रेल का आधुनिकीकरण यात्रियों की सुरक्षा के साथ-साथ हो

Edited By Updated: 10 Jun, 2023 04:31 AM

rail modernization should go hand in hand with passenger safety

ओडिशा के बहनागा बाजार स्टेशन पर 3 ट्रेनों के आपस में टकराने से करीब 300 लोगों की मौत हो गई और 1000 से अधिक लोग घायल हो गए। इनमें से दो एक्सप्रैस ट्रेनें थीं जो लगभग 2000 यात्रियों को ले जा रही थीं। 2 दशकों में इसे भारत की सबसे भीषण रेल दुर्घटना कहा...

ओडिशा के बहनागा बाजार स्टेशन पर 3 ट्रेनों के आपस में टकराने से करीब 300 लोगों की मौत हो गई और 1000 से अधिक लोग घायल हो गए। इनमें से दो एक्सप्रैस ट्रेनें थीं जो लगभग 2000 यात्रियों को ले जा रही थीं। 2 दशकों में इसे भारत की सबसे भीषण रेल दुर्घटना कहा जा सकता है। 

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के मुताबिक राज्य से आए 182 यात्री लापता हैं। बालासौर ट्रेन हादसे ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। भारत में प्रतिदिन करीब 20 मिलियन लोग ट्रेन से यात्रा करते हैं। कुछ भयानक ट्रेन दुर्घटनाओं के बावजूद हाल ही में नई पटरियों और तेज गति ट्रेनों के लिए जोर देने के बावजूद भारतीय रेलवे को एक प्रभावशाली सुरक्षा रिकार्ड के लिए कहा गया है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार हाल ही में भारतीय रेलवे के आधुनिकीकरण के लिए उत्सुक रही है। इसका मतलब यह नहीं है कि सुरक्षा कारकों को उपेक्षित या अनदेखा किया जाना चाहिए। रेलवे के आधुनिकीकरण के लिए औद्योगिकी नि:संदेह पिछले कुछ वर्षों में बेहतर हुई है, फिर भी मशीनरी के लगभग 99.9 प्रतिशत सुचारू रूप से चलने पर भी विफलता का खतरा हो सकता है। 

ट्रेनों का सुरक्षित संचालन इलैक्ट्रॉनिक ‘इंटरलॉकिंग सिस्टम’ में डाले गए ‘साऊंड लॉजिक’ द्वारा होता है। इस संदर्भ में यह उल्लेख किया जाना चाहिए कि रेलवे सिग्रल सिस्टम में इंटरलॉकिंग एक महत्वपूर्ण तंत्र है जो यह सुनिश्चित करता है कि ट्रेनों की आवाजाही बिना किसी टकराव के जारी रहे जिससे दुर्घटनाओं को रोका जा सके। सरकार ने रेल सुरक्षा पर किसी भी तरह की लापरवाही होने से इंकार किया है। 

तो बालासौर में क्या गलत हुआ? : हावड़ा से चेन्नई जाने वाली कोरोमंडल एक्सप्रैस को बहनागा बाजार  स्टेशन को पूरी गति से पार करना था। हालांकि 127 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से चलने वाली इस  ट्रेन को एक लूप लाइन की ओर मोड़ दिया गया जहां एक मालगाड़ी खड़ी थी जिसके परिणामस्वरूप कोरोमंडल के 21 डिब्बे पटरी से उतर गए। इसके अलावा यशवंतपुर-हावड़ा एक्सप्रैस विपरीत दिशा से आ रही थी। इसके तीन डिब्बे दूसरी मेन लाइन पर फिसल गए जिसके परिणामास्वरूप इसके पीछे के दो डिब्बे टकरा गए और पटरी से उतर गए। 

रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सी.बी.आई. जांच की मांग की है और इस त्रासदी को एक आपराधिक कृत्य बताते हुए कहा, ‘‘भयानक दुर्घटना के मूल कारण की पहचान कर ली गई है। मैं विवरण में नहीं जाना चाहता। रिपोर्ट आने दीजिए... मैं सिर्फ इतना कहूंगा कि मूल कारण और आपराधिक कृत्य के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान कर ली गई है।’’ 

