Edited By Jyoti,Updated: 30 Aug, 2022 10:57 AM

एक सम्राट ने अपने दो राजकुमारों को 5-5 रुपए देकर कहा कि यह दो कक्ष हैं। इन पांच रुपयों से ऐसी कोई चीज खरीद कर अपने-अपने कमरे को खचाखच भरना है। बड़े राजकुमार ने सोचा कि पांच रुपए में ऐसी कौन सी वस्तु मिलेगी, जिससे यह पूरा कक्ष भर जाए। उतने में उसके...
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एक सम्राट ने अपने दो राजकुमारों को 5-5 रुपए देकर कहा कि यह दो कक्ष हैं। इन पांच रुपयों से ऐसी कोई चीज खरीद कर अपने-अपने कमरे को खचाखच भरना है। बड़े राजकुमार ने सोचा कि पांच रुपए में ऐसी कौन सी वस्तु मिलेगी, जिससे यह पूरा कक्ष भर जाए। उतने में उसके सामने शहर की गंदगी से भरी गाडिय़ां बाहर जा रही थीं। उसने सोचा कि सबसे सस्ते में यही काम हो सकता है। उसने गाड़ी वालों से कहा कि तुम यह कचरा मेरे कक्ष में भर दो। गाड़ी वालों ने कहा कि आपका कक्ष गंदा हो जाएगा। फिर भी वह कहता रहा तो उन्होंने गंदगी भर दी और उनको राजकुमार ने भरने के पैसे भी दिए।
दूसरा राजकुमार सोच में पड़ गया, क्या करना चाहिए?
उसका विवेक जागा। वह एक रुपए के 100 दीपक लाया, बाकी रुपयों की अगरबत्ती लाया, सैंकड़ों फूल लाया, एक घंटी भी लाया जिसकी आवाज से सारा कक्ष गूंज उठा।
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राजा ने पहला कक्ष देखा तो हैरान रह गया। कक्ष की सफाई कराने में सैंकड़ों रुपए लग गए। दूसरा कक्ष देखा तो खुश हो गया। वाह! कैसे कक्ष को भर दिया। हर आगन्तुक खुश हो जाता है। राजा ने छोटे राजकुमार को अपने राज्य का राजा बना दिया।
यही स्थिति परमात्मा के राज्य को पाने की है। आपको भी अपना कक्ष भरने के लिए पांच-पांच रुपए दिए गए हैं। वे पांच रुपए हैं पांच इंद्रियां। कान, नाक, आंख, जिह्वा, स्पर्शनेन्द्रिय। इन पांच इंद्रियों के माध्यम से जो काम, क्रोध, अहंकार, ईर्ष्या की गंदगी अंदर से भर रहे हैं, उन्हें परमात्मा का राज्य कभी मिलने वाला नहीं है। लेकिन जो छोटे राजकुमार की तरह अपने भीतर सदाचार, नैतिकता, क्षमा, ब्रह्मचर्य आदि सद्गुणों की खुशबू भरता है, वह परमात्मा का राज्य पा जाता है। —आचार्य ज्ञान चंद्र