Dwijapriya Sankashti Chaturthi: आज करें यह छोटा सा काम, जीवन की हर मुश्किल होगी आसान

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 28 Feb, 2024 07:30 AM

dwijapriya sankashti chaturthi

आज 28 फरवरी को फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि है। इसे संकष्टी चतुर्थी के रुप में मनाए जाने का विधान है और द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस खास दिवस पर भगवान गणेश की पूजा और

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Dwijapriya Sankashti Chaturthi 2024: आज 28 फरवरी को फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि है। इसे संकष्टी चतुर्थी के रुप में मनाए जाने का विधान है और द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस खास दिवस पर भगवान गणेश की पूजा और व्रत करने का विधान है, जिससे जीवन की हर मुश्किल आसान हो जाती है। अगर आप व्रत न कर सके तो शुभ मुहूर्त में ऋण मोचन मंगल स्तोत्र और ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। इसके प्रभाव से आपकी लाइफ में चल रहे सभी दुख और संताप दूर हो जाएंगे और गणपति जी की कृपा सदैव बनी रहेगी।

आज का दिन भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने के लिए सबसे उत्तम माना गया है। कहते हैं इस रोज बप्पा अपनी प्रसन्नचित मुद्रा में होते हैं। जो व्यक्ति सच्चे ह्रदय से उनकी पूजा करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।

Dwijapriya Sankashti Chaturthi: आज करें यह छोटा सा काम, जीवन की हर मुश्किल होगी आसान

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Dwijpriya Sankashti Chaturthi 2024 shubh muhurat द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी 2024 शुभ मुहूर्त
फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का आरंभ 28 फरवरी को रात 01 बजकर 53 मिनट पर होगा। इसका समापन अगले दिन यानी 29 फरवरी की प्रात: 04 बजकर 18 मिनट पर होगा। विद्वानों के अनुसार द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत आज 28 फरवरी, बुधवार के दिन करना मान्या होगा।

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Use these items in Dwijapriya Sankashti Chaturthi Puja द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पूजा में करें इन वस्तुओं का इस्तेमाल
पीला कपड़ा, चौकी, फूल, जनेऊ, लौंग, दीपक, दूध, मोदक, गंगा जल, जल, धूप, देसी घी, 11 या 21 तिल के लड्डू, फल, कलश
सुपारी और गणेश जी की प्रतिमा।

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Rin Harta Ganesh Stotram ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र
ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्।
ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम्॥

सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजित: फल-सिद्धए।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

महिषस्य वधे देव्या गण-नाथ: प्रपुजित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि-सिद्धए।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं पूजितो गण-नायक:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

इदं त्वृण-हर-स्तोत्रं तीव्र-दारिद्र्य-नाशनं,
एक-वारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं सामहित:।
दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेर-समतां व्रजेत्॥

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Rin mochan mangal stotra ऋण मोचन मंगल स्तोत्र
मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।
स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः॥

लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥

अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।
व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥

एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्॥

धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्॥

स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्॥

अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय॥

ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः।
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा॥

अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात्॥

विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः॥

पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः॥

एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।
महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा॥

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