पुलिस के साथ ‘लुकाछिपी का खेल’ खेल रहा खालिस्तान समर्थक

Edited By Updated: 31 Mar, 2023 03:51 AM

khalistan supporter playing  hide and seek  with police

पंजाब में स्वयंभू ‘खालिस्तान समर्थक’ अमृतपाल सिंह फरार है। पंजाब पुलिस वीरवार तक उसका पता नहीं लगा पाई है। पुलिस के साथ अमृतपाल सिंह लुकाछिपी का खेल खेल रहा है। यहां पर उसके बारे में कुछ भी असामान्य नहीं है।

पंजाब में स्वयंभू ‘खालिस्तान समर्थक’ अमृतपाल सिंह फरार है। पंजाब पुलिस वीरवार तक उसका पता नहीं लगा पाई है। पुलिस के साथ अमृतपाल सिंह लुकाछिपी का खेल खेल रहा है। यहां पर उसके बारे में कुछ भी असामान्य नहीं है। हमारे देश में सभी पुलिस कर्मी इस ओर लगे हुए हैं। पंजाब 20 से 30 वर्ष पहले इस दौर से गुजरा है। एक रिपोर्ट में इशारा किया गया है कि अमृतपाल नेपाल पहुंच गया है। ऐसे भी कयास लगाए जा रहे हैं कि वह वेश बदल कर दिल्ली में छिपा हुआ है। पुलिस उसकी तलाश में इधर-उधर घूम रही है। 

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय जानना चाहता था कि अमृतपाल सिंह कहां है जिसने 80,000 पुलिस कर्मियों को धोखा दिया है। वास्तव में ऐसी सख्त टिप्पणियां देश भर में अदालतें समय-समय पर करती हैं ताकि पुलिस कर्मियों पर निगाह रखी जा सके। 

वास्तविकता यह है कि 80,000  का आंकड़ा सम्पूर्ण स्वीकृत ताकत का प्रतिनिधित्व करता है। किसी भी समय मृत्यु या सेवानिवृत्ति या अन्य कारणों के कारण रिक्तियों की संख्या 5 प्रतिशत से कम हो जाती है। पुलिस कर्मियों के छुट्टी पर जाने या बीमार रहने की संख्या काफी है। वहीं पुलिस कर्मी वी.आई.पी. सुरक्षा ड्यूटियों पर लगे रहते हैं इसके साथ-साथ वे सरकारी कार्यालयों, मंत्रियों तथा वरिष्ठ अधिकारियों की रखवाली करने पर भी लगे रहते हैं। इनमें से कई ऐसे कत्र्तव्य हैं जो पुलिस पर लगाए गए हैं। सरकार पर दबाव बनाया जाता है ताकि आसान रास्ता निकाला जा सके। पुलिस थानों में पर्याप्त पुलिस कर्मी जुटाए नहीं जा सकते। 

अमृतपाल सिंह जैसे नवोदित नेता की गिरफ्तारी जैसी असाधारण कार्रवाइयों ने सरकार को विफल कर दिया है। वह अभी तक उससे निपटने के लिए संघर्ष कर रही है लेकिन हम आगे बढऩे के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय की सराहना करते हैं। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए राज्य सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए। मेरे एक मित्र प्रकाश सिंह ने एक आनलाइन पत्रिका में अवधारणात्मक विश्लेषण लिखा है जो इसकी अंतर्दृष्टि देता है। 18 मार्च को पंजाब के सशक्त पुलिस बल को अंतत: एक झटका लगा। इस बीच एक मक्खी मच्छर में बदल जाए। इससे पहले कि मच्छर ततैया में बदल जाए इसे खोजने की जरूरत है। अमृतपाल सिंह ने दुबई से लौटने के बाद काफी चर्चा हासिल की थी और अपने आपको ‘वारिस पंजाब दे’ का प्रमुख घोषित किया था। 

