क्या है तारामंडल के ध्रुव से जुड़ी धार्मिक कथा, आप जानते हैं?

Edited By Jyoti,Updated: 25 Dec, 2021 01:22 AM

dhruva religious story in hindi

बात पुरानी है। राजा उत्तानपाद की दो पत्नियां थीं- सुनीति और सुरुचि। सुरुचि राजा को बहुत प्रिय थी। वह राज-काज में भी हाथ बंटाती थी। सुरुचि का एक पुत्र था जिसका नाम था उत्तम। सुनीति का भी एक पुत्र था

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बात पुरानी है। राजा उत्तानपाद की दो पत्नियां थीं- सुनीति और सुरुचि। सुरुचि राजा को बहुत प्रिय थी। वह राज-काज में भी हाथ बंटाती थी। सुरुचि का एक पुत्र था जिसका नाम था उत्तम। सुनीति का भी एक पुत्र था जिसका नाम था ध्रुव। एक बार राजा उत्तानपाद की गोद में उत्तम खेल रहा था जिसे देख कर बालक ध्रुवसे रहा नहीं गया तो वह भी पिता की गोद में जा पहुंचा।

जब सुरुचि ने राजा की गोद में अपने पुत्र उत्तम के साथ ध्रुवको देखा तो वह क्रोध और ईष्र्या से भर गई। उसने तुरंत बालक ध्रुवको वहां से भगाते हुए धमका दिया।अपनी सौतेली मां के उपेक्षित व्यवहार से बालक ध्रुवके मन को गहरा आघात पहुंचा। वह अपनी मां से पूछने लगा, ‘‘मां, मैं भैया उत्तम के साथ पिता की गोद में क्यों नहीं खेल सकता?’’

तब माता सुनीति ने बालक ध्रुवको समझाया, ‘‘बेटे तु हें अपना हक पाने के लिए भगवान श्रीहरि को प्रसन्न करना होगा। भगवान श्री नारायण ही तु हारी सहायता कर सकते हैं। उनकी साधना से ही मुक्ति मिल सकती है।’’

यह सुन कर 5 वर्ष का छोटा-सा बालक ध्रुवघर से निकल पड़ा और काङ्क्षलदी तट पर मधुबन में जाकर भगवान श्रीहरि की कठोर तपस्या करने लगा। बालक ध्रुवजब एक पैर पर खड़ा होकर अपनी सांस को रोक कर श्री हरि के ध्यान में लीन हो गया तो तीनों लोक कांप उठे।

भगवान श्रीहरि बालक ध्रुवकी तपस्या से अति प्रसन्न हुए।

दूसरे ही पल वह अपने प्रिय भक्त ध्रुवके समक्ष उपस्थित हो गए और बोले, ‘‘हे, उत्तानपाद और सुनीति के पुत्र, ध्रुव। तेरा कल्याण हो। मैं तेरी कठिन तपस्या से अति प्रसन्न हूं। तू अपनी इच्छानुसार श्रेष्ठ वर मांग।’’

तब बालक ध्रुवने अपनी आंखें खोल कर भगवान को प्रणाम किया और बोला, ‘‘हे भगवान! मेरी सौतेली माता ने मुझसे कहा है कि मैं उसके उदर से उत्पन्न नहीं हुआ हूं, इसलिए राजासन के योग्य नहीं हूं। इसलिए हे प्रभो! मैं उस सर्वोत्तम स्थान को प्राप्त करना चाहता हूं जो स पूर्ण विश्व का आधार हो।’’

श्रीहरि बोले, ‘‘हे ध्रुव! मेरी कृपा से तू नि:संदेह उस स्थान जो त्रिलोकों में सबसे उत्कृष्ट है, स पूर्ण ग्रह और तारामंडल का आश्रय बनेगा। मैं तुझे वह धु्रव (निश्चल) स्थान देता हूं जो सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि आदि ग्रहों, सभी नक्षत्रों, सप्तर्षियों और स पूर्ण देवगणों से भी ऊपर है।’’

इस प्रकार बालक ध्रुव को मनोवांछित वर प्राप्त हुआ। आज भी तारामंडल में ध्रुवका अपना विशेष महत्व है। —महेंद्र सिंह शेखावत ‘उत्साही’

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