War Attacks Israel's Economy: इजरायल की अर्थव्यवस्था पर युद्ध का वार, खर्च बेकाबू, सरकारी खजाना खाली होने की कगार पर

Edited By Updated: 20 Jun, 2025 12:24 PM

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मिडिल ईस्ट में जारी ईरान-इजरायल संघर्ष अब महज सैन्य टकराव नहीं रहा, बल्कि एक गंभीर आर्थिक जंग में तब्दील हो चुका है। इजरायल हर दिन करीब 63 अरब रुपए (725 मिलियन डॉलर) खर्च कर रहा है, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव बन गया है और सरकारी खजाना तेजी...

बिजनेस डेस्कः मिडिल ईस्ट में जारी ईरान-इजरायल संघर्ष अब महज सैन्य टकराव नहीं रहा, बल्कि एक गंभीर आर्थिक जंग में तब्दील हो चुका है। इजरायल हर दिन करीब 63 अरब रुपए (725 मिलियन डॉलर) खर्च कर रहा है, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव बन गया है और सरकारी खजाना तेजी से खाली होता जा रहा है।

यह खुलासा इजरायली सेना (IDF) के पूर्व वित्तीय सलाहकार ब्रिगेडियर जनरल (रिजर्व) रीम अमीनाच ने किया है। उनके अनुसार, युद्ध शुरू होने के सिर्फ पहले दो दिन में ही इजरायल ने 1.45 अरब डॉलर (लगभग ₹12,000 करोड़) खर्च कर दिए जिसमें हमला और रक्षा दोनों खर्च शामिल हैं। 

बढ़ सकता है खर्च

इजरायल ने ईरान पर जो पहला हमला किया, उसमें विमानों के उड़ने और हथियारों के इस्तेमाल का खर्च 593 मिलियन डॉलर था। बाकी पैसा मिसाइलों को रोकने वाले सिस्टम और रिजर्व सैनिकों को बुलाने में खर्च हुआ। अमीनाच ने यह भी कहा कि यह सिर्फ सीधा खर्च है। इनडायरेक्ट कॉस्ट, जैसे GDP पर असर अभी नहीं मापा जा सकता। असली बिल तो तब पता चलेगा जब नागरिक संपत्ति को हुए नुकसान और काम में कमी जैसे खर्चों को जोड़ा जाएगा।

अर्थव्यवस्था पर बुरा असर

युद्ध के चलते इजरायल की आर्थिक विकास की उम्मीदें कम हो गई हैं। वित्त मंत्रालय ने पहले ही इस साल के लिए GDP का 4.9% घाटा तय किया था। यह लगभग 27.6 अरब डॉलर है। देश के बजट में इमरजेंसी के लिए कुछ पैसा रखा गया था लेकिन वह ज्यादातर गाजा युद्ध में ही खर्च हो गया। अब ईरान के साथ चल रहे युद्ध के लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं है।

इस युद्ध के कारण मंत्रालय ने 2025 के लिए विकास दर का अनुमान 4.3% से घटाकर 3.6% कर दिया है। इसका मतलब है कि इजराइल की अर्थव्यवस्था पहले जितनी तेजी से बढ़ने की उम्मीद थी, अब उतनी तेजी से नहीं बढ़ेगी।

दुनिया को भी झटका

इस युद्ध का असर सिर्फ इजरायल-ईरान तक सीमित नहीं। 13 जून के बाद से कच्चे तेल की कीमतें 64-65 डॉलर से बढ़कर 74-75 डॉलर प्रति बैरल हो चुकी हैं। भारत जैसे तेल आयातक देशों के लिए यह बड़ा झटका है। रेटिंग एजेंसी ICRA के मुताबिक, अगर तेल कीमतें औसतन 10 डॉलर बढ़ती हैं, तो भारत को 13-14 अरब डॉलर का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ सकता है। इससे चालू खाता घाटा भी 0.3% तक बढ़ सकता है।
 

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