बाणगंगा का माता वैष्णो से क्या है संबंध, जानिए यहां?

Edited By Jyoti,Updated: 21 Apr, 2022 01:13 PM

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​​​​​​​माता वैष्णो देवी, जिनके न केवल देश में बल्कि पूरी दुनिया में अगिनत भक्त पाए जाते हैं। इनकी उपासना करने वाले दूर दूर से

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माता वैष्णो देवी, जिनके न केवल देश में बल्कि पूरी दुनिया में अनगिनत भक्त पाए जाते हैं। इनकी उपासना करने वाले दूर दूर से श्री माता वैष्णो देवी धाम जो जम्मू से आगे कटरा में स्थित हैं, के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। परंतु वहीं आज भी ऐसे कई लोग हैं, जो माता वैष्णो देवी की उपासना तो करते हैं लेकिन इससे जुड़ी जानकारी से पूरी तरह अवगत नहीं है। तो तैयार हो जाइए क्योंकि आज एक बार फिर अपनी वेबसाइट के माध्यम से हम बताने जा रहे हैं, श्री माता वैष्णो देवी की गुफा तक पहुंचने वाले शुरुआती मार्ग स्थल की, जिसे बाणगंगा के नाम से जाना जाता है। इस जानकारी में न केवल इस स्थल के बारे में बात होगी बल्कि हम आपको ये भी बताएंगे कि आखिर किस कारण से माता वैष्णवी को त्रिकुटा पर्वत पर गुफा में जाकर 9 माह तक रहना पड़ा था?

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यहां जानिए बाणगंगा से जुड़ी पौराणिक मान्यता व कथा-

बता दें श्री वैष्णो देवी धाम जाने के लिए सबसे पहले जम्मू जाना पड़ता है, जिसके बाद कटरा से माता वैष्णो धाम तक पहुंचने की यात्रा शुरु होती है। जिस दौरान सबसे पहले भक्त बाणगंगा के दर्शन करते हैं, तथा इसमें आस्था की डुबकी लगाकर खुद को पावन व शुद्ध करते हैं। ऐसी मान्यता है जिस तरह हरिद्वार में स्नान करने से व्यक्ति के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, ठीक उसी तरह यहां स्नान करने से जातक को अपने पापों से छुटकारा मिलता है। लेकिन इस स्थल से जुड़ी धार्मिक व पौराणिक कथा क्या है, इस बारे में लोग नहीं जानते। प्रचलित धार्मिक कथाओं के अनुसार माता वैष्णो अपने परम भक्त श्रीधर को आशीर्वाद देने वैष्णी नामक कन्या के रूप में उसके घर पधारी थी, जहां श्रीधर के यहां भैरव नाथ भी मौजूद था।

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ऐसा कहा जाता है कि भैरव नाथ उस कन्या की सच्चाई जानने के लिए बेहद उत्सुक हो गया, और पूछने लगा कि आखिर तू कौन हैं, ऐसे कहते हुए जैसे ही भैरवनाथ  वैष्णवी नामक कन्या यानि मां वैष्णो को स्पर्श करना चाहा, कन्या रूपी मां अंतर्ध्यान हो गईं, और गगन मार्ग से होते हुए धरती पर एक स्थान पर पहुंची, जिसे वर्तमान समय में बाणगंगा के नाम से जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब माता धरती पर पहुंची तो वहां उनकी भेंट पवनपुत्र हनुमान से हुई।  जिन्हें उन्होंने इस स्थान पर रहने का आदेश दिया। परंतु हनुमान जी ने अपनी मां से विनती करी कि इस घने जंगल में पानी के बिना कैसे रह पाऊंगा।

तब माता वैष्णो देवी ने अपने तरकश से बाण निकालकर उसे धरती पर मारा और गंगा प्रकट की। साथ ही यही पर माता ने अपने केस धोए। मान्यताओं के अनुसार इसलिए इस जगह को बाणगंगा के नाम से जाना जाता है। बता दें बाणगंगा से थोड़ी सी आगे मां वैष्णवी ने अपने चरण चिन्ह छोड़े, जो जगह आज से चरण पादुका के नाम से प्रसिद्ध। इसके अलावा बता दें इस समय में इस स्थल पर प्राचीन मंदिर निर्मित है। माता की यात्रा करने वाले भक्त यहां मां के चरणों की धूलि माथे लगा आगे की यात्रा संपन्न करते हैं।

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