‘स्वतंत्रता के बाद भी अधर में लटका फुटपाथी बच्चों का भविष्य’

Edited By ,Updated: 31 Mar, 2023 06:19 AM

even after independence the future of street children hangs in the balance

भारत ऐसा देश है जहां सड़कों पर जिल्लत का जीवन बिताने वाले बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है। यह बच्चे स्कूल जाने की उम्र में स्टेशन पर भीख मांगते हैं या जूते पॉलिश करते मिलेंगे। ऐसे बच्चों की संख्या लगभग आठ करोड़ है।

भारत ऐसा देश है जहां सड़कों पर जिल्लत का जीवन बिताने वाले बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है। यह बच्चे स्कूल जाने की उम्र में स्टेशन पर भीख मांगते हैं या जूते पॉलिश करते मिलेंगे। ऐसे बच्चों की संख्या लगभग आठ करोड़ है। ऐसे बच्चे एयर कंडीशन गाडिय़ों को धोते हुए, पसीने में लथपथ चौराहे पर टिशू नैपकिन बेचने वाले, अपार्टमैंट में झाड़ू पोंछा, बर्तन साफ करने वाले ऐसे हजारों की तादाद में मौजूद हैं। 

आजादी के इतने साल बीत गए लेकिन अभी तक ऐसे बच्चों का हम कोई भविष्य तय नहीं कर पाए हैं जो फुटपाथ में पड़े होते हैं और इनके लिए कोई योजनाएं नहीं बनाई गई हैं और यदि कोई योजनाएं तैयार की जाती हैं तो उसकी फाइलें कहीं न कहीं धूल खाती मिलेंगी और फंड के निवाले किसी और के गले में उतर जाते हैं। 

सड़क के बच्चों के लिए यूनेस्को और वल्र्ड बैंक जैसी संस्था द्वारा करोड़ों रुपए का अनुदान बच्चों के विकास और कल्याणकारी योजनाओं के लिए दिया जाता है। इन करोड़ों रुपए के अनुदान का कितने प्रतिशत इन बच्चों पर खर्च होता है कोई नहीं जानता और अनुदान का पैसा कहां जाता है? यह तथ्य किसी से नहीं छुपा है! सड़क पर पल रहे इन बच्चों को अपना पेट पालने के लिए खुद की मशक्कत करनी पड़ती है। उनका और कई तरह से भी शोषण होता है। ऐसे हालातों के शिकार इन बच्चों के लिए किसी भी दिवस के क्या मायने हैं? 

दिवस और आयोजन तो उनके लिए होते हैं जिनका पेट भरा होता है जिन्हें  भावनात्मक सुरक्षा और घर परिवार का प्यार मिल रहा है। तब क्या कोई जरूरत रह जाती है बाल दिवस समारोह जैसे किसी भी आयोजन की। आज के जितने भी सामाजिक समारोह और घोषणाएं की जाती हैं औपचारिकता बनकर रह जाती हैं। 

महापुरुषों और उनके आदर्शों, बिछड़े अपनों को याद तो लोग कर लेते हैं फिर अगले दिन उन्हें भूल जाते हैं लेकिन एक दिन भी ऐसा नहीं होता है जहां परिस्थितियों पर विचार सोचनीय हो। कुछ समस्याओं के समाधान बड़ी मुश्किल और लंबे होते हैं लेकिन इसी कारण हमें आशावादी दृष्टिकोण और प्रयास करना तो नहीं छोड़ सकते! एक उम्मीद की किरण तो रखनी चाहिए।—पूजा गुप्ता, मिर्जापुर (यू.पी.) 

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