गंगा जल के बिना अधूरा है चरणामृत, पीने से मिलते हैं चमत्कारी लाभ

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 04 May, 2020 10:09 AM

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नित्य प्रति अगर बन सके तो भगवान का चरणोदक पीएंगे तो ‘अकाल मृत्यु हरणं, सर्वव्याधि विनाशकं।’ जो अकाल मृत्यु को हरण करने वाला हो, सब आधि-व्याधियों से मुक्त करने वाला है, ऐसा जो भगवान का चरणोदक है उसको सब कहते हैं चरणामृत।


Charanamrit: नित्य प्रति अगर बन सके तो भगवान का चरणोदक पीएंगे तो ‘अकाल मृत्यु हरणं, सर्वव्याधि विनाशकं।’ जो अकाल मृत्यु को हरण करने वाला हो, सब आधि-व्याधियों से मुक्त करने वाला है, ऐसा जो भगवान का चरणोदक है उसको सब कहते हैं चरणामृत। वह अमृत है, वह हमको अमृत तत्व की ओर ले जाने वाला है। हम हैं तो वास्तव में आत्म स्वरूप से अमृत ही, परन्तु मृत्युधर्मा शरीर के साथ इतने अधिक जुड़ गए, उसके साथ इतना अधिक तादात्म्य कर लिया जिसके कारण शरीर के जन्म मृत्यु के हम अपना जन्म मरण मानने लग गए।
 
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अकालमृत्यु को हरण करने वाला जो चरणामृत है वह हमको समझ देता है, बुद्धि देता है, जिससे हम अपने आत्म स्वरूप की ओर पहुंचते हैं। अपने स्वरूप को पहचानते हैं और फिर जब हम स्वरूप को पहचानते हैं तो हम जानते हैं कि हम उस अविनाशी परम पुरुष परमात्मा के शुद्ध अंश हैं जिस प्रकार परमात्मा सत चित आनंदमय हैं, उसी प्रकार हम भी सत चित आनंदमय हैं। हमारा स्वभाव दुख का नहीं है। हम आनंद स्वरूप हैं, हम मरने वाले नहीं हैं। हम शुद्ध ज्ञान स्वरूप हैं।

चरणामृत पीते वक्त करें इस श्लोक का उच्चारण-
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्। विष्णुपादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते।।
 
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अगर प्रभु कृपा से हमारे पास शालिग्राम भगवान हैं तो चरणामृत जो बनता है वह नव वस्तुओं के एकत्रित होने से बनता है। शालिग्राम उसमें प्रधान हैं। भगवान नारायण ने एक क्षेत्र विशेष में विशेष प्रकार की लीला की, जिसको भगवान नारायण क्षेत्र कहते हैं। उस क्षेत्र में जितने भी पत्थर हैं वह सब शालिग्राम स्वरूप होते हैं। शालिग्राम भगवान बिना प्रतिष्ठा के और दूसरे भगवान के विग्रह होंगे तो उनमें प्राण प्रतिष्ठा करानी पड़ती है, तब भगवान का उसमें दर्शन लाभ मिल सकता है परन्तु शालिग्राम में बिना प्रतिष्ठा किए हुए भी प्रत्यक्ष भगवान का स्वरूप माना जाता है। जैसे नर्मदा नदी के पत्थर सब शंकर हैं, उसमें प्राण प्रतिष्ठा की कोई आवश्यकता नहीं है।
 
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चरणामृत में प्रधान शालिग्राम हैं उनको स्नान कराने के लिए तांबे का पात्र रखना चाहिए। उसमें यंत्र बनाना चाहिए। यंत्र के मध्य में तुलसी रखकर उसके ऊपर शालिग्राम भगवान के साथ गोमती चक्र (गोमती द्वारिका में एक पीला पत्थर मिलता है जो चक्रान्तिक होता है-वह गोमती चक्र है) रखना चाहिए। उसके बाद अर्घ्य के द्वारा (शंख जो अर्घ्य जल चढ़ाने के लिए होता है) उस शंख के द्वारा जल से भगवान को स्नान कराया जाए। स्नान कराते समय गरुड़ घंटी का नाद पुरुसूक्त के वचन होने चाहिए। इस प्रकार से चरणामृत तैयार होता है। वह चरणामृत जो अकाल मृत्यु को हरण करने वाला है, सब व्याधियों को दूर करने वाला है। उसका सेवन करने से समस्त विघ्न बाधाएं दूर होती हैं।
 
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गंगा जल के द्वारा भगवान को पुन: स्नान कराया जाए तो ज्यादा अच्छा है दूसरे जलों की अपेक्षा गंगा जल से भगवान को अभिशक्त करके चरणोदक के रूप में पिया जाए तो बहुत उत्तम है। आप पाएंगे कि आप की बुद्धि पवित्र होती जा रही है। अंदर से सब समाधान अपने आप होने लगेंगे। प्रभु कृपा से आपको आत्मबल व शक्ति मिलेगी, जिससे आप सत् मार्ग पर चलेंगे। इसी में सबका कल्याण है।
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