बेहतर होगा राष्ट्रपति सर्वसम्मति से चुना जाए

Edited By Updated: 21 Jun, 2022 04:04 AM

it would be better if the president is elected unanimously

पदासीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की सेवानिवृत्ति के बाद अगले महीने भारत को नया राष्ट्रपति मिलेगा इसलिए आजकल हर ओर राष्ट्रपति के लिए चुनावों की चर्चा है। स्वतंत्रता के बाद से इन चुनावों में

पदासीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की सेवानिवृत्ति के बाद अगले महीने भारत को नया राष्ट्रपति मिलेगा इसलिए आजकल हर ओर राष्ट्रपति के लिए चुनावों की चर्चा है। स्वतंत्रता के बाद से इन चुनावों में करीबी स्पर्धा, आश्चर्य तथा उलटफेर देखने को मिले हैं। आमतौर पर सत्ताधारी पार्टी का उम्मीदवार चुन लिया जाता है तथा यह चुनाव महज एक औपचारिकता होते हैं। विपक्ष भी सांकेतिक तौर पर अपना एक उम्मीदवार खड़ा करता है। 

इस बार सत्ताधारी राजग तथा विपक्ष एक अनुकूल उम्मीदवार की तलाश में हैं। इलैक्टोरल कालेज में संसद के 776 सदस्य (लोकसभा से 543 व राज्यसभा से 233) तथा राज्यविधान सभाओं के 4809 सदस्य शामिल होते हैं जो 18 जुलाई को अगला राष्ट्रपति चुनेंगे। जरूरी बहुमत का आंकड़ा न होने के बावजूद (20,000 से कम वोटें) मोदी सरकार सहज स्थिति में है। इस अंतराल को भरने के लिए भाजपा संभवत: बीजद, वाई.एस.आर. सी.पी. तथा अन्ना द्रमुक जैसी तटस्थ पार्टियों को अपने पाले में कर सकती है। 

भारत की स्वतंत्रता के गत 75 वर्षों में पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद से रामनाथ कोविंद तक नीलम संजीवा रैड्डी (6वें राष्ट्रपति) निर्विरोध चुने जाने वाले एकमात्र राष्ट्रपति थे जिन्होंने 1977 में राष्ट्रपति पद की दौड़ जीती थी। चुनाव अधिकारियों ने 36 अन्य नामांकनों को रद्द कर दिया था। 

विडम्बना यह है कि इससे एक दशक पूर्व सर्वाधिक रोमांचकारी राष्ट्रपति चुनावों में से एक में उसी कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार संजीवा रैड्डी आजाद उम्मीदवार वी.वी. गिरि से हार गए थे जिन्हें प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का समर्थन प्राप्त था। इसके पहले तथा बाद में आधिकारिक उम्मीदवार ही जीतते रहे। इसके बाद ही कांग्रेस पार्टी का विभाजन हो गया था। आम चुनावों में यदि किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता तो हर किसी की नजर राष्ट्रपति भवन की ओर होती है क्योंकि राष्ट्रपति सरकार बनाने के लिए बहुमत हासिल करने वाली पार्टी को आमंत्रित करता है। कुछ राष्ट्रपतियों को पेचीदा मुद्दों का सामना करना पड़ा और उन्होंने अपने अलग तरीके से उनका समाधान किया। 

आर. वेंकटरमन, डा. शंकर दयाल शर्मा तथा के.आर. नारायणन जैसे राष्ट्रपतियों ने अपने कार्यकालों के दौरान संवेदनशील तथा विवादास्पद निर्णय लिए। शर्मा ने भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी, सबसे बड़ी एकल पार्टी के नेता को 1996 में 13 दिन की सरकार बनाने का एक अवसर दिया। हालांकि सरकार गिर गई क्योंकि यह बहुमत के लिए समर्थन नहीं जुटा पाई। जब 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हुई, राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने अजीब तथा दुखद परिस्थितियों में उनके बेटे राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद पर बिठाया। 

