Edited By Prachi Sharma,Updated: 15 Oct, 2025 07:00 AM

Adi Shankaracharya Story: बहुत समय पहले की बात है आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच सोलह दिन तक लगातार शास्त्रार्थ चला। शास्त्रार्थ में निर्णायक थीं मंडन मिश्र की धर्मपत्नी देवी भारती। हार-जीत का निर्णय होना बाकी था, इसी बीच देवी भारती को किसी...
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Adi Shankaracharya Story: बहुत समय पहले की बात है आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच सोलह दिन तक लगातार शास्त्रार्थ चला। शास्त्रार्थ में निर्णायक थीं मंडन मिश्र की धर्मपत्नी देवी भारती। हार-जीत का निर्णय होना बाकी था, इसी बीच देवी भारती को किसी आवश्यक कार्य से कुछ समय के लिए बाहर जाना पड़ गया।
जाने से पहले देवी भारती ने दोनों ही विद्वानों के गले में एक-एक फूल माला डालते हुए कहा, ‘‘ये दोनों मालाएं मेरी अनुपस्थिति में आपकी हार और जीत का फैसला करेंगी।’’ ये कहकर भारती देवी वहां से चली गईं। शास्त्रार्थ की प्रकिया आगे चलती रही।
कुछ देर बाद देवी भारती अपना कार्य पूरा करके लौट आईं। उन्होंने अपनी निर्णायक नजरों से शंकराचार्य और मंडन मिश्र को बारी-बारी से देखा और अपना निर्णय सुना दिया। उनके फैसले के अनुसार आदि शंकराचार्य विजयी घोषित किए गए और उनके पति मंडन मिश्र की पराजय हुई।

सभी दर्शक हैरान हो गए कि बिना किसी आधार के इस विदुषी ने अपनी पति को ही पराजित करार दे दिया। एक विद्वान ने देवी भारती से पूछा कि हे देवी! आप तो शास्त्रार्थ के मध्य ही चली गई थीं, फिर वापस लौटते ही आपने ऐसा फैसला कैसे दे दिया ?
देवी भारती ने जवाब दिया, “जब भी कोई विद्वान शास्त्रार्थ में पराजित होने लगता है और उसे हार की झलक दिखने लगती है तो वह क्रुद्ध हो उठता है। मेरे पति के गले की माला उनके क्रोध के ताप से सूख चुकी है, जबकि शंकराचार्य की माला के फूल अभी भी पहले की भांति ताजे हैं। इसी से शंकराचार्य को विजयी घोषित किया गया है।’’
विदुषी देवी भारती का फैसला सुनकर सभी दंग रह गए। सबने उनकी काफी प्रशंसा की।
