Durva Ashtami: आज दूर्वा के साथ इस विधि से करें श्री गणेश की पूजा, मन चाहे सुख की होगी प्राप्ति

Edited By Updated: 31 Aug, 2025 07:42 AM

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Durva Ashtami: दूर्वा अष्टमी का पर्व पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह आज मनाया जाएगा यानी कि 31 अगस्त को। आमतौर पर धर्म-कर्म का काम करने के लिए दूर्वा का इस्तेमाल किया जाता है। खासतौर पर इसका...

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Durva Ashtami: दूर्वा अष्टमी का पर्व पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह आज मनाया जाएगा यानी कि 31 अगस्त को। आमतौर पर धर्म-कर्म का काम करने के लिए दूर्वा का इस्तेमाल किया जाता है। खासतौर पर इसका प्रयोग बप्पा की पूजा के लिए किया जाता है। कहते हैं इसके बिना श्री गणेश की पूजा-अर्चना अधूरी रहती है। पूरे तन और मन के साथ ये व्रत रखने से व्यक्ति को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। श्री गणेश के साथ-साथ महादेव और मां पार्वती का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। पश्चिम बंगाल और भारत के अन्य पूर्वी क्षेत्रों में यह पर्व बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। बंगाल में इसे दुराष्टमी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। आज के दिन कुछ खास उपाय करने से बप्पा के आशीर्वाद से जीवन में सुख-शांति के साथ-साथ प्रेम की वृद्धि होती है। तो चलिए जानते हैं दूर्वा अष्टमी के दिन कौन से उपाय करने चाहिए-

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Durva Ashtami puja method दूर्वा अष्टमी पूजा विधि
सबसे पहले अपने घर के मंदिर में दही, फूल, अगरबत्ती और पूजा सामग्री को इकट्ठा करें। अब इस सारी सामग्री को दूर्वा यानी पवित्र घास अर्पित करें। फिर इसी दूर्वा को श्री गणेश, भगवान शिव और मां पार्वती को चढ़ाएं।

दूर्वा अष्टमी के दिन श्री गणेश को तिल और मीठे आटे से बनी रोटी का भोग लगाना शुभ होता है। इसके अलावा ब्राह्मणों को दान-पुण्य करने से भाग्य भी उदय होता है।

आज के दिन हो सके तो सिंदूरी रंग के वस्त्र पहनें और श्री गणेश को 11 दूर्वा अर्पित करें।

दांपत्य जीवन में सुख और समृद्धि को बरकरार रखने के लिए शिव मंदिर में तिल और गेहूं का दान करें।

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Story of Durva Ashtami दूर्वा अष्टमी की पौराणिक कथा- कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने जब कूर्म अवतार धारण किया था, तब वे मन्दराचल पर्वत की धुरी में विराजमान हो गए थे। पर्वत के तेज गति से घूमने के कारण भगवान विष्णु के शरीर से कुछ रोम निकलकर समुद्र में गिर गए। ये रोम पृथ्वीलोक पर दूर्वा घास के रूप में उत्पन्न हो गए। इस वजह से दूर्वा को इतना शुद्ध माना जाता है।

इसके अलावा पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक और कथा सामने आती है कि समुद्र मंथन के बाद जब असुर और देवता अमृत लेकर जा रहे थे तो अमृत की कुछ बूंदें घास पर गिर गई और तब से ये अमर हो गई।

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