कम से कम कहने के लिए यह हास्यास्पद है। बड़ा सवाल यह है कि कोरोमंडल एक्सप्रैस को मेन लाइन से लूप लाइन की तरफ डाइवर्ट क्यों किया गया? बेशक, इस भयानक दुर्घटना के बाद तत्काल पटरियों की मुरम्मत की गई और ट्रेनों का नई बहाल लाइनों पर आवागमन शुरू हो गया। हालांकि यह हालिया ट्रेन दुर्घटना सरकार की प्राथमिकताओं के बारे में चिंता पैदा करती है। क्या हम सुरक्षा की कीमत पर गति पर बहुत अधिक ध्यान दे रहे हैं? ट्रेन संचालन में सावधानी बरतने की तत्काल जरूरत है। 

नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा किए गए एक ऑडिट से पता चलता है कि 2018 और 2021 के बीच 217 ‘परिणामी ट्रेन दुर्घटनाओं’ में से 75 प्रतिशत पटरी से उतरने के कारण हुईं जो ट्रैक रख-रखाव की कमी का परिणाम है। चिंता की एक अन्य बात राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष (आर.आर. एस.के.) रेल सुरक्षा के लिए समॢपत रेलवे की पहल पर खर्च में कटौती है। ट्रैक सुरक्षा पर व्यय 2019 में 9,607.65 करोड़ से घटाकर 2020 में 7,417 करोड़ कर दिया गया था। कैग के ऑडिट के अनुसार आर.आर.एस.के. को कम से कम पहले 4 वर्षों के लिए रेलवे के आंतरिक संसाधनों से अनुमानित 5000 करोड़ सालाना नहीं मिला था। रेलवे ने अनिवार्य रूप से 20,000 करोड़ रुपए के बजाय मात्र 4,225 करोड़ रुपए का योगदान दिया। 

हालांकि सबसे चिंताजनक विषय यह है कि आबंटित धन का भी पूरी तरह से उपयोग नहीं किया गया। इसके अलावा खर्च ‘गैर-प्राथमिकताओं वाले कार्यों’ के लिए अधिक था जो आर.आर.एस.के.  के मार्गदर्शक सिद्धांतों के विरुद्ध है। अन्य संबंधित आंकड़े रिक्तियों पर हैं। मध्य रेलवे में 28,650 रिक्त पदों में से करीब 50 प्रतिशत (14,203) सुरक्षा श्रेणी में हैं जिसमेें मुख्य रूप से परिचालन और रख-रखाव कर्मचारी आते हैं। मौजूदा स्टाफ पर जरूरत से ज्यादा काम है और सिस्टम पर अनावश्यक दबाव डाला जा रहा है। रेल अधिकारियों को पूरी व्यवस्था पर फिर से विचार करना चाहिए और यात्रा करने वाली जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक उपाय करने चाहिएं। इस मामले में कोई समझौता नहीं हो सकता। 

हालांकि अफसोस की बात यह है कि 2017 और 2022 के बीच किसी भी वर्ष में सुरक्षा सुधारों के लिए निर्धारित एक विशेष कोष की पर्याप्त भरपाई नहीं की गई। ऐसा नहीं होना चाहिए था। विशिष्ट मार्गों पर टक्कररोधी प्रणालियों पर फिर से विचार करने की स्पष्ट जरूरत है। खतरनाक क्रॉसिंग को ध्यान में रखते हुए हमें सिग्नङ्क्षलग सिस्टम पर अतिरिक्त सुरक्षा उपाय स्थापित करने की आवश्यकता हो सकती है। 

हम ट्रेनों से संबंधित दुर्घटनाओं में सालाना 25,000 मौतों के कठोर तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकते। हमारी आधुनिकीकरण की बोली में हमें नई हाई स्पीड वंदे भारत सेवा में यात्रा करने वाली जनता की सुरक्षा को पहचानना चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रेल आधुनिकीकरण यात्रियों की सुरक्षा के साथ-साथ हो। रेलवे बोर्ड को रेलवे प्रणाली के आधुनिकीकरण में सुरक्षा कारकों की फिर से जांच करने की जरूरत है।-हरि जयसिंह
    

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