अवधपुरी में लौटे श्री राम

Edited By ,Updated: 21 Jan, 2024 04:36 AM

shri ram returned to awadhpuri

शताब्दियों की प्रतीक्षा, पीढिय़ों के संघर्ष और पूर्वजों के व्रत को सफल करते हुए सनातन संस्कृति के प्राण रघुनंदन राघव रामलला, आज अपनी जन्मभूमि अवधपुरी में नव्य-भव्य-दिव्य मंदिर में अपने भक्तों के भावों से भरे संकल्प व स्वप्नरूप सिंहासन पर प्रतिष्ठित...

जासु बिरहं सोचहु दिन राती। रटहु निरंतर गुन गन पांती॥
रघुकुल तिलक सुजन सुखदाता। आयउ कुसल देव मुनि त्राता॥ 

शताब्दियों की प्रतीक्षा, पीढिय़ों के संघर्ष और पूर्वजों के व्रत को सफल करते हुए सनातन संस्कृति के प्राण रघुनंदन राघव रामलला, आज अपनी जन्मभूमि अवधपुरी में नव्य-भव्य-दिव्य मंदिर में अपने भक्तों के भावों से भरे संकल्प व स्वप्नरूप सिंहासन पर प्रतिष्ठित होने जा रहे हैं। 500 वर्षों के सुदीर्घ अंतराल के बाद आए इस ऐतिहासिक और अत्यंत पावन अवसर पर आज पूरा भारत भाव-विभोर और भाव-विह्वल है। पूरी दुनिया की दृष्टि आज मोक्षदायिनी अयोध्याधाम पर है। हर मार्ग श्रीरामजन्मभूमि की ओर आ रहा है। हर आंख आनंद और संतोष के आंसू से भीगी है। हर जिह्वा पर राम-राम है। समूचा राष्ट्र राममय है। 

आखिर भारत वर्ष को इसी दिन की तो प्रतीक्षा थी। इसी दिन की प्रतीक्षा में दर्जनों पीढिय़ां अधूरी कामना लिए धराधाम से साकेतधाम को प्रस्थान कर गईं। आज श्रीरामलला के बालरूप विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा भर नहीं ही रही, अपितु लोक आस्था और जनविश्वास भी पुनर्प्रतिष्ठित हो रही है। अपने खोए हुए गौरव की पुनर्प्राप्ति कर अयोध्या नगरी विभूषित हो रही है। न्याय और सत्य की संयुक्त विजय का यह उल्लास अतीत की कटु स्मृतियों को विस्मृत कर, नए कथानक रच रहा है। यह पावन बेला समाज में समरसता की सुधा सरिता प्रवाहित कर रही है। 

श्रीरामजन्मभूमि मुक्ति महायज्ञ न केवल सनातन आस्था व विश्वास की परीक्षा का काल रहा, बल्कि, संपूर्ण भारत को एकात्मकता के सूत्र में बांधने के लिए राष्ट्र की सामूहिक चेतना जागरण के ध्येय में भी सफल सिद्ध हुआ। श्रीरामजन्मभूमि, संभवत: विश्व में पहला ऐसा अनूठा प्रकरण रहा होगा, जिसमें किसी राष्ट्र के बहुसंख्यक समाज ने अपने ही देश में अपने आराध्य की  जन्मस्थली पर मंदिर निर्माण के लिए इतने वर्षों तक और इतने स्तरों पर लड़ाई लड़ी हो। संन्यासियों, संतों, पुजारियों, नागाओं, निहंगों, बुद्धिजीवियों, राजनेताओं, वनवासियों सहित समाज के हर वर्ग ने जाति-पाति, विचार- दर्शन, पंथ-उपासना पद्धति से ऊपर उठकर राम काज के लिए स्वयं का उत्सर्ग किया। संतों ने आशीर्वाद दिया और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद जैसे सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों ने रूप-रेखा तय की, जनता को एकजुट किया। अंतत: संकल्प सिद्ध हुआ, व्रत पूर्ण हुआ। 

