Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 May, 2025 12:11 PM

Apara Ekadashi 2025: अपरा एकादशी केवल पुण्य प्राप्त करने या पाप मिटाने का दिन नहीं है। यह आत्मा की अंतःशुद्धि का दिन है। यह दिन हमें सिखाता है कि पाप मिटाना ही लक्ष्य नहीं है बल्कि पुनः पाप न हो, यह संकल्प भी लेना अवश्यक है।
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Apara Ekadashi 2025: अपरा एकादशी केवल पुण्य प्राप्त करने या पाप मिटाने का दिन नहीं है। यह आत्मा की अंतःशुद्धि का दिन है। यह दिन हमें सिखाता है कि पाप मिटाना ही लक्ष्य नहीं है बल्कि पुनः पाप न हो, यह संकल्प भी लेना अवश्यक है। विष्णु धर्मोत्तर के अनुसार अपरा एकादशी की पूजा को चित्त-एकाग्रता के चरम अभ्यास का प्रवेशद्वार कहा गया है। योगदृष्टि से देखा जाए तो यह एकादशी मणिपुर चक्र को सक्रिय करती है। जो कि पाचन, आत्मबल, और कर्म-शक्ति का केंद्र है। इस दिन यदि कोई साधक सच्चे अर्थों में ध्यान और मौन का अभ्यास करे तो उसकी अंत:शक्ति का जागरण संभव होता है। तंत्र शास्त्र में अपरा एकादशी को नारायण मंडल प्रवेश काल कहा गया है। यह काल ऐसा होता है जिसमें मनुष्य की कर्मिक रक्षा ऊर्जा (Karmic Shield) बनती है और पुरुषार्थ की धारा प्रवाहित होती है।

Apara Ekadashi Mantra अपरा एकादशी मंत्र: अपरा एकादशी के दिन नारायण कवच या विशिष्ट विष्णु बीज मंत्रों का जाप विशेष फलदायी माना गया है। यदि कोई व्यक्ति एक कटोरी जल में देख कर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का 1088 बार जाप करता है। फिर उस जल को तुलसी पर अर्पित करता है। तो यह प्रयोग उसे स्मृति शुद्धि देता है यानी पुराने मानसिक घाव और आत्मग्लानि से मुक्ति मिलती है।

Story of Apara Ekadashi Vrat अपरा एकादशी व्रत कथा: महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। राजा का छोटा भाई वज्रध्वज बड़े भाई से द्वेष रखता था। एक दिन अवसर पाकर इसने राजा की हत्या कर दी और जंगल में एक पीपल के नीचे गाड़ दिया। अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल पर रहने लगी। मार्ग से गुजरने वाले हर व्यक्ति को आत्मा परेशान करती। एक दिन एक ऋषि इस रास्ते से गुजर रहे थे। इन्होंने प्रेत को देखा और अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जाना।

ऋषि ने पीपल के पेड़ से राजा की प्रेतात्मा को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया। राजा को प्रेत योनी से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा और द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य प्रेत को दे दिया। एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त करके राजा प्रेतयोनी से मुक्त हो गया और स्वर्ग चला गया।
