देश की प्रतिष्ठा को कैसे पहुंची क्षति

Edited By ,Updated: 23 Mar, 2023 06:15 AM

ow the reputation of the country was damaged

राज्यसभा में तत्कालीन सदन के नेता अरुण जेतली ने 28 अप्रैल, 2015 को राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विदेशी धरती से भारत के बारे में कथित अपमान का पुरजोर बचाव करते हुए कहा था कि, ‘‘इस विषय में अभिव्यक्ति पर कोई रोक लागू नहीं है और भारत...

राज्यसभा में तत्कालीन सदन के नेता अरुण जेतली ने 28 अप्रैल, 2015 को राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विदेशी धरती से भारत के बारे में कथित अपमान का पुरजोर बचाव करते हुए कहा था कि, ‘‘इस विषय में अभिव्यक्ति पर कोई रोक लागू नहीं है और भारत के प्रधानमंत्री को पिछले 60 वर्षों के घटनाक्रम पर अपने विचार व्यक्त करने का पूरा अधिकार है।’’ जब विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री मोदी पर देश की गरिमा को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया तो जेतली ने उन पर निशाना साधते हुए कहा, ‘‘क्या उन्हें लगता है कि भारत की बदनामी भ्रष्टाचार के कृत्यों से नहीं, बल्कि उनका उल्लेख करने से होती है।’’

उन्होंने आगे कहा कि,‘‘किसी मुद्दे पर चर्चा चाहे भारत में हो या भारत से बाहर, इंटरनैट और सैटेलाइट जैसी आज की तकनीक, इसे दुनिया में हर जगह ले जाएगी और दुनिया भर के लोग इसे देखेंगे।’’ इसके साथ-साथ उन्होंने विपक्ष को नसीहत देते हुए कहा कि वे इस बात का लेकर संवेदनशील न हों कि किसी विषय पर चर्चा देश में नहीं बल्कि देश के बाहर हो रही है। तो, इसी तर्क के आधार पर कोई भी व्यक्ति यह समझने में विफल है कि ब्रिटेन में राहुल गांधी द्वारा की गई टिप्पणी पर भाजपा द्वारा पिछले एक पखवाड़े से इतना हो-हल्ला क्यों मचाया जा रहा है। यह मानसिकता केवल भाजपा की दोहरे मापदंडों को उजागर करती है।

16 मई, 2015 को चीन की धरती पर स्वयं प्रधानमंत्री ने कहा था, ‘‘हमने अपने पिछले जन्मों में पता नहीं क्या पाप कर्म किए थे, जो हमें भारत में जन्म मिला।’’ उन्होंने  अपनी दक्षिण कोरिया और अन्य देशों की अपनी यात्राओं के दौरान भी इसी तरह की टिप्पणियां की थीं। राष्ट्र निर्माण एक धीमी परन्तु सतत प्रक्रिया है और आज हम जो कुछ भी हैं, उसका श्रेय पंडित जवाहर लाल नेहरू और उनके बाद बनने वाले प्रधानमंत्रियों द्वारा किए गए महान बुनियादी कार्यों को दिया जाना चाहिए। यह ङ्क्षनदनीय है कि प्रधानमंत्री ने अपने उच्चपद की गरिमा का अनुसरण नहीं किया और अपने पूर्ववर्तियों और राजनीतिक विरोधियों को बदनाम करने का प्रयास किया।

एक प्रधानमंत्री की गरिमामयी अभिव्यक्ति को अपनाने और पिछली सरकारों के योगदान को स्वीकार करने की अपेक्षा, उन्होंने अपने विदेशी दौरों के दौरान भी केवल एक भाजपा नेता की तरह आचरण किया। क्या भाजपा नेताओं, और राहुल गांधी पर उंगली उठाने वाले अन्य लोगों ने कभी यह आंकलन करने की चेष्टा की है कि विदेशी में भारत के प्रधानमंत्री की ऐसी टिप्पणियों से देश की प्रतिष्ठा को कितनी क्षति पहुंची है। इसके विपरीत, भाजपा नेताओं की एक पूरी बटालियन राहुल गांधी पर यह मिथ्या आक्षेप लगाने के लिए मैदान में उतरी हुई है कि उन्होंने न केवल देश को बदनाम किया, बल्कि भारत में लोकतंत्र को पुनर्जीवित करने के लिए पश्चिम के हस्तक्षेप की भी मांग की।

भाजपा द्वारा भारत की संसद को सत्ताधारी दल द्वारा नहीं चलने दिया जा रहा है। राहुल गांधी की छवि को धूमिल करने की हताशा में या तो भाजपा ने उनका पूरा वक्तव्य सुनने की भी जहमत नहीं उठाई या जानबूझकर झूठा प्रचार किया जा रहा है। चैथम हाऊस प्रश्रोत्तर के दौरान राहुल से पूछा गया था कि भारत के कमजोर होते लोकतंत्र में यूरोप के देश क्या मदद कर सकते हैं, इसके उत्तर में राहुल गांधी ने यह पूर्णतया स्पष्ट कर दिया था कि ‘‘यह एक हमारी आंतरिक समस्या है और यह भारत की समस्या है और इसका समाधान भी अंदर से आएगा, बाहर से नहीं लेकिन कुछ राजनीतिक टिप्पणीकार, सार्वजनिक रूप से उपलब्ध संवाद का अध्ययन किए बिना, अति उत्साह से टिप्पणी करने के लिए मैदान में कूद पड़े।

ब्रिटिश संसद और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में राहुल गांधी का गर्मजोशी से स्वागत किसी भी भारतीय के लिए गर्व की बात है, लेकिन लगता है कि भाजपा नेताओं को यह रास नहीं आ रहा और वे प्रधानमंत्री के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के बढ़ते कद को पचा नहीं पा रहे हैं। हर चीज को राजनीतिक चश्मे से देखने वालों को इस बात पर निराशा हो रही है कि राहुल गांधी की छवि को बिगाडऩे में खर्च किया गया सारा पैसा बेकार हो गया है और लोग उन्हें विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर गहरी समझ रखने वाले एक दूरदर्शी नेता के रूप में देख पा रहे हैं।

जब राहुल गांधी ने यह कहा कि जहां तक यूक्रेन-रूस युद्ध पर भारत की विदेश नीति का सवाल है, वह वर्तमान सरकार की नीति से सहमत हैं, तो क्या इससे उनका भारत विरोधी दृष्टिकोण प्रदॢशत हुआ? जब वह चीन को एक गैर-लोकतांत्रिक ताकत बताकर दुनिया से अलग-थलग कर रहे थे या बेल्लारी, मुरादाबाद आदि शहरों को कौशल के केंद्र के रूप में प्रचारित कर रहे थे, तो क्या वह भारत को बदनाम कर रहे थे या हमारी प्रतिभाओं की प्रशंसा कर रहे थे?

जहां भाजपा हर चीज के केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी और अपने राजनीतिक हितों को रखती है, वहीं कांग्रेस सभी कार्यों का मूल्यांकन राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य से करना पसंद करती है। जब राहुल गांधी पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ कड़ा संदेश देते हैं, भारतीय लोकतंत्र की मजबूती को वैश्विक लोकहित बताते हैं या भारतीय संस्कृति और विरासत पर प्रकाश डालते हैं तो किसी भी भारतीय को गर्व महसूस होता है और उन्होंने यह सब कुछ ब्रिटेन में किया। -डा. विनीत पुनिया (लेखक कांग्रेस के सचिव हैं)

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