यह कैसी विडंबना थी कि जिस अयोध्या को ‘अवनि की अमरावती’ और ‘धरती का वैकुंठ’ कहा गया, वह सदियों तक अभिशप्त रही। सुनियोजित तिरस्कार झेलती रही। जिस देश में ‘रामराज्य’ को शासन और समाज की आदर्श अवधारणा के रूप में स्वीकार किया जाता रहा हो, वहीं राम को अपने अस्तित्व का प्रमाण देना पड़ा। जिस देश में राम नाम में सबसे बड़ा भरोसा हो, वहां राम की जन्मभूमि के लिए साक्ष्य मांगे गए। किंतु श्रीराम का जीवन मर्यादित आचरण की शिक्षा देता है। संयम के महत्व का बोध कराता है और यही शिक्षा ग्रहण कर रामभक्तों ने धैर्य नहीं छोड़ा। मर्यादा नहीं लांघी। दिन, माह, वर्ष, शताब्दियां बीतती गईं लेकिन हर एक नए सूर्योदय के साथ रामभक्तों का संकल्प और दृढ़ होता गया। सदियों की प्रतीक्षा के उपरांत भारत में हो रहे इस नवविहान को देख अयोध्या समेत भारत का वर्तमान आनंदित हो उठा है। 

भाग्यवान है हमारी पीढ़ी जो इस राम-काज के साक्षी बन रहे हैं और उससे भी बड़भागी हैं वो जिन्होंने सर्वस्व इस राम-काज के लिए समर्पित किया है और करते चले जा रहे हैं। हमारे व्रत की पूर्णाहुति के लिए हमारा मार्गदर्शन करने हेतु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का हृदय से अभिनंदन। 22 जनवरी 2024 का यह दिन मेरे निजी जीवन के लिए भी सबसे बड़े आनंद का अवसर है। मानस पटल पर अनेक स्मृतियां जीवंत हो उठी हैं। यह रामजन्मभूमि मुक्ति का संकल्प ही था, जिसने मुझे पूज्य गुरुदेव महंत अवैद्यनाथ जी महाराज का पुण्य सान्निध्य प्राप्त कराया। श्रीरामलला के विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा के इस आलौकिक अवसर पर आज मेरे दादागुरु ब्रह्मलीन महंत श्री दिग्विजयनाथ जी महाराज और पूज्य गुरुदेव ब्रह्मलीन महंत श्री अवैद्यनाथ जी महाराज एवं अन्य पूज्य संतगण भौतिक शरीर से साक्षी नहीं बन पा रहे किंतु, निश्चित ही आज उनकी आत्मा को असीम संतोष की अनुभूति हो रही होगी। मेरा सौभाग्य है कि जिस संकल्प के साथ मेरे पूज्य गुरुजन आजीवन संलग्न रहे, उसकी सिद्धि का मैं साक्षी बन रहा हूं। 

श्रीरामलला के श्रीरामजन्मभूमि मंदिर में विराजने की तिथि जबसे सार्वजनिक हुई है, हर सनातन आस्थावान 22 जनवरी की प्रतीक्षा में है। सम्पूर्ण राष्ट्र में ऐसे समवेत उल्लास और आनंदमय वातावरण का दूसरा उदाहरण हाल की कई शताब्दियों में देखने को नहीं मिलता। कोई ऐसा समारोह जहां शैव, वैष्णव, शाक्त, गाणपत्य, पात्य, सिख, बौद्ध, जैन, दशनाम शंकर, रामानंद, रामानुज, निम्बार्क, माध्व, विष्णु नामी, रामसनेही, घिसापंथ, गरीबदासी, अकाली, निरंकारी, गौड़ीय, कबीर पंथी सहित भारतीय आध्यात्मिकता, धर्म, संप्रदाय, पूजा पद्धति, परंपरा के सभी विद्यालयों के आचार्य, 150 से अधिक परंपराओं के संत गण, 50 से अधिक वनवासी, गिरिवासी, द्वीपवासी परंपराओं के प्रमुख व्यक्तियों उपस्थिति हो, जहां एक छत्र के नीचे राजनीति, विज्ञान, उद्योग, खेल, कला, संस्कृति, साहित्य आदि विविध विधाओं के लब्धप्रतिष्ठ जन एकत्रित हों, अभूतपूर्व है। दुर्लभ है। 