अजनाला पुलिस के साथ एक सफल संघर्ष में रहने के बाद अमृतपाल सिंह ने कई और अनुयायी एकत्रित किए थे। यदि उसे और फैलने की अनुमति दी गई तो यह पंजाब के लिए मुसीबत का कारण बनेगा। इसमें कोई शक नहीं है कि अमृतपाल सिंह पुलिस कर्मियों की हरकतों से सतर्क हो गया था। पुलिस रैंक में उसके लिए मुखबिर भी हो सकते हैं। जैसा कि आमतौर पर पुलिस कानून तोडऩे वालों के बीच रखती है। यह भी सत्य है कि दुष्टों को हमेशा दौड़ में आगे रहना होता है। 

समस्या उस शालीनता के कारण उत्पन्न होती है जो ओवरटेक करती है। अमृतपाल की तब से यह हरकतें हो रही हैं जब से पुलिस उसे पकडऩे में जुटी है। उसे सी.सी.टी.वी. पर ट्रेस किया गया। अमृतपाल सिंह को बचने के लिए छलकपट का सहारा लेना पड़ा। उसने वाहन बदले और ऐसे उपकरण में उसे यात्रा करते देखा गया जो मैंने नहीं सुना था। एक वाहन जिसे ‘जुगाड़ू रेहड़ी’ कहा जाता है एक तिपहिया वाहन की तरह दिखता है। इसका इस्तेमाल आमतौर पर सामान ले जाने के  लिए किया जाता है। 

उसने एक रात हरियाणा में एक महिला के घर में बिताई लेकिन पुलिस के सामने से निकल गया। पंजाब के बाहर अमृतपाल सिंह की उपयोगिता सीमित रहेगी। शायद यह ज्यादा फायदेमंद है। उसे विदेश से काम करने की अनुमति देने का मतलब वह वहां गुरपतवंत सिंह पन्नू के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकेगा। उसका पासपोर्ट रद्द करना चाहिए। उसे पंजाब में आकाओं द्वारा भेजा गया है ताकि जटसिख किसानों को खालिस्तान मूवमैंट में शामिल होने के लिए उकसाया जाए। अभी तक यह आंदोलन वर्तमान में विदेशों में रह रहे भारतीय प्रवासियों तक ही सीमित है। 

इसका प्रभाव कनाडा, अमरीका, आस्ट्रेलिया और यू.के. तक है। पंजाब के भीतर इसका प्रभाव कम है। पंजाब में अमृतपाल सिंह के आने के बाद सिखों को राजनीतिक दलों द्वारा लुभाया जा रहा है। 80 और 90 के दशक के दौरान जो कुछ पंजाब में हुआ उसका अनुभव मैंने किया है। सौदेबाजी में अत्यधिक नुक्सान उठाया गया। यह संदेहास्पद है कि क्या लोग फिर से ऐसी चीजों में शामिल होना चाहेंगे जिसे केवल कयामत के रूप में वर्णित किया जा सकता है। दुनिया में कोई भी आतंकवादी आंदोलन सफल नहीं हुआ है। कई युवा बेरोजगारी और बिगड़ती अर्थव्यवस्था से निराश होकर अलग खालिस्तानी राज्य की मांग की ओर आकर्षित हो सकते हैं। 

पंजाब सरकार की जिम्मेदारी है कि वह अपना जाल बिछाए। राज्य को प्रत्येक जिले, प्रत्येक तालुका और गांवों के प्रत्येक समूह तक पहुंचना चाहिए। चुने हुए सदस्यों की टीमों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए और इस बात की जानकारी दी जानी चाहिए कि उन्हें लोगों के मनों को जीतने के लिए क्या करना चाहिए। लोग विशेषकर जटसिख किसान राज्य के पक्ष में हैं। वार्ताकारों को सावधानी से चुना जाना चाहिए। केवल कौशल वाले संचार का चयन किया जाना चाहिए। राज्य के मुख्यमंत्री, प्रमुख सचिव तथा डी.जी.पी. द्वारा संबोधित एक दिवसीय या फिर दो दिवसीय वर्कशाप में पुरुषों तथा महिलाओं को ठीक ढंग से समझाया जाना चाहिए। वारिस पंजाब दे का लक्ष्य समुदाय के दिलों और दिमाग को जीतना बेहद जरूरी है।-जूलियो रिबैरो (पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी) 
 

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