राजा को अवश्य ही ‘प्रजा रक्षक ’ होना होगा

Edited By Updated: 03 May, 2025 05:50 AM

the king must be the  protector of the people

आज राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक माननीय श्री मोहन भागवत के सराहनीय बयान को पढ़ कर कुछ कहने का साहस हुआ। उन्होंने राजा के ‘प्रजारक्षक’ होने का आह्वान किया है। दूसरी बड़ी सटीक बात उन्होंने कही कि ‘अङ्क्षहसा’ निर्बल का नहीं बलशाली व्यक्ति का...

आज राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक माननीय श्री मोहन भागवत के सराहनीय बयान को पढ़ कर कुछ कहने का साहस हुआ। उन्होंने राजा के ‘प्रजारक्षक’ होने का आह्वान किया है। दूसरी बड़ी सटीक बात उन्होंने कही कि ‘अङ्क्षहसा’ निर्बल का नहीं बलशाली व्यक्ति का गुण है। दुष्टों पर की गई ‘हिंसा’ ‘अहिंसा’ ही है। वीर पुरुष सदैव दुष्टों का नाश करता है परन्तु वह ङ्क्षहसा नहीं बल्कि मानवता की रक्षा हेतु की गई ‘अहिंसा’ है। ‘अहिंसा’ को महात्मा गांधी ने अपनाया था। आइए हम सब मिल-बैठ कर राजा के ‘प्रजा रक्षक’ होने के विषय पर विचार करें। ‘राजनीति’  में ‘राजा के दैवी सिद्धांत का भरपूर वर्णन हुआ है।  ‘माइट इज राइट’ अर्थात ‘मतस्य न्याय’ की प्रधानता थी। जिसकी लाठी उसकी भैंस। ऐसी अव्यवस्था से समाज नहीं चलता। प्रजा ने मिल-बैठ कर अपने में से एक व्यक्ति को अपना राजा चुन लिया। फिर राजा और प्रजा में एक संधि हुई जिसे ‘राजा का दैवी सिद्धांत’ कहा गया है। राजा प्रजा के लिए ‘प्रभु’ है। संधि के अनुसार प्रजा ने कहा कि आज से आप हमारे राजा हुए। आप को हमारी रक्षा करनी होगी।

प्रजा जब आराम से सो जाए तो तुम्हें प्रजा की रक्षा करनी होगी। हमारे घर, खेत-खलिहान, हमारी बहू-बेटियों को तुम्हें सुरक्षा देनी होगी। यह सब करने के लिए प्रजा अपने वीर पुत्र राजा को देगी। शासन चलाने के लिए राजा को टैक्स देंगे। जब कभी राजा पर संकट आएगा, प्रजा राजा से पूर्ण सहयोग करेगी। राजा ने कहा ‘तथास्तु’ ऐसा ही होगा। समाज राजा के राज्य में आगे बढ़ता चला गया। लोकतंत्र में भी प्रजा अपने राजा का चुनाव एक निश्चित अवधि के लिए करती है परन्तु राजा का ‘दैवी सिद्धांत’ लोकतंत्र में और ज्यादा मूल्यवान हो गया। लोकतंत्र में राजा को अवश्य ही ‘प्रजा रक्षक’, ‘प्रजा कल्याणकारी’ और ‘प्रजा हित चिंतक’ होना होगा। दुष्टों का दमन करना ही होगा यद्यपि राजाओं, महाराजाओं और शहंशाहों के दौर समाप्त हो चुके हैं परन्तु लोकतंत्र में राजा को ‘प्रजा कल्याण’ लोगों के जीवन की ‘रक्षा’ अवश्य करनी होगी। अन्यथा अगले चुनाव में जनता प्रजा की रक्षा न करने वाले राजा को उतार फैंकेगी। 

