Ahoi Ashtami: जानिए, कौन हैं अहोई माता और क्यों रखा जाता है कार्तिक कृष्ण अष्टमी पर व्रत ?

Edited By Updated: 09 Oct, 2025 02:00 PM

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Ahoi Ashtami 2025: अहोई अष्टमी केवल व्रत नहीं, बल्कि मातृत्व और विश्वास का उत्सव है। अहोई माता की कृपा से संतान का जीवन सुखी, दीर्घायु और मंगलमय बनता है। यह व्रत मां की आस्था और ममता की सर्वोच्च अभिव्यक्ति है, जो पीढ़ियों से हिंदू परंपरा में जीवित...

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Ahoi Ashtami 2025: अहोई अष्टमी केवल व्रत नहीं, बल्कि मातृत्व और विश्वास का उत्सव है। अहोई माता की कृपा से संतान का जीवन सुखी, दीर्घायु और मंगलमय बनता है। यह व्रत मां की आस्था और ममता की सर्वोच्च अभिव्यक्ति है, जो पीढ़ियों से हिंदू परंपरा में जीवित है। यह व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद कार्तिक कृष्ण अष्टमी को रखा जाता है। इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी आयु, उत्तम स्वास्थ्य और सुखमय जीवन के लिए उपवास रखती हैं।

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Ahoi Ashtami Importance अहोई अष्टमी व्रत का महत्व
अहोई अष्टमी व्रत मातृत्व प्रेम और संतान सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है। जो महिलाएं यह व्रत रखती हैं, अहोई माता उन्हें संतान की रक्षा, दीर्घायु और समृद्ध जीवन का वरदान देती हैं। इस दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले उपवास प्रारंभ करती हैं और पूरे दिन जल तक नहीं लेतीं। शाम को वे अहोई माता की पूजा करती हैं, फिर तारों को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करती हैं।

धार्मिक विश्वास है कि इस व्रत से बच्चों पर आने वाले संकट टल जाते हैं और परिवार में खुशहाली व सुरक्षा बनी रहती है। निःसंतान महिलाएं यह व्रत रखकर संतान सुख की प्राप्ति की प्रार्थना करती हैं।

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Ahoi Mata Kaun Hain अहोई माता कौन हैं?
अहोई माता को मां पार्वती का स्वरूप माना गया है। वे संतान की रक्षक और जीवनदाता देवी हैं। उनका स्वरूप अक्सर साही (नेवला या साहीन) के रूप में दर्शाया जाता है, जो उनकी मातृत्व करुणा और क्षमा का प्रतीक है।
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Ahoi Ashtami Vrat Katha अहोई अष्टमी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक महिला जंगल में मिट्टी खोदते समय गलती से साही के बच्चों को मार देती है। इससे दुखी होकर वह देवी से क्षमा मांगती है। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर देवी उसे आशीर्वाद देती हैं कि उसकी संतान सदा सुरक्षित रहेगी। तभी से महिलाएं अहोई माता की आराधना कर संतान की कुशलता, स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना करती हैं।

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Ahoi Ashtami Puja Vidhi अहोई अष्टमी पूजा विधि
व्रती महिलाएं प्रातः स्नान कर अहोई माता का संकल्प लेती हैं।
दीवार पर अहोई माता और साही का चित्र बनाकर पूजन किया जाता है। वर्तमान समय में बाजार से कैलण्डर मिलते हैं।
कथा सुनने के बाद सात अनाजों से पूजा की जाती है।
संध्या के समय तारों को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाता है।

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