Edited By ,Updated: 21 Jan, 2024 04:55 AM
समृद्ध भारत हमारा ए.आई. है। ए.आई. से मतलब एफ्लूएंट इंडिया (ए.आई.) है। ऐसे व्यक्ति जिनकी वाॢषक आय 10,000 अमरीकी डॉलर या लगभग 8,40,000 रुपए है वे समृद्ध भारत में आते हैं। मीडिया इस दावे पर जोर दे रहा है कि ए.आई.आश्चर्यजनक सी.ए.जी.आर. से बढ़ रहा है,...
समृद्ध भारत हमारा ए.आई. है। ए.आई. से मतलब एफ्लूएंट इंडिया (ए.आई.) है। ऐसे व्यक्ति जिनकी वाॢषक आय 10,000 अमरीकी डॉलर या लगभग 8,40,000 रुपए है वे समृद्ध भारत में आते हैं। मीडिया इस दावे पर जोर दे रहा है कि ए.आई.आश्चर्यजनक सी.ए.जी.आर. से बढ़ रहा है, ए.आई. उपभोग बढ़ा रहा है, और ए.आई. इस साल तक भारत को 5 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बना देगा (अभी तक अनिश्चित है क्योंकि लक्ष्य लगातार बदल रहा है)।
मैं ए.आई. के लिए खुश हूं। गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2026 तक ए.आई. का आकार 100 मिलियन (10 करोड़) या भारत की आबादी का लगभग 7 प्रतिशत होगा। गोल्डमैन सैक्स को ए.आई. की चिंता क्यों है और शेष (93 प्रतिशत) भारतीय लोगों की चिंता नहीं? क्योंकि गोल्डमैन सैक्स एक अमीर व्यक्तियों का बैंक है और, यदि ए.आई. एक अलग देश होता, तो ए.आई. एक मध्यम आय वाला देश और दुनिया का 15वां सबसे बड़ा देश होता। यह संपन्न भारतीय हैं (माननीय अपवादों को छोड़कर) जो बचत करते हैं, खर्च करते हैं, निवेश करते हैं, फिजूलखर्ची करते हैं, बर्बाद करते हैं और अपनी आय, संपत्ति और बाकी सभी चीजों के बारे में चिल्लाते हैं।
जब समृद्ध भारत खरीदता है और उपभोग करता है, तो यह भ्रम पैदा करता है कि सभी भारतीय खरीदते हैं और उपभोग करते हैं। ए.आई. पूरे भारत के लिए प्रॉक्सी बन गया है। शेष 93 प्रतिशत सामान्य आय अर्जित करते हैं और कुछ संतोषजनक जीवन जीते हैं, जबकि बहुमत दोनों जरूरतों को पूरा करने का प्रयास करता है। ऊपरी आधा, निचला आधा आइए आय को दर्शाने वाली तीन पारंपरिक संख्याओं को एक साथ रखें:
समृद्ध भारत- 8,40,000 रुपए प्रति वर्ष।
औसत आय-3,87,000 रुपए
प्रति व्यक्ति एन.एन.आई. 1,70,000 रुपए
यह एक छोटा-सा टुकड़ा है जो समृद्ध भारत है। प्रति व्यक्ति शुद्ध राष्ट्रीय आय (एन.एन.आई.) अर्थहीन है क्योंकि ए.आई. औसत को ऊपर की ओर खींचता है। अधिक प्रासंगिक आंकड़ा औसत आय का है। भारत के आधे लोगों (71 करोड़) की आय 3,87,000 रुपए प्रति वर्ष या उससे कम है, या लगभग 32,000 प्रति माह या उससे कम है। आप आर्थिक सीढ़ी पर जितना नीचे उतरेंगे, आमदनी उतनी ही कम होगी। निचली 10 प्रतिशत या 20 प्रतिशत आबादी एक महीने में क्या कमाती है? मेरा उदार अनुमान है कि निचले 10 प्रतिशत की प्रति व्यक्ति मासिक आय 6,000 रुपए होगी और निचले 11-20 प्रतिशत की 12,000 रुपए होगी। हमें उन परिस्थितियों के बारे में चिंता करनी चाहिए जिनमें वे रहते हैं, जिस प्रकार का भोजन वे खाते हैं, उन्हें जो स्वास्थ्य देखभाल मिलती है, इत्यादि-इत्यादि। यू.एन.डी.पी. के बहुआयामी गरीबी सूचकांक के अनुसार, 22.8 करोड़ लोग या लगभग 16 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे है। (नीति आयोग के मुताबिक, यह 11.28 फीसदी या 16.8 करोड़ है।)
