क्या आप जानते हैं क्या होती है भात पूजा, नहीं तो पढ़ ये जानकारी

Edited By Jyoti,Updated: 14 May, 2022 02:32 PM

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यूं तो लोग शादी, नौकरी, संतान आदि के सुख के लिए कई तरह की पूजा, उपाय और टोटके करते हैं। आपने सुना होगा कि जब किसी जातक की कुंडली में मांगलिक योग बनता है। तो ऐसे जातकों को ज्योतिष विवाह के पूर्व भात पूजा करने

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यूं तो लोग शादी, नौकरी, संतान आदि के सुख के लिए कई तरह की पूजा, उपाय और टोटके करते हैं। आपने सुना होगा कि जब किसी जातक की कुंडली में मांगलिक योग बनता है। तो ऐसे जातकों को ज्योतिष विवाह के पूर्व भात पूजा करने की सलाह देते हैं। ऐसे में बिना किसी पूजा का पूर्ण ज्ञान न होने से पूजा करनी घातक साबित हो सकता है। इसलिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि भात पूजा क्या होती है और जानेंगे कि इस पूजा को कैसे किया जाता है?
सबसे पहले ये जान लीजिए कि कुंडली में मांगलिक योग कब बनता है?
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ज्योतिषों अनुसार जब कुंडली में लग्न चौथे, 7वें, 8वें या 12वें स्थान में मंगल बैठें हो तो उस जातक की कुंडली में मांगलिक योग बनता है और उस जातक को मांगलिक कहा जाता है। मांगलिक कुंडली वालों को विवाह के उपरांत भात पूजा करने की सलाह दी जाती है।

क्या है भात पूजा, कैसे करते हैं?
भात यानी चावल। चावल से शिवलिंग रूपी मंगल देव की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग मांगलिक होते हैं। उन्हें विवाह के पहले भात पूजा अवश्य करनी चाहिए। बता दें, पूजा में सर्वप्रथम पूजे जाने देव गणेश और माता पार्वती का पूजन होता है।  इसके बाद नवग्रह पूजन होता है फिर कलश पूजन एवं शिवलिंग रूपी भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। अभिषेक करते हुए वैदिक मंत्रों के उच्चारण द्वारा देवी - देवताओं के साथ नवग्रहों का आवाहन किया जाता है। फिर शिव शंकर को भात अर्पित करते हैं। विधिवत रूप से भात पूजन, अभिषेक और मंगल जाप के बाद फिर आरती उतारी जाती है।
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इस पूजा के संक्षिप्त में एक कथा का वर्णन मिलता है जो इस प्रकार है- 
कथा के अनुसार, एक बार अंधकासुर नामक दैत्य ने शिवजी की कठोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न कर लिया था। शिवजी ने उसे वरदान दिया कि उसके रक्त से सैंकड़ों दैत्य जन्म ले सकेंगे। इस वरदान के बाद अंधकासुर ने उज्जैन नगरी में तबाही मचा दी थी। यही नहीं उस दैत्य ने ऋषि और मुनियों सहित अन्य लोगों का वध करना शुरु कर दिया। ये सब देख देवी - देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की तो शिवजी ने अंधकासुर से युद्ध किया। युद्ध के दौरान शिवजी का पसीना बहने लगा। भगवान शिव के पसीने की बूंदों की गर्मी से उज्जैन की धरती फट कर दो भागों में विभक्त हो गई और मंगल ग्रह का जन्म हुआ।
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महादेव ने दैत्य का संहार किया और उसकी रक्त की बूंदों को नव उत्पन्न मंगल ग्रह ने अपने अंदर समा लिया। कहते हैं इसलिए ही मंगल की धरती लाल रंग की होती है। जब मंगल उग्र अंगारक स्वभाव के हो गए तब सभी देवताओं सहित सभी ऋषि मुनियों सर्वप्रथम मंगल की उग्रता की शांति के लिए दही और भात का लेपन किया। क्योंकि दही और भात दोनों ही पदार्थ ठंडे होते हैं जिसके कारण मंगल देव की उग्रता शांत हो गई। इसी कारण जिन जातकों की कुंडली में मंगल ग्रह अति उग्र होता है उनको मंगल भात पूजा की सलाह दी जाती है।
 

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