भारत के इतिहास में प्रथम बार पहाड़ों, वनों, तटीय क्षेत्रों, द्वीपों आदि के वासियों द्वारा एक स्थान पर ऐसे किसी समारोह में प्रतिभाग किया जा रहा है। यह अपने आप में अद्वितीय है। इस भव्य समारोह में आज श्रीरामलला के समक्ष यशस्वी प्रधानमंत्री जी 140 करोड़ भारतीयों की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करेंगे। अयोध्याधाम में आज लघु भारत के दर्शन होंगे। यह गौरवपूर्ण अवसर है। उत्तर प्रदेश की 25 करोड़ जनता की ओर से मैं पावन अयोध्याधाम में सभी का अभिनंदन करता हूं। प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के उपरांत अयोध्याधाम दुनियाभर में रामभक्तों, पर्यटकों, शोधार्थियों, जिज्ञासुओं के स्वागत हेतु तत्पर है।

इसी उद्देश्य के साथ प्रधानमंत्री जी की परिकल्पना के अनुसार अयोध्यापुरी में सभी आवश्यक व्यवस्थाएं की जा रही हैं। अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट, विस्तारित रेलवे स्टेशन, चारों दिशाओं से 04-06 लेन रोड कनैक्टिविटी, हैलीपोर्ट सेवा, सुविधाजनक होटल, अतिथि गृह उपलब्ध हैं। नव्य अयोध्या में पुरातन संस्कृति सभ्यता का संरक्षण तो हो ही रहा है, यहां भविष्य की जरूरतों को देखते हुए आधुनिक पैमाने के अनुसार सभी नगरीय सुविधाएं भी होंगी। अयोध्या की पंचकोसी, 14 कोसी तथा 84 कोसी परिक्रमा की परिधि में आने वाले सभी धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक स्थलों के पुनरुद्धार का कार्य त्वरित गति से हो रहा है। यह प्रयास सांस्कृतिक संवर्धन, पर्यटन को प्रोत्साहन तथा रोजगार के मौके भी सृजित करने वाले हैं। 

श्रीरामजन्मभूमि मंदिर की स्थापना भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का आध्यात्मिक अनुष्ठान है, यह राष्ट्र मंदिर है। नि:सन्देह! श्रीरामलला विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा राष्ट्रीय गौरव का ऐतिहासिक अवसर है। रामकृपा से अब कभी कोई भी अयोध्या की पारंपरिक परिक्रमा को बाधित नहीं कर सकेगा। अयोध्या की गलियों में गोलियां नहीं चलेंगी, सरयू जी रक्त रंजित नहीं होंगी। अयोध्या में कफ्र्यू का कहर नहीं होगा। यहां उत्सव होगा। रामनाम संकीर्तन गुंजायमान होगा। अवधपुरी में रामलला का विराजना भारत में रामराज्य की स्थापना की उद्घोषणा है। ‘सब नर करहिं परस्पर प्रीति, चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीति’ की परिकल्पना साकार हो उठी है। श्रीरामजन्मभूमि मंदिर में विराजित श्रीराम का बालरूप विग्रह हर सनातन आस्थावान के जीवन में धर्म के अनुपालन के लिए मार्ग प्रशस्त करता रहेगा। सभी जनता-जनार्दन को श्रीरामलला के विराजने की पुण्य घड़ी की बधाई। हमें संतोष है कि मंदिर वहीं बना है, जहां बनाने की सौगंध ली थी। जो संकल्प हमारे पूर्वजों ने लिया था, उसकी सिद्धि की बधाई। प्रभु श्रीराम की कृपा सभी पर बनी रहे।श्री राम: शरणम् मम्ज य-जय श्रीसीताराम!-योगी आदित्यनाथ (मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश)

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