Bhadrapada Amavasya 2025: भाद्रपद अमावस्या पर खुलेंगे पुण्य के द्वार, तारीख, मुहूर्त और नियम जानें एक Click में

Edited By Updated: 18 Aug, 2025 06:58 AM

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Bhadrapada Amavasya 2025: हिंदू पंचांग में हर माह की अमावस्या का विशेष महत्व बताया गया है। अमावस्या तिथि को पितरों को स्मरण करने, दान-पुण्य करने और आत्मिक शांति के लिए श्रेष्ठ माना गया है। भाद्रपद मास की अमावस्या भी ऐसी ही एक तिथि है

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Bhadrapada Amavasya 2025: हिंदू पंचांग में हर माह की अमावस्या का विशेष महत्व बताया गया है। अमावस्या तिथि को पितरों को स्मरण करने, दान-पुण्य करने और आत्मिक शांति के लिए श्रेष्ठ माना गया है। भाद्रपद मास की अमावस्या भी ऐसी ही एक तिथि है, जिसमें स्नान, दान और पूजा का विशेष फल मिलता है। इसे कुशग्रहणी अमावस्या या पिठोरी अमावस्या भी कहते हैं। वर्ष 2025 में यह तिथि अगस्त माह में पड़ रही है। अक्सर लोगों के मन में यह सवाल होता है कि यह अमावस्या 22 अगस्त को मानी जाएगी या 23 अगस्त को। आइए विस्तार से जानते हैं- 

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भाद्रपद अमावस्या 2025 की सही तिथि और समय

अमावस्या तिथि का आरंभ- 22 अगस्त 2025, शुक्रवार को प्रातः 11 बजकर 55 मिनट पर।
अमावस्या तिथि का समापन- 23 अगस्त 2025, शनिवार को प्रातः 11 बजकर 35 मिनट पर।

धार्मिक नियमों के अनुसार किसी भी तिथि को मान्य तभी माना जाता है जब वह सूर्योदय के समय विद्यमान हो। इस गणना से स्पष्ट है कि सूर्योदय के समय 23 अगस्त को अमावस्या रहेगी। इसलिए भाद्रपद अमावस्या 23 अगस्त 2025, शनिवार को ही मनाई जाएगी।

अमावस्या का महत्व

पितृ तर्पण और श्राद्ध- अमावस्या को पितरों का दिन कहा गया है। इस दिन जल और तिल तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
दान-पुण्य का फल- अमावस्या पर किया गया दान अनेक गुना फल देता है। गरीबों को भोजन, वस्त्र और दक्षिणा देना विशेष पुण्यकारी माना गया है।
आध्यात्मिक साधना – यह दिन ध्यान और उपासना के लिए श्रेष्ठ है। अमावस्या की रात्रि को साधना करने से मन शांत होता है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
दोष निवारण – ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अमावस्या पर स्नान और पूजा करने से पितृदोष व ग्रहदोष में कमी आती है।

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पूजा-विधि और नियम

स्नान और संकल्प
सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पवित्र नदी, सरोवर या घर पर ही गंगाजल मिले जल से स्नान करें। स्नान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें और अमावस्या व्रत का संकल्प लें।

पितृ तर्पण
तिल, कुशा और जल मिलाकर पितरों के नाम से अर्पित करें। इस प्रक्रिया को तर्पण कहा जाता है। इसे दक्षिण दिशा की ओर मुख करके किया जाता है।

दान और अन्नदान
भोजन, वस्त्र, अनाज या धन का दान करना बहुत फलदायी है। ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन कराना विशेष पुण्यदायी माना जाता है।

व्रत और उपवास
कई लोग इस दिन उपवास रखते हैं। फलाहार कर सकते हैं और दिन भर भगवान विष्णु या शिव का स्मरण करते हैं।

नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति
अमावस्या को दीपदान का भी विशेष महत्व है। पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाना नकारात्मक शक्तियों को दूर करता है।

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