गरीबों को भूल गए : समृद्ध भारत के 7 करोड़ लोगों का जश्न मनाते समय, हमें गरीबी में रहने वाले 3 गुणा अधिक भारतीयों (22.8 करोड़) की दयनीय स्थिति पर भी विचार करना चाहिए। गरीबों की पहचान करना मुश्किल नहीं।
*मनरेगा के तहत 15.4 करोड़ सक्रिय पंजीकृत श्रमिक, जिन्हें एक वर्ष में 100 दिन काम देने का वादा किया गया था, लेकिन पिछले 5 वर्षों में उन्हें औसतन केवल 49-51 दिन ही काम आबंटित किया गया।
*अधिकांश लाभार्थी जिन्हें एल.पी.जी. कनैक्शन दिया गया था, लेकिन वे एक वर्ष में औसतन केवल 3.7 सिलैंडर ही खरीद सकते थे;
*10.47 करोड़ किसानों में से जिनके पास 1-2 एकड़ से कम जमीन है या वे खेती करते हैं।
*(15 नवंबर, 2023 को यह संख्या घटकर 8.12 करोड़ हो गई) जिन्हें प्रति वर्ष 6000 रुपए का किसान सम्मान मिलता था।
*अधिकांश दिहाड़ी मजदूर जो कृषि मजदूर के रूप में लगे हुए हैं।
* ‘सड़क के लोग’ जो फुटपाथों या पुलों के नीचे रहते और सोते हैं।
*अधिकांश एकल महिला वृद्धावस्था पैंशनभोगी और अधिकांश व्यक्ति जो सीवर, नालियों और सार्वजनिक शौचालयों की सफाई जैसे तथाकथित ‘अस्वच्छ’ कार्य करते हैं; जानवरों की खाल उतारना, जूते बनाना या मरम्मत करना आदि।
*21-50 प्रतिशत लोग जो औसत आय से कम कमाते हैं, उनकी स्थिति निचले 20 प्रतिशत से थोड़ी ही बेहतर है। वे भूखे या बिना आश्रय के नहीं रहते बल्कि वे अनिश्चितता के कगार पर रहते हैं। अधिकांश निजी नौकरियों में कोई नौकरी सुरक्षा या सामाजिक सुरक्षा लाभ नहीं है। उदाहरण के लिए, सरकार के ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत 2.8 करोड़ घरेलू नौकर न्यूनतम वेतन से कम पर काम करते हैं (वास्तविक संख्या कई गुणा अधिक है)। सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों को छोड़कर बाकी लोग अपनी नौकरी खोने के डर में रहते हैं। 2023 में अकेले टैक. कंपनियों ने 2,60,000 उच्च योग्य कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया या उनकी छंटनी कर दी। 100 स्टार्ट-अप्स ने 24,000 नौकरियां खत्म कर दीं।
चकाचौंध से अंधा : पांच सितारा होटल, रिसॉर्ट, चमकदार मॉल, लग्जरी ब्रांड स्टोर, मल्टीप्लैक्स सिनेमा, प्राइवेट जेट, डैस्टिनेशन वैङ्क्षडग, लम्बोॢगनी (कीमत 3.22 से 8.89 करोड़ रुपए के बीच) कंपनी ने 2023 में रिकॉर्ड 103 कारें बेचीं), आदि के पास ए.आई. के पर्याप्त संरक्षक हैं। ए.आई. इस उच्च जीवन स्तर को बनाए रखने में सक्षम है क्योंकि ए.आई. देश की 60 प्रतिशत संपत्ति का मालिक है और राष्ट्रीय आय का 57 प्रतिशत अर्जित करता है। ए.आई. की चकाचौंध ने भाजपा सरकार को निचले 20 प्रतिशत लोगों की स्थिति के प्रति अंध बना दिया है क्योंकि इसे आर.एस.एस. नामक स्टील फ्रेम का अटूट समर्थन प्राप्त है। अमीर कॉर्पोरेट्स और चुनावी बांड की बदौलत इसका खजाना धन से भरा हुआ है और यह जानता है कि धर्म और अति-राष्ट्रवाद का एक शक्तिशाली मिश्रण कैसे बनाया जाता है। यह वास्तव में समृद्ध भारत के लिए सरकार है। भारत को सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र के विचार से दूर किया जा रहा है। विपक्षी दल और मीडिया भले ही सतर्क न हों लेकिन 93 प्रतिशत गरीब और मध्यम वर्ग देख रहा है और इंतजार कर रहा है।-पी. चिदम्बरम