लोकतंत्र में आई.ए.एस., आई.पी.एस., गुप्तचर, विष कन्याएं, बड़े-बड़े अफसर प्रशासन चलाने के लिए राजा के सहायक होते हैं। पुलिस और सेना चौबीस घंटे राजा के हुक्म को मानने के लिए तत्पर रहते हैं। इतने सारे साधन, ऐसी युक्तियां होने पर भी जम्मू-कश्मीर में 1980 से लेकर 2025 तक की अवधि में वहां से राजा ‘मिसिंग’ दिखाई दिया। 30,000 लोगों की बेशकीमती जिंदगियां जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के हाथों मारी गईं। कश्मीर घाटी के मालिक ‘कश्मीरी पंडितों’ को वहां से निष्कासित कर दिया गया। उन कश्मीरी पंडितों के डंगर-डोर, घर-बाहर, खेत-खलिहान पर आतंकवादियों ने कब्जा कर लिया।परन्तु न वहां राजा दिखाई दिया और न राजा का प्रशासन। सुना है राजा और प्रशासन की आंखें चौबीस घंटे खुली रहती हैं परन्तु जम्मू-कश्मीर राज्य में 1980 से 2025 के बीच न राजा दिखा न ही उसका प्रशासन। जम्मू-कश्मीर में सरेआम पाकिस्तानी झंडे लहराए जाते हैं, पाकिस्तान जिंदाबाद होता है। रोज सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ें होती हैं परन्तु आतंकवादियों की लाइनें खत्म ही नहीं होतीं। 

‘रक्तबीज’ की तरह पुन: पैदा हो जाते हैं। 1980 से सुनते आए हैं कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद आखिरी सांस ले रहा है। केवल 256 आतंकवादी ही शेष बचे हैं। उनका भी जल्द ही सफाया हो जाएगा। जम्मू-कश्मीर में ‘राजा के दैवी सिद्धांत’ को नरसंहार के रूप में पैरों तले रौंदा जा रहा है। जम्मू-कश्मीर में मानवता कराह रही है। राजा-प्रजा के बीच हुई संधि लाशों के ढेर पर खड़ी है। जम्मू-कश्मीर में राजा ने ‘प्रजारक्षक’ होने के सभी दावे ताक पर रख दिए हैं। कश्मीर घाटी में क्या सेना, क्या पुलिस, क्या कश्मीरी हिंदू, क्या कश्मीरी मुसलमान आतंकवाद की आंधी की चपेट में आ चुके हैं। 

मीडिया, प्रैस हो या टैलीविजन आतंकवादियों द्वारा नरसंहार के दृश्य तो दिखाएंगे परन्तु इसका अंत कहां होगा। इस पर चुप्पी साध लेंगे। राजा  जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के खात्मे की बात पर ललकारते तो अवश्य हैं परन्तु धरातल पर आंसू छोड़ती मानवता के दर्द को हृदय से कोई महसूस नहीं करता। शायद पहलगाम में लाल चूड़ा पहने नवविवाहिता युवती को उसके पति की लाश पर विलाप करते राजा ने देखा नहीं। हद है, कलमा पढ़ा कर, पुरुषों के अधोवस्त्र उतरवा कर ‘तुम हिंदू हो?’ पूछा गया। धड़ाधड़ गोलियों से आतंकवादियों ने मानवता को शर्मसार कर दिया। अचानक सैलानियों के घरों में मातम छा गया। रोज तिरंगे में लिपटे फौजियों, पुलिस कर्मचारियों के शव घरों में पहुंच रहे हैं। असहाय प्रजा खून के आंसू रो रही है। राजा कह तो जरूर रहा है हम आतंकवादियों को चुन-चुन कर मारेंगे।

पाकिस्तान को उसके घर में घुस कर मारेंगे परन्तु 1980 से 2025 आ गया न आतंकवादी खत्म हुए, न आतंकवादियों को पनाह और ट्रेङ्क्षनग देने वाले और न पाकिस्तान का अस्तित्व खत्म हुआ। जम्मू-कश्मीर में खूनी खेल बंद होना चाहिए। मोदी जी बड़े शक्तिशाली प्रधानमंत्री हैं। क्यों नहीं आतंकवाद का नामो-निशान मिटा देते? लकीरें पीटने से कुछ नहीं बनता। आर-पार की जंग हो जाने दो। राष्ट्र आतंकवाद के आगे नहीं झुक सकता। भारत में एक नया मुस्लिम देश नहीं बन सकता।-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)

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