नैतिकता है स्वस्थ समाज की आत्मा

Edited By ,Updated: 19 Mar, 2023 05:28 AM

morality is the soul of a healthy society

उन्नति और प्रगति के इस दौर में एक ओर हमने बहुत कुछ खोया है जबकि दूसरी ओर बहुत कम पाया है।

उन्नति और प्रगति के इस दौर में एक ओर हमने बहुत कुछ खोया है जबकि दूसरी ओर बहुत कम पाया है। भले ही हमने भौतिकता के माध्यमों से शिखरों को क्यों न छू लिया हो किन्तु हम पतन की ओर ऐसे गिरते जा रहे हैं कि गिरती नैतिकता एवं पतन की पराकाष्ठा की ओर हम अपना ध्यान ही नहीं दे पा रहे हैं। आज के मानव ने अपना परिष्कार और परिमार्जन त्याग दिया है, आत्मावलोकन करना छोड़ दिया है, साथ ही संस्कार आधारित शिक्षा का त्याग कर अपनी नैतिकता को एक खूटी पर टांग दिया है और अपनी नैतिकता के सार को गिराकर स्वयं किलकारी मारकर हंस रहा है, ऐसे में समग्र मानव जाति के लिए यह बहुत ही ङ्क्षचता का विषय बन गया है।

चिंतकों का मानना तो यहां तक भी है कि शायद हम भविष्य में इंसान भी न रह पाएं और हैवान से भी बदतर होते चले जाएं। आज मनुष्य की सोच इतनी बदलती जा रही है कि मनुष्य को अपने स्वार्थ के आगे नैतिकता मूल्यहीन लगने लगी है। नैतिकता का स्तर यहां तक गिर गया है कि पुत्र अपने माता-पिता, भाई-बहन या अन्य रिश्तेदारों की हत्या तक कर देने में कोई संकोच नहीं करता। समाज में हर दिन बढ़ रहे अपराध-हत्या, अपहरण, चोरी, लूट-मार, बलात्कार आदि मानव की गिरती नैतिकता के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।

सुशासन का तो अर्थ ही बदल गया है जबकि सुशासन का अर्थ किसी सामाजिक, राजनीतिक इकाई को इस प्रकार चलाना है जो सकारात्मक परिणाम दे। सुशासन को सुनिश्चित करने के लिए जागरुकता, दक्षता और प्रभावी शासन व्यवस्था आदि सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए आवश्यक तत्व होते हैं। सुशासन में ईमानदारी और नैतिकता कुछ आधारों पर ही तय की जा सकती है। जैसे प्रभावशाली कानून व नियमों का निर्माण और फिर उन्हें प्रभावशाली ढंग से लागू किया जाना।

नैतिकता मानव आचरण को दर्शाने वाला एक प्रयास है जो अच्छा जीवन व्यतीत करने में सहायक होता है। जिम्मेदारी और जवाबदेही नैतिकता के दो अंग हैं और ये अंग ही सुशासन बनाते हैं। आज हमारे समाज में हमारे द्वारा चुने गए नेता, मंत्री, राजनीति कार्यकारी संगठनों में नैतिकता का कितना अंश है, यह समझने का समय आ गया है। भले ही हम आज आजादी के 75 सालों के उपरांत आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हों, पर हमें भ्रष्टाचार से मुक्ति का रास्ता अभी तक नहीं मिला।

नैतिकता मानव आचरण का सही मार्ग दिखाने का एक प्रयास है और यह जीवन में नैतिक गुणों को लागू कर व्यक्ति को अच्छा जीवन जीने में मदद करती है। आज के समय में दुनिया के विभिन्न देशों में लोकतंत्र के प्रसार और उत्थान ने शासन में नैतिकता के मुद्दे को उजागर किया है। नैतिकता का मुख्य उद्देश्य नैतिक सिद्धांतों, प्रथाओं और व्यवहार के लिए मुख्य सरोकार के साथ सुशासन निश्चित करना है।

अगर हम इतिहास को देखें तो वहां पर सुशासन की कल्पना रामराज्य से की जाती थी। अच्छा बनो और अच्छा करो का मुख्य सूत्र सभी राजतंत्रों पर लागू किया जाता है। सुशासन लाने में नैतिकता और नैतिक मूल्यों की महत्वपूर्ण भूमिका है। शासन में नैतिक मूल्यों को मजबूत करने के कई तरीके हैं, जिनमें मुख्य रूप से नि:स्वार्थता, जवाबदेही, उच्च सत्यनिष्ठ, ईमानदारी, अपनेपन की भावना और जिम्मेदारी शामिल है।

नैतिकता और नैतिक मूल्य सुशासन में अधिकतम लोक कल्याण ला सकते हैं इसलिए सरकारी और निजी कर्मचारियों को प्रशासन में नैतिकता को अधिक बढ़ावा देना चाहिए। अब समय रहते हमें अपनी विचारधारा बदलने की आवश्यकता है और भारत जैसे विशाल देश में आदर्श और नैतिकता के गिरते स्तर को उठाने में हमें अपनी सार्थक पहल दिखानी होगी, तभी हमारा कल उज्ज्वल और स्वॢणम बन सकता है, इसलिए हम सबका परम कर्तव्य है कि हम इस बदलते हुए निर्लज्ज व संस्कारहीन मानव का अनुसरण करना छोड़ें और हर विकृति का त्याग कर अपनी नैतिकता की रक्षा स्वयं करें।            
नैतिकता का पवन परचम, आज फिर से लहराना होगा,
सकल विश्व को इस भारत का, दिव्य ज्ञान सिखलाना होगा।
है ऊंचा आदर्श हमारा, यह फिर से बतलाना होगा,
विश्वगुरु भारत बन जाए, फिर से वह शंख बजाना होगा।  -प्रि. डा. मोहन लाल शर्मा

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