Edited By Jyoti,Updated: 04 Mar, 2022 04:39 PM
आचार्य चाणक्य ने अपने समय में अपने ज्ञान के बलबूते समाज में अपनी एक अलग ही पहचान प्राप्त की थी। इनका ये ज्ञान आज भी लोगों को इनके प्रति आकर्षित करता है।
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आचार्य चाणक्य ने अपने समय में अपने ज्ञान के बलबूते समाज में अपनी एक अलग ही पहचान प्राप्त की थी। इनका ये ज्ञान आज भी लोगों को इनके प्रति आकर्षित करता है। जैसे कि आप में से बहुत से लोग जानते होंगे कि प्राचीन समय में ऐसे कई महान विद्वान आदि हुए हैं, जिनमें से एक है आचार्य चाणक्य। जिन्होंने अपने ज्ञान को नीति का रूप दिया। इसी नीति सूत्र की नीतियां हम समय समय पर आपको बताते रहते हैं। तो आइए जानते हैं आज एक बार फिर आचार्य चाणक्य के नीति सूत्र में वर्णित कुछ खास श्लोक व उसके अर्थ।
विषादप्यमृतं ग्राह्यममेध्यादपि काञ्चनम् ।
रनीचादप्युत्तमां विद्यांस्त्रीरत्नं दुष्कुलादपि ।।
इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य कहते हैं कि संभव हो सके तो जहर मे से भी अमृत निकाल लेना चाहिए, यदि सोना गन्दगी में भी पड़ा हो तो उसे उठा लेना चाहिए और इसे स्वच्छ कर उपयोग में लाएं। इसके अलावा कुल में जन्म लेने वाले से भी सर्वोत्तम ज्ञान ग्रहण करने में कोई दोष नहीं है. उसी तरह यदि कोई बदनाम घर की कन्या भी महान गुणो से परिपूर्ण है और आपको कोई सीख देती है तो अपनाने में संकोच नहीं करना चाहिए.
कस्य दोषः कुलेनास्ति व्याधिना के न पीडितः ।
व्यसनं के न संप्राप्तं कस्य सौख्यं निरन्तरम् ।।
इस श्लोक का अर्थ है कि इस दुनिया मे ऐसा कोई नहीं है जिस पर दाग न हो, वह कौन है जो रोग और दुख से मुक्त है. सुख सदैव नहीं रहता है.
सत्कुले योजयेत्कन्यां पुत्रं विद्यासु योजतेत् ।
व्यसने योजयेच्छत्रुं मित्रं धर्मे नियोजयेत् ।।
चाणक्य नीति में वर्णन किया गया है कन्या का विवाह अच्छे खानदान मे करना चाहिए। पुत्र को श्रेष्ठ शिक्षा देनी चाहिए, शत्रु को आपत्ति और कष्टों में डालना चाहिए, और मित्रों को धर्म कर्म में लगाना चाहिए। जो ऐसा कर पाते हैं वे सफलता प्रदान करते हैं।
दुर्जनस्य च सर्पस्य वरं सर्पो न दुर्जनः ।
सर्पो दंशति काले तु दुर्जनस्तु पदे पदे ।।
चाणक्य नीति के इस श्लोक का अर्थ है कि एक दुष्ट और एक सर्प मे यही अंतर है कि सांप तभी डसता है जब उसकी जान पर खतरा हो, लेकिन दुष्ट व्यक्ति पग-पग पर हानि पहुचने की कोशिश करेगा। इसलिए सावधान रहना चाहिए।