‘इंडिया’ गठबंधन : बड़ी आशा और बड़ी चुनौती

Edited By Updated: 29 Aug, 2023 05:23 AM

india  alliance great hope and big challenge

में 31 अगस्त और 1 सितंबर को होने वाली इंडिया गठबंधन के नेताओं की शिखर वार्ता के सामने एक बड़ी चुनौती है।

मुंबई में 31 अगस्त और 1 सितंबर को होने वाली इंडिया गठबंधन के नेताओं की शिखर वार्ता के सामने एक बड़ी चुनौती है इंडिया नामक राजनीतिक मंच को केवल विपक्षी दलों के गठजोड़ से आगे बढ़कर भारत के प्रतिपक्ष के रूप में स्थापित करना। यह चुनौती केवल विपक्षी दलों के अस्तित्व से ही नहीं बल्कि भारतीय गणतंत्र के भविष्य से जुड़ी है। एक बात साफ है 2024 का चुनाव महज लोकसभा का चुनाव नहीं होगा। इस चुनाव का महत्व संविधान सभा के चुनाव से कम नहीं होगा। यह चुनाव आने वाले कई दशकों के लिए देश का भविष्य तय कर सकता है।

ऐसे में चुनाव से पहले इंडिया गठबंधन की घोषणा देश के लिए एक नई आशा लेकर आई है। इस गठबंधन से यह उम्मीद जगी है कि आगामी लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के वर्चस्व को मजबूत चुनौती मिलेगी, कम से कम चुनाव में एक तरफा वॉक ओवर नहीं मिलेगा। इस गठबंधन में देश के सभी प्रमुख विपक्षी दलों के शामिल होने से यह आशा भी बंधी है कि देश के सामने मुंह बाय खड़े अनेक ऐसे मुद्दों को आवाज मिलेगी जिन्हें गोदी मीडिया ने दबा रखा है।

चाहे बढ़ती हुई महंगाई हो या भयंकर बेरोजगारी या फिर खेती किसानी का संकट हो या देश में फैलाई जा रही नफरत की आग, इन सब मुद्दों पर देश को खुलकर अपनी राय रखने का मौका मिलेगा। गरीब, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक जैसे  देश के तमाम हाशिया ग्रस्त समूह को उम्मीद बनी है कि इस चुनाव के बहाने उनकी सुध ली जाएगी। इतनी संभावना तो बनी है कि सत्ता के अहंकार और उसके फलस्वरूप बढ़ती हुई निरंकुश प्रवृत्तियों पर रोक लगेगी।

लेकिन यह तभी हो पाएगा जब विपक्षी दल रोजमर्रा की ङ्क्षचताओं से ऊपर उठकर बड़ी चुनौती को स्वीकार करेंगे। यह जरूर मानना पड़ेगा कि एक साल पहले की तुलना में विपक्षी महागठबंधन काफी बेहतर स्थिति में दिखाई देता है लेकिन अब भी इंडिया गठबंधन की मुख्य ऊर्जा छोटे सवालों पर लग रही है। शुरूआत में कुछ खींचतान होना स्वाभाविक है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में हुई फूट के चलते उसकी स्थिति अस्पष्ट है। उधर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में शाब्दिक हमले हुए हैं। शायद इसी सब के चलते अभी तक इंडिया गठबंधन अपनी कोऑर्डिनेशन कमेटी नहीं बना पाया है। तिस पर वक्त से पहले ‘कौन बनेगा प्रधानमंत्री’  के सवाल पर नाहक चर्चा और बयानबाजी चल रही है।

ऐसे में हाल ही में आए दो जनमत सर्वेक्षण इंडिया गठबंधन के सामने बड़ी चुनौती का एहसास कराते हैं। पिछले महीने पहले इंडिया टी.वी. सी.एन.एक्स. और फिर इंडिया टुडे सीवोटर के राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण जारी हुए हैं।  इंडिया टी.वी. सी.एक्स. के अनुसार भाजपा को 290 और सहयोगियों समेत 318 सीट मिलने का अनुमान है जबकि कांग्रेस केवल 66 सीट और इंडिया गठबंधन 175 सीटों तक सिमट जाएगा। इंडिया टुडे सीवोटर का अनुमान भी कहता है  भाजपा को 287  (एन.डी.ए. को 306) सीट जबकि इंडिया गठबंधन को केवल 193 (कांग्रेस को 74) से संतोष करना पड़ेगा।

जाहिर है चुनाव से 9 महीना पहले आए इन अनुमानों को पत्थर की लकीर नहीं माना जा सकता। अभी 5 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं और उसका लोकसभा चुनाव पर असर देखना बाकी है। यूं भी टैलीफोन के जरिए हुए ऐसे सर्वेक्षणों की प्रामाणिकता पर भी कुछ सवाल बने रहते हैं क्योंकि इनमें समाज के अंतिम व्यक्ति की आवाज पूरी तरह शामिल नहीं होती। 
इसलिए इन्हें चुनाव के परिणाम का पूर्वानुमान न मानकर केवल हवा के रूख का संकेत मानना बेहतर होगा। यह साफ है कि केवल इंडिया गठबंधन बना लेने भर से भाजपा को चित्त नहीं किया जा सकता। दोनों सर्वे के राज्यवार अनुमान यह दिखाते हैं कि महाराष्ट्र और बिहार में वर्तमान गठबंधन भाजपा के लिए चुनौती पेश कर सकता है। 

लेकिन उत्तर-पश्चिम के हिन्दी भाषी राज्यों में अब भी बीजेपी का लगभग एकछत्र दबदबा कायम है। राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा और गुजरात में 2019 के चुनाव में भाजपा ने लगभग झाड़ू फेरी थी। इन दोनों सर्वे के मुताबिक फिलहाल इन इलाकों में भाजपा की भारी बढ़त बरकरार दिखाई देती है। इस इलाके में भाजपा  के वर्चस्व को चुनौती देना इंडिया गठबंधन की सबसे बड़ी चुनौती है।

यहां विपक्षी दलों के गठजोड़ भर से कोई जादू होने वाला नहीं है। उत्तर प्रदेश को छोड़कर इन राज्यों में सीधा भाजपा और कांग्रेस का मुकाबला है और गठबंधन करने लायक कोई तीसरी बड़ी ताकत नहीं है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल और कांग्रेस सभी का प्रभावी और ईमानदार गठबंधन फिलहाल तो असंभव प्राय: दिखता है। ऐसे में इंडिया गठबंधन की असली चुनौती केवल वोट बांधने और सीटें जोडऩे की नहीं, बल्कि जनता के दुख दर्द से जुडऩे और उन मुद्दों को सड़क पर उठाकर एक भरोसेमंद विकल्प पेश करने की है।

उपरोक्त दोनों सर्वेक्षण यह बात भी रेखांकित करते हैं कि जनता में आॢथक स्थिति को लेकर बेहद निराशा और मायूसी है। 
मोदी सरकार के अहंकारी होने की छवि बन रही है। मोदी और अडानी के गठजोड़ की बात जनता में फैल रही है। नफरत की राजनीति की पोल खुलने लगी है। लेकिन यह सब मुद्दे अपने आप 2024 के चुनावी मुद्दे नहीं बनेंगे जब तक इंडिया गठबंधन इन सवालों को लेकर जनता के बीच में नहीं जाता और इन मुद्दों पर जन आंदोलन खड़ा नहीं करता। -मुंबई

IPL
Royal Challengers Bengaluru

190/9

20.0

Punjab Kings

184/7

20.0

Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

RR 9.50
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!