Vaikundh Ekadashi 2025 : जानिए कैसे खोलता है यह व्रत स्वर्ग के द्वार, पढ़ें कथा

Edited By Updated: 30 Dec, 2025 01:40 PM

vaikundh ekadashi 2025

Vaikundh Ekadashi 2025 : हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है लेकिन वैकुंठ एकादशी को सभी एकादशियों में महा-एकादशी का दर्जा प्राप्त है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह वह पावन दिन है जब स्वयं भगवान श्री हरि विष्णु के निवास स्थान वैकुंठ के...

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Vaikundh Ekadashi 2025 : हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है लेकिन वैकुंठ एकादशी को सभी एकादशियों में महा-एकादशी का दर्जा प्राप्त है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह वह पावन दिन है जब स्वयं भगवान श्री हरि विष्णु के निवास स्थान वैकुंठ के द्वार भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं। साल 2025 में यह तिथि 31 दिसंबर को पड़ रही है। आइए जानते हैं क्या वाकई इस दिन स्वर्ग के द्वार खुलते हैं और इस व्रत का इतना अधिक महत्व क्यों है।

Vaikundh Ekadashi 2025

क्या सच में खुलते हैं स्वर्ग के द्वार ?
पद्म पुराण के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने स्वयं कहा था कि जो भी भक्त इस दिन सच्ची श्रद्धा से व्रत रखेगा और भगवान के दर्शन करेगा, उसके लिए वैकुंठ के द्वार खुले रहेंगे। दक्षिण भारत के प्रसिद्ध मंदिरों, जैसे श्रीरंगम और तिरुपति बालाजी में इस दिन एक विशेष द्वार खोला जाता है जिसे वैकुंठ द्वारम कहा जाता है। भक्तों की ऐसी धारणा है कि इस द्वार से गुजरने पर व्यक्ति को सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।

Vaikuntha Ekadashi Vrat Katha  वैकुंठ एकादशी व्रत कथा 
प्राचीन काल की बात है, गोकुल नगर में वैखानस नाम के एक अत्यंत प्रतापी और न्यायप्रिय राजा राज्य करते थे। उनके राज्य में धर्म का बोलबाला था और वे अपनी प्रजा को अपनी संतान के समान प्रेम करते थे। राजा स्वयं भी भगवान विष्णु के परम भक्त थे।

राजा का स्वप्न और पिता की पीड़ा एक रात जब राजा गहरी निद्रा में थे, तो उन्हें एक विचलित करने वाला स्वप्न आया। उन्होंने देखा कि उनके स्वर्गीय पिता यमराज के नरक में भीषण यातनाएं झेल रहे हैं। उनके पिता ने रुदन करते हुए राजा से प्रार्थना की- हे पुत्र ! मेरे पूर्व जन्मों के बुरे कर्मों के कारण मुझे यहाँ अत्यंत कष्ट हो रहे हैं। कृपया मुझे इस नरक से मुक्ति दिलाने का कोई उपाय करो।"

Vaikundh Ekadashi 2025

ऋषि पर्वत का मार्गदर्शन सुबह होते ही राजा अत्यंत व्याकुल हो उठे। उन्होंने विद्वान ब्राह्मणों से सलाह ली, जिनके सुझाव पर वे पर्वत ऋषि के आश्रम पहुँचे। राजा ने ऋषि को अपना स्वप्न सुनाया और पिता की मुक्ति का मार्ग पूछा। ऋषि ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा और बताया कि राजा के पिता ने पिछले जन्म में एक बड़ी भूल की थी, जिसके कारण वे आज कष्ट भोग रहे हैं।

वैकुंठ एकादशी का फल और मुक्ति ऋषि ने राजा को उपाय सुझाते हुए कहा, "राजन! मार्गशीर्ष मास की वैकुंठ एकादशी आने वाली है। तुम पूर्ण विधि-विधान से इस एकादशी का व्रत करो और उस व्रत से प्राप्त होने वाले पुण्य फल को अपने पिता के नाम दान (संकल्प) कर दो। इसी पुण्य के प्रताप से तुम्हारे पिता के पाप कटेंगे और उन्हें वैकुंठ की प्राप्ति होगी।"

राजा ने ऋषि की आज्ञा का पालन करते हुए पूरी श्रद्धा से व्रत रखा, रात्रि जागरण किया और अंत में अपने व्रत का पुण्य पिता को अर्पित कर दिया। व्रत के प्रभाव से तत्काल उनके पिता को नरक की यातनाओं से मुक्ति मिल गई। आकाश से देवताओं ने पुष्प वर्षा की और राजा ने देखा कि उनके पिता दिव्य विमान में बैठकर स्वर्ग जा रहे हैं। जाते समय उनके पिता ने राजा को यशस्वी होने और अंत में मोक्ष प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया।

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