जानिए, क्या करना चाहिए सूतक काल के दौरान ?

Edited By Updated: 05 Jan, 2021 01:43 PM

do you know about sutak kaal

हिंदू धर्म में सूतक काल का विशेष महत्व होता है। सूतक काल को अशौच काल भी कहा जाता है

हिंदू धर्म में सूतक काल का विशेष महत्व होता है। सूतक काल को अशौच काल भी कहा जाता है और सूतक दो तरह का होता है। पहला बच्चे के जन्म लेने के बाद लगने वाला सूतक और दूसरा मृत्यु के पश्चात लगने वाला सूतक होता है। कहते हैं कि जब भी किसी व्यक्ति के घर-परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु होती है तो उसके कुल में कुछ दिनों के लिए सूतक काल लग जाता है और इस दौरान वह न तो किसी को घर जा सकता है और न ही किसी के घर से कुछ खा सकता है। आज हम आपको सूतक के बारे में कुछ जानकारी देने जा रहे हैं जोकि हर किसी के लिए जानना जरूरी है।
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शास्त्रों में बताया गया है कि ब्राम्हण को दस दिन का, क्षत्रिय को बारह दिन का,  वैश्य को पंद्रह दिन का और शूद्र को एक महीने का सूतक लगता है। किंतु विशेष परिस्थितियों में चारों वर्णों की शुद्धि दस दिनों में ही हो जाती है। इसे शारीरिक शुद्धि कहते हैं। इसके पश्चात किसी भी तरह का छुआछूत दोष नहीं रहता है।

जानकारी के लिए बता दें कि परिवार में देवताओं की पूजा-आराधना इसके बाद ही की जाती है। जिसमें स्थित सर्वप्रथम भगवान विष्णु की पूजा फिर सत्यनारायण कथा का श्रवण अनिवार्य रूप से किया जाता है। किसी कारण वश सूतक काल दस के दिनों के अंदर परिवार के किसी और सदस्य की मृत्यु हो जाए तो पहले सदस्य की मृत्यु तिथि के अनुसार ही दूसरे सदस्य के सूतक का भी समापन हो जाता है।
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शास्त्रों के अनुसार पहले से लगा हुआ सूतक दसवें दिन की रात्रि के तीन प्रहर अगर किसी की भी मृत्यु हो तो पहले के दस दिन के अतिरिक्त दो दिन तक का ही सूतक लगेगा। यदि दसवें दिन के चौथे प्रहर तक में भी परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो तो तीन दिनों का अतिरिक्त सूतक रहेगा। किंतु क्रिया कर्म करने वाले व्यक्ति के लिए यह सूतक दस दिनों के लिए ही मान्य होगा। कुल के अन्य सदस्य सूतक दोष से मुक्त हो जाएंगे।

कहते हैं कि पिता की मृत्यु के पश्चात यदि दस दिनों के अंदर माता की भी मृत्यु हो जाए तो सूतक डेढ़ दिनों के लिए और बढ़ जाएगा। यदि माता की मृत्यु के दस दिनों के अंतराल में पिता की भी मृत्यु हो जाए तो पिता के मृत्यु के दिनों से पूरे दस दिनों तक सूतक काल माना जाता है।
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कहते हैं कि किसी कारणवश मृत्यु दिवस के दिन दाह संस्कार न हो सके। तब भी मृत्यु दिवस के दिन से ही सूतक काल को गिना जाएगा। अग्निहोत्र करने वालों के लिए सूतककाल दस दिनों तक के लिए ही माना जाएगा। यदि कन्या का विवाह हो जाता है। उसके पश्चात माता पिता की मृत्यु हो तो विवाहिता स्त्री के लिए तीन दिन का सूतक माना गया है। मृत्यु के पश्चात जब तक घर में शव रहे तब तक वहां उपस्थित सभी गोत्र के लोगों को सूतक का दोष लगता है। यदि कोई भी व्यक्ति किसी और जाति के व्यक्ति को कंधा देता है या उसके घर में रहता है। वहां भोजन करता है तो उसके लिए भी सूतक काल दस दिनों तक के लिए मान्य होगा।

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