ब्याज दरों में बढ़ोतरी पर निर्णय लेने में पीछे नहीं रहा है रिजर्व बैंक: आशिमा गोयल

Edited By jyoti choudhary,Updated: 15 May, 2022 12:07 PM

rbi has not been  lagging  in taking decision on hike in interest rates

भारतीय रिजर्व बैंक ब्याज दरों में बढ़ोतरी पर निर्णय लेने में ‘किसी से पीछे'' नहीं रहा है। मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की सदस्य आशिमा गोयल ने रविवार को यह बात कही। गोयल ने कहा कि मुद्रास्फीति पर नियंत्रण के लिए ब्याज दरें बढ़ाने का फैसला लेने में...

बिजनेस डेस्कः भारतीय रिजर्व बैंक ब्याज दरों में बढ़ोतरी पर निर्णय लेने में ‘किसी से पीछे' नहीं रहा है। मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की सदस्य आशिमा गोयल ने रविवार को यह बात कही। गोयल ने कहा कि मुद्रास्फीति पर नियंत्रण के लिए ब्याज दरें बढ़ाने का फैसला लेने में केंद्रीय बैंक पीछे नहीं रहा है। उन्होंने कहा कि कोरोनो वायरस महामारी के बाद जब आर्थिक पुनरुद्धार अस्थिर था, तो ‘झटकों' से निपटने के लिए कुछ अधिक तेज प्रतिक्रिया कतई बुद्धिमानी नहीं होती। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री गोयल ने इस बात को स्वीकार किया कि रूस-यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न खाद्य और कच्चे तेल की मुद्रास्फीति की दृष्टि से भारत कमजोर या संवेदनशील है। उन्होंने कहा कि ब्याज दरों में वृद्धि का आर्थिक पुनरुद्धार के साथ तालमेल बैठाने की जरूरत है। 

रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने गत दिनों बिना तय कार्यक्रम के रेपो दर में 0.40 प्रतिशत की वृद्धि कर सभी को हैरान कर दिया था। अगस्त, 2018 के बाद केंद्रीय बैंक ने नीतिगत दरों में बढ़ोतरी की है। गोयल का यह बयान रिजर्व बैंक के इस कदम के कुछ दिन बाद आया है। उन्होंने कहा, ‘‘रिजर्व बैंक ने पिछले साल ‘तरलता' को पुनर्संतुलित करना शुरू कर दिया था, जबकि अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने अभी अपने ‘बही-खाते' को ‘कम करना' शुरू नहीं किया है।'' उन्होंने कहा कि यूक्रेन-रूस युद्ध की वजह से मुद्रास्फीति हाल में रिजर्व बैंक के संतोषजनक स्तर यानी छह प्रतिशत को पार कर गई है। उन्होंने कहा कि भारत में मांग और मजदूरी अभी ‘नरम' है। 

गोयल ने कहा कि अमेरिका में बड़े सरकारी खर्च के कारण प्रोत्साहन कुछ अधिक है। श्रम बाजार की स्थिति सख्त है। फेडरल रिजर्व भी पीछे नहीं था, रिजर्व बैंक भी ब्याज दर पर निर्णय लेने में पीछे नहीं छूटा है। उन्होंने कहा कि भारत में मुद्रास्फीति का रुख अमेरिका से भिन्न है। गोयल से यह पूछा गया था कि मुद्रास्फीति बढ़ने के बावजूद रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में वृद्धि पहले क्यों नहीं की और क्या इस मामले में रिजर्व बैंक अमेरिकी केंद्रीय बैंक से कुछ पीछे रहा है। इस महीने की शुरुआत में फेडरल रिजर्व ने नीतिगत दरों में 0.50 प्रतिशत की वृद्धि की है। घरेलू मोर्चे पर खुदरा मुद्रास्फीति इस साल अप्रैल में आठ साल के उच्चस्तर 7.79 प्रतिशत पर पहुंच गई है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि रिजर्व बैंक अपने मौद्रिक रुख को और कड़ा कर सकता है। अप्रैल में लगातार सातवें महीने मुद्रास्फीति चढ़ी है। सरकार ने रिजर्व बैंक को मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत (दो प्रतिशत ऊपर या नीचे) के दायरे में रखने का लक्ष्य दिया है। 

गोयल ने कहा कि यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि वास्तविक ब्याज दरें संतुलन के स्तर से बहुत इधर-उधर नहीं हों। दरों में अनुचित उतार-चढ़ाव को रोक कर वृद्धि और मुद्रास्फीति के बीच संतुलन बैठाने में मदद मिलेगी। उन्होंने यह भी बताया कि वैश्विक वित्तीय संकट के बाद, वास्तविक ब्याज दरें अत्यधिक नकारात्मक थीं। उन्होंने कहा कि ब्याज दरों में बढ़ोतरी का पुनरुद्धार के साथ तालमेल बैठाया जाना चाहिए। फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में और वृद्धि से भारत जैसे बाजारों से पूंजी निकासी की संभावना पर उन्होंने कहा कि भारत ने विदेशी पूंजी के प्रवेश को सीमित किया है। यह सुनिश्चित किया गया है कि यह पूंजी घरेलू बाजार के संदर्भ में बहुत बड़ी नहीं हो। उन्होंने कहा, ‘‘हम देख रहे हैं कि शेयर बाजारों में घरेलू और विदेशी निवेशक एक-दूसरे के उलट रुख अपना रहे हैं।'' 

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