Edited By Prachi Sharma,Updated: 23 Aug, 2025 07:00 AM

सिकंदर महान ने एक बार आश्चर्य प्रकट करते हुए दार्शनिक डायोजनीज से पूछा, ‘क्या मैं जान सकता हूं कि आप इतने आनंदित क्यों रहते हो ? ’
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Alexander The Great Story: सिकंदर महान ने एक बार आश्चर्य प्रकट करते हुए दार्शनिक डायोजनीज से पूछा, ‘क्या मैं जान सकता हूं कि आप इतने आनंदित क्यों रहते हो ? ’
डायोजनीज ने प्रश्न के उत्तर में सिकंदर से उलटा प्रश्न किया- सिकंदर मैं तुझसे पूछता हूं कि तू इतना दुखी क्यों है ? तेरे पास किस चीज की कमी है ? तेरे पास धन, ऐश्वर्य, मान-सम्मान, राजपाट सभी कुछ है।

सिकंदर ने उत्तर दिया, ‘मेरी इच्छा विश्वविजय की है। मैं सारे जगत का सम्राट बनना चाहता हूं। मैं सारा विश्व जीतने के अभियान पर निकला हूं। जब तक मैं पूरा विश्व नहीं जीत लेता मैं दुखी हूं। मैं बेचैन हूं।’
डायोजनीज ने कहा, ‘सिकंदर, मान लो कि तुमने सारा विश्व जीत लिया है, तुम विश्व विजेता बन गए हो। अब बताओ तुम क्या करोगे ?’
सिकंदर को तत्काल कोई जवाब नहीं सूझा उसने कभी भी इस बारे में तो सोचा तक न था कि विश्व विजेता बनने के बाद मैं क्या करूंगा ? सिकंदर थोड़ा ठिठका। उसने थोड़ी देर तक कुछ सोचा। फिर सोचकर बोला-डायोजनीज, उसके बाद मैं भी तुम्हारी तरह आनंदित होऊंगा और आराम करूंगा।
डायोजनीज हंसा और हंसता ही रहा।

फिर कुछ देर बाद बोला, ‘सिकंदर अगर तुम इसी तरह बेफिक्र हो, आनंदित हो, आराम ही करना चाहते हो तो उसमें अभी क्या अड़चन है। वह तो तुम अभी इसी समय से कर सकते हो। उसके लिए तुम्हें किसने कहा कि पहले दुनिया जीतनी पड़ेगी। तुम चाहो तो अभी इसी समय मेरे साथ बैठकर बेफिक्र हो आराम कर सकते हो, आनंदित हो सकते हो। आनंद का असली अर्थ मन की शांति है, धन-दौलत नहीं।’ यह सुनने के बाद सिकंदर को जवाब देते न बना।
