सशक्तीकरण के लिए महिलाओं को काफी जद्दोजहद करनी पड़ी

Edited By ,Updated: 07 Jun, 2023 06:10 AM

women had to struggle a lot for empowerment

महिला सशक्तिकरण की बातें अब धरातल पर पूरी उतरने लगी हैं, जिसके लिए महिलाओं को काफी जद्दोजहद करनी पड़ी। एक ऐसा समय भी था, जब महिलाओं को घूंघट में रहना, घर के पुरुषों के बाद जो बच जाए वह खाना पड़ता था, पुरुषों से पहले खाना खाने को पाप या अपशगुन माना...

महिला सशक्तिकरण की बातें अब धरातल पर पूरी उतरने लगी हैं, जिसके लिए महिलाओं को काफी जद्दोजहद करनी पड़ी। एक ऐसा समय भी था, जब महिलाओं को घूंघट में रहना, घर के पुरुषों के बाद जो बच जाए वह खाना पड़ता था, पुरुषों से पहले खाना खाने को पाप या अपशगुन माना जाता था। घर में लड़का पैदा होने पर मिठाई या शक्कर आदि बांटना, जबकि लड़की के पैदा होने पर दाई मां द्वारा बाहर आकर घर के पुरुषों को धीरे से बताना कि आपके यहां बारात आई है। सीधे-सीधे लड़की का पैदा होना भी बताने में एक शर्म या डर महसूस किया जाता था। कई स्थानों पर बड़े परिवारों में तो लड़की के पैदा होते ही मारने की प्रथा भी थी। मगर अब ऐसा न के बराबर है। 

लड़कियों को स्कूल नहीं भेजा जाता था, घर में ही जो थोड़ा बहुत पढ़ लें, उनकी अपनी काबिलियत होती थी। लड़कियों के लिए घर के सारे काम करना- जैसे खाना पकाना, दही बिलोना, गाय-भैंस का काम करना, खेत से चारा आदि लाना होता था। उन्हें यही समझाया जाता था कि ससुराल में जाकर सबसे पहले सुबह उठना, सभी परिवार वालों की जरूरत का ध्यान रखना, सारे काम कर रात्रि को सबके बाद सोना। लड़कों को अधिक महत्व दिया जाता था। ऐसी मान्यता थी कि लड़के से ही वंश चलेगा, उसके पैदा होने के इंतजार में भले आधा दर्जन से अधिक लड़कियां हो जाएं। लड़का अपने यहां न हो तो परिवार या संबंधी से गोद ले लेना, ताकि मां-बाप को वारिस व बहनों को भाई मिल सके। 

आजादी के बाद से महिलाओं की स्थिति में  धीरे-धीरे काफी सुधार हुआ है। उन्हें भी स्कूल भेजा जाने लगा है। लड़कियां डॉक्टर, इंजीनियर, पायलट आदि बनने के साथ-साथ अंतरिक्ष तक भी पहुंच गई हैं। इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री बनीं। इसके बाद महिला पुरुषों की बराबरी करने लगी व पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चलने लगी। महिलाएं समाज के हर क्षेत्र में अपना योगदान देकर अपनी अहम भूमिका निभा रही हैं। इस समय देश की प्रथम महिला भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू हैं। इससे पूर्व प्रतिभा पाटिल भी देश की राष्ट्रपति रह चुकी हैं। हाल ही में हुई देश की सिविल सर्विसेज परीक्षा में पहले तीन स्थानों पर बेटियों ने बाजी मारी है। वहीं हिमाचल प्रदेश शिक्षा बोर्ड की जमा दो की परीक्षा में सभी स्ट्रीम्स में बेटियों ने टॉप किया है। जमा दो की ओवरआल परीक्षा में जिला ऊना हिमाचल प्रदेश की बेटी ओजस्विनी उपमन्यु ने पहला स्थान प्राप्त किया है। 

अब यह कहना गलत नहीं होगा कि लड़कियों ने लड़कों को पछाड़ दिया है। आज ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जहां महिलाओं ने अपना परचम नहीं लहराया। आर्मी सर्विसेज, सिविल सर्विसेज, ज्यूडिशियरी तक सभी जगहों पर महिलाओं का दबदबा कायम है। पंचायती राज में तो जिला परिषद तक महिलाओं के लिए आरक्षण है। इसके चलते अब पंच-सरपंच अधिकांश महिलाएं हैं। 
कहीं आरक्षण में तो कहीं ओपन  में, लोगों की पसंद अब महिलाएं बन चुकी हैं। अब लोग काफी जागरूक हो चुके हैं, लड़का-लड़की में फर्क नहीं समझते। आमतौर पर कई परिवारों में दो बेटियां या एक ही बेटी है। सरकार की तरफ से भी बेटियों को काफी प्रोत्साहन दिया जा रहा है, जिसके चलते ही यह संभव हो सका है।-सरोज मौदगिल

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