Chanakya Niti: क्या हैं खुशहाल जीवन के मंत्र?

Edited By Updated: 12 Sep, 2022 03:44 PM

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हर किसी व्यक्ति के जीवन में कई तरह के उतार-चढाव आते हैं। कभी दुख आते हैं तो कभी सुख परंतु हर व्यक्ति यही चाहता है उसके जीवन में हमेशा सुख ही सुख हो। इसके लिए व्यक्ति हर तरह का प्रयास भी करता है परंतु कुछ ही लोग हैं

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हर किसी व्यक्ति के जीवन में कई तरह के उतार-चढाव आते हैं। कभी दुख आते हैं तो कभी सुख परंतु हर व्यक्ति यही चाहता है उसके जीवन में हमेशा सुख ही सुख हो। इसके लिए व्यक्ति हर तरह का प्रयास भी करता है परंतु कुछ ही लोग हैं जो इसमें कामयाब होते हैं। अतः जो लोग न कामयाब होते हैं वो हिम्मत हार कर बैठ जाते हैं। तो आपको बता दें आचार्य चाणक्य ऐसे हालातों के लिए अपने नीति सूत्र में कुछ सूत्र बताए हैं। बता दें आचार्य चाणक्य नीति सूत्र के एक श्लोक में सुखी जीवन के मंत्र वर्णित है। इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य ने मानव जीवन के कैसे बेहतर व सुखी बनाया जा सकता है उस बारे में बाखूबी बताया है। चाणक्य के अनुसार जीवन का सबसे बड़ा सुख चार चीजों में छिपा है, इन्हें जिसने अपना लिया उसका घर स्वर्ग के समान बन जाता है. तो आइए जानें कौन से है वे सुखी जीवन के रहस्य- 
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चाणक्य नीति श्लोक- 
क्षान्ति तुल्यं तपो नास्ति सन्तोषान्न सुखं परम् ।
नास्ति तृष्णा समो व्याधिः न च धर्मो दयापरः ॥

आचार्य चाणक्य के अनुसार किसी भी व्यक्ति के जीवन में कई तरह की मुसीबतें आती हैं, जिस कारण व्यक्ति अपने चारों ओर केवल परेशानी दिखती है। ऐसे में चाणक्य का कहना है कि व्यक्ति को हमेशा शांति से हर समस्या का समाधान करना चाहिए। चाणक्य के अनुसार शांति से बड़ा कोई तप नहीं होता। परंतु वर्तमान समय में लोगों के पास हर तरह भौतिक सुख तो है लेकिन मन की शांति नहीं है। जो हर एक व्यक्ति के जीवन में बड़ी से बड़ी समस्या का सबसे बड़ा कारण है क्योंकि जिस व्यक्ति का मन अशांत होता है वो तमाम सुविधाएं होने पर भी अपने जीवन खुश नहीं हो पाता है। अतः मन को शांत रखना बेहद आवश्यक है और इसके लिए जरूरी है मन को नियंत्रित करना। कबीरदास जी द्वारा कहा गया है कि केवल हाथ में माला फेरने या कीर्तन करने से नहीं बल्कि एकाग्र मन से प्रभु की पाया जा सकता है।
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आचार्य चाणक्य के अनुसार मनुष्य जीवन में संतुष्टि मानव का सबसे बड़ा धन और शक्ति मानी गई है। ऐसा कहा जाता है कि एक सफल जीवन की तुलना में एक संतुष्ट जीवन अधिक श्रेष्ठ है, क्योंकि सफलता का आंकलन सदैव दूसरों के द्वारा किया जाता है परंतु संतुष्टि हमेशा स्वयं के मन और मस्तिष्त से अनुभव की जाती है। चाणक्य के अनुसार संतुष्टि के लिए प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपनी इंद्रियों पर काबू व नियंत्रण पाना अधिक जरूरी है। 
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चाणक्य नीति के उपरोक्त श्लोक के अनुसार तृष्णा उस बीमारी की तरह है जिसका समय पर इलाज न किया जाए तो  तो वो जीवनभर आपको परेशान करती है। ठीक उसी तरह किसी भी चीज़ की तृष्णा या किसी चीज़ को पाने की अधिक लालसा व्यक्ति को हमेशा गलत मार्ग पर ले जाती है, जिससे न केवल उस व्यक्ति का सारा सुख-चैन छिन जाता है बल्कि जीवन तहस-नहस हो जाता है। चाणक्य कहते हैं कि लालच में व्यक्ति के सोचने की क्षमता क्षीण हो जाती है, जिस कारण वो बर्बाद हो जाता है। 
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इन सबके अतिरिक्त दया की भावना मनुष्य को हमेशा कुशल बनाती है। इतना ही नहीं दया का भाव इंसान को अनिष्ट करने से रोकता है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार ऐसे व्यक्ति पाप के भागी नहीं बनते,न ही उनके मन वगुण की भावना उत्पन्न होती है। 

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