Edited By Jyoti,Updated: 15 Sep, 2021 01:19 PM

आचार्य चाणक्य के नीति सूत्र में वर्णित तमाम श्लोकों में से कई श्लोकों के बारे में समय-समय पर हम आपको बताते आ रहे हैं। आज भी इसी कड़ी को बरकरार रखते हुए हम आपको चाणक्य नीति
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आचार्य चाणक्य के नीति सूत्र में वर्णित तमाम श्लोकों में से कई श्लोकों के बारे में समय-समय पर हम आपको बताते आ रहे हैं। आज भी इसी कड़ी को बरकरार रखते हुए हम आपको चाणक्य नीति के ऐसे ही श्लोक कुछ श्लोकों से रूबरू करवाने जा रहे हैं, जो मानव जीवन में बहुत मददगार साबित हो सकते हैं। तो आइए जानते हैं आचार्य चाणक्य द्वारा बताए गए खास सूत्र।
चाणक्य नीति श्लोक- सर्वोषां भूषणं धर्म:।
भाव: सभी व्यक्तियों का आभूषण ‘धर्म’
अर्थ: जो व्यक्ति धर्म का आचरण करता है, अर्थात पर परा से चले आ रहे सद्कर्मों और पवित्र विचारों का पालन करते हुए लोक कल्याण की चर्चा में अपना समय लगाता है। ऐसा व्यक्ति सच्चे अर्थों में आभूषण ग्रहण करता है और समाज में लोकप्रिय होता है सत्यविहीन व्यक्ति अलोकप्रिय होता है।
चाणक्य नीति श्लोक- स्त्रीणां भूषणं लज्जा।
भाव: स्त्री का आभूषण ‘लज्जा’
अर्थ: लज्जा से ही किसी भी स्त्री का सौंदर्य खिलता है। यही स्त्री का सबसे बड़ा गहना होता है।
चाणक्य नीति श्लोक
आत्मद्वेषात् भवेन्मृत्यु: परद्वेषात् धनक्षय: ।
राजद्वेषात् भवेन्नाशो ब्रह्मद्वेषात् कुलक्षय: ।।
भाव: द्वेष करता है कुल का नाश
अर्थ: अपनी ही आत्मा से द्वेष रखने वाले की मृत्यु हो जाती है। दूसरों से द्वेष रखने वालो का धन नष्ट हो जाता है। राजा से द्वेष रखने वाला मनुष्य अपना नाश करता है, लेकिन ज्ञानी पुरुष व गुरुजनों से द्वेष रखने से कुल का नाश हो जाता है।
चाणक्य नीति श्लोक
बुद्धिर्यस्य बलं तस्य निर्बुद्धेस्तु कुतो बलम्।
वने सिंहो मदोन्मत्त: शशकेन निपातित: ।।
भाव: बुद्धिहीन व्यक्ति के पास शक्ति नहीं होती
अर्थ: जिसके पास बुद्धि है, उसके पास बल भी होता है, बुद्धिहीन व्यक्ति के पास शक्ति नहीं होती। जिस प्रकार जंगल में अपनी शक्ति के मद में मस्त सिंह को एक खरगोश ने मार डाला था।