मामले में भारत सरकार ने समय रहते कार्रवाई की होती तो शायद हमें ये दिन न देखने पड़ते। 

इसी बीच यूक्रेन पर कब्जे के अपने इरादे जाहिर करते हुए जहां रूस ने यूक्रेन को परमाणु हथियार हासिल न करने देने का संकल्प दोहराया है, वहीं अपनी गुप्त योजना के तहत बेलारूस की राजधानी मिंस्क में अपने खासमखास तथा यूक्रेन के पूर्व राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच को भेज दिया है, ताकि यूक्रेन के तख्ता पलट की स्थिति में उसे राष्ट्रपति बनाया जा सके। इस बीच 2 मार्च रात को यूक्रेन और रूस के बीच दूसरे दौर की संभावित वार्ता के अलावा संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के दृष्टिगत कहना मुश्किल है कि यूक्रेन में भावी घटनाक्रम क्या रूप लेने वाला है।—विजय कुमार

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