आदर्श स्थिति यही होगी कि प्रधानमंत्रियों तथा राष्ट्रपतियों के बीच संबंध अच्छे बने रहें। हिन्दू कोड बिल पर डा. राजेंद्र प्रसाद के पत्र उनके तथा नेहरू के बीच मतभेदों को दर्शाते थे। संजीवा रैड्डी तथा इंदिरा गांधी में भी मतभेद थे। ज्ञानी जैल सिंह तथा राजीव गांधी का भी आपस में तालमेल नहीं था। पी.वी. नरसिम्हाराव तथा शर्मा भी विवादास्पद रहे। 

राष्ट्रपति चुनावों में कुछ हैरानीजनक उम्मीदवार भी देखने को मिले। 2002 में वाजपेयी ने सबको हैरान करते हुए ‘मिसाइल मैन’ अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति के उम्मीदवार के तौर पर चुना। पहली बार कांग्रेस तथा भाजपा ने उनकी उम्मीदवारी का समर्थन किया। 2007 में कांग्रेस ने निर्णय किया कि पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल राजग के भैरों सिंह शेखावत को चुनौती देंगी। यह एक बहुत करीबी लड़ाई थी। 2012 में कांग्रेस नेता प्रणव मुखर्जी को चुनाव जीतने के लिए वाम तथा अन्य विपक्षी दलों का समर्थन मिला। रामनाथ कोविंद की उम्मीदवारी सर्वाधिक हैरानीजनक थी और वह बिना किसी विवाद के अपना कार्यकाल पूरा कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी संभवत: इस बार भी सभी को चौंका सकते हैं। 

हमें किस तरह के राष्ट्रपति की जरूरत है? राष्ट्रपति भवन में रहने वाले अधिकतर लोग ऊंचे कद के थे जिन्होंने भारत रत्न का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भी जीता-डा. राधाकृष्णन (1954), डा. राजेंद्र प्रसाद (1962), डा. जाकिर हुसैन (1963), वी.वी. गिरि (1975) तथा डा. अब्दुल कलाम (1997)। दूसरे, अधिकांश समुदायों को राष्ट्रपति भवन में निवास करने का मौका मिला है। के.आर. नारायणन पहले दलित राष्ट्रपति थे (1997), अब्दुल कलाम पहले वैज्ञानिक राष्ट्रपति थे (2002) तथा प्रतिभा पाटिल पहली महिला राष्ट्रपति थीं (2007)। 

तीन मुसलमान-डा. जाकिर हुसैन, फखरुद्दीन अली अहमद, डा. अब्दुल कलाम तथा एक सिख ज्ञानी जैल सिंह राष्ट्रपति रहे हैं। जिन दो प्रमुख समूहों को स्वतंत्रता के बाद से प्रतिनिधित्व नहीं मिला वे हैं ओ.बी.सी. तथा जनजातिय। संभवत: सत्ताधारी दल इन दोनों में से किसी एक समुदाय से उम्मीदवार को मैदान में उतार सकता है। तीसरे, राष्ट्रपति को महज रबड़ की मोहर नहीं होना चाहिए जैसे कि फखरुद्दीन अली अहमद को माना जाता था। के.आर. नारायणन, प्रणव मुखर्जी तथा वेंकटरमन जैसे राष्ट्रपति नियम पुस्तिका के अनुसार चलने वाले और हठी थे। अगले कुछ दिनों में हमें उम्मीदवारों के नामों का पता चल जाएगा। अभी जो स्थिति है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। विपक्ष भी अभी किसी सर्वसम्मत उम्मीदवार पर नहीं पहुंचा। 

मोदी विपक्ष तक पहुंच बना रहे हैं जैसा कि उन्हें करना चाहिए। आदर्श स्थिति यही होगी कि एक सांकेतिक स्पर्धा की बजाय एक सर्वसम्मत राष्ट्रपति हो। इन धु्रवीकरण के समयों में एक व्यापक सम्मान वाला व्यक्ति तथा एक सर्वसम्मत उम्मीदवार बिल्कुल सही रहेगा। आखिरकार देश के सर्वोच्च संवैधानिक कार्यकारी होने के नाते राष्ट्रपति संविधान का रक्षक भी है।-कल्याणी शंकर

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