जन्माष्टमी के ठीक 1 दिन बाद मनाया जाता है दंही हांडी का पर्व, जानिए इसका महत्व

Edited By Jyoti,Updated: 17 Aug, 2022 01:06 PM

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प्रत्येक वर्ष जन्माष्टमी के दिन एक दिन बाद यानि अगले दिन देश में जन्माष्टमी की तरह ही दही हांडी का त्योहार हर्षो-उल्लास व धूम धाम से मानाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह पर्व कान्हा की बाल लीलाओं को समर्पित होता है। जिस तरह श्री कृष्ण का...

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प्रत्येक वर्ष जन्माष्टमी के दिन एक दिन बाद यानि अगले दिन देश में जन्माष्टमी की तरह ही दही हांडी का त्योहार हर्षो-उल्लास व धूम धाम से मानाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह पर्व कान्हा की बाल लीलाओं को समर्पित होता है। जिस तरह श्री कृष्ण का जन्मोत्सव बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। ठीक उसी तरह दही हांडी के पर्व पर भी देश के विभिन्न हिस्सों में काफी रौनक देखने को मिलती है। इस दिन गोविंदाओं की टोली एक मानव पिरामिड बनाती है और ऊंचे स्थान पर लटकी दही और माखन से भरी हांडी को तोड़ते हैं। तो चलिए जानते हैं दही हांडी का महत्व और इतिहास। 
बचपन में भगवान कृष्ण काफी शरारती थे और उन्हें मक्खन और दही खाने का भी बहुत शौक था। ये शौक इतना ज्यादा था जैसे-जैसे वो बड़े होने लगे वो दही और माखन चुराकर खाने लगे। ऊंचीं-ऊंची जगहों पर दही-माखन की हांडी लटकाए जाने के बाद भी कृष्ण जी अपने दोस्तों के साथ मिलकर मानव पिरामिड बनाते थे और दही-माखन चुराकर अपने दोस्तों के साथ मिलकर खाते थे। यही वजह है कि कान्हा जी को माखनचोर कहा जाने लगा था।
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भगवान कृष्ण का जन्म मामा कंस के कारागार में हुआ था। इनकी माता देवकी और पिता वासुदेव ने इन्हें कंस से बचाने के लिए गोकुल में यशोदा और नंद के यहां पहुंचा दिया था। ये देवकी की आठवीं संतान थीं। आकाशवाणी हुई थीं कि देवकी की आठवीं संतान ही कंस की मृत्यु का कारण होगा। इस भविष्यवाणी के बाद कंस ने देवकी और वासुदेव की हर संतान को एक-एक कर मार दिया था। लेकिन जब देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान यानी श्रीकृष्ण का जन्म हुआ तो वासुदेव ने उसे गोकुल में यशोदा और नंद के यहां पहुंचा दिया था। ऐसे में गोकुल में ही बाल कृष्ण की लीलाओं की शुरुआत हुई।
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जैसे कि हम सभी जानते हैं कि श्रीकृष्ण को दही-माखन कितना पसंद था। ऐसे में वो अक्सर गोपियों की मटकियों से माखन चुराकर खाया करते थे। उनका मां यानी यशोदा उनकी आदतों से तंग आ चुकी थीं जिसके चलते वो और अन्य महिलाएं दही-माखन को सुरक्षित रखने के लिए इन्हें किसी ऊंचे स्थान पर लटका देती थीं। वहीं, श्रीकृष्ण अपने दोस्तों को साथ मिलकर मानव पिरामिड बनाते थे जिससे वो हांडियों तक पहुंच पाएं। फिर माखन चुराकर वो अपने दोस्तों के साथ मिलकर खाते थे। इसी के बाद ही इनका नाम माखनचोर पड़ा था। ऐसे में यह कहा जाता है कि दही हांडी का पर्व कृष्ण की लीलाओं को समर्पित है। आजकल मानव पिरामिड बनाने वालों को गोविंदा कहा जाता है।
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