Edited By Niyati Bhandari,Updated: 15 May, 2025 02:57 PM

Ekadanta Sankashti Chaturthi 2025: ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को एकदंत संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है। एकदंत संकष्टी चतुर्थी एक विशेष और दुर्लभ गणेश व्रत है, जो अन्य सामान्य संकष्टी चतुर्थियों से कुछ मायनों में अलग और गूढ़ माना जाता है।...
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Ekadanta Sankashti Chaturthi 2025: ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को एकदंत संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है। एकदंत संकष्टी चतुर्थी एक विशेष और दुर्लभ गणेश व्रत है, जो अन्य सामान्य संकष्टी चतुर्थियों से कुछ मायनों में अलग और गूढ़ माना जाता है। एकदंत भगवान गणेश का एक विशिष्ट नाम है, जिसका शाब्दिक अर्थ है एक दांत वाला। यह रूप हमें इस बात का संकेत देता है कि यह चतुर्थी केवल संकटों को दूर करने के लिए नहीं मन के दोलन और द्वैत को समाप्त कर एकाग्रता और साधना के एक बिंदु पर लाने के लिए भी होती है।

शास्त्रों के कुछ गुप्त अंशों के अनुसार, इस दिन ॐ एकदंताय नमः मंत्र के साथ यदि दीपक जलाकर पश्चिम दिशा की ओर देखा जाए और मानसिक रूप से संकल्प विनाश की भावना रखी जाए तो कई अदृश्य बाधाएं भी समाप्त होती हैं। यह प्रयोग तांत्रिक विधियों में गोपनीय रूप से वर्णित है लेकिन आमतौर पर प्रचारित नहीं होता।
संकष्टी का अर्थ है संकट को हरने वाली परंतु एकदंत संकष्टी विशेष इसलिए मानी गई है क्योंकि यह संकट की जड़ तक जाकर उसे हटाने का दिन है, सिर्फ ऊपरी उपाय नहीं। यह एक आध्यात्मिक शल्यक्रिया की तरह काम करती है, जब साधक अपने भीतर के द्वंद्व-वृक्ष को एक ही वार में काटना चाहता है। शास्त्रों में गुप्त रूप से वर्णित है ये विशेष साधना: ॐ क्षिप्रप्रसादनाय एकदंताय नमः
इस मंत्र का 108 बार जप इस दिन रात्रि में करने से मन की चंचलता, निर्णय की दुविधा और सांसारिक उलझनों से राहत मिलती है।
शास्त्रों में एक सूत्र है: द्वंद्व त्यक्त्वा गणनाथं ये भजन्ते चतुर्थ्यां ते न बाध्यन्ते क्लेशैः अपि जन्मजैः
अर्थात- जो भक्त एकदंत रूपी गणेश की चतुर्थी पर द्वैत का त्याग कर भजन करते हैं, वे जन्म-जन्मांतर के क्लेशों से भी मुक्त हो जाते हैं।

संस्कृत ग्रंथ गणेश पुराण और कुछ तंत्र ग्रंथों में यह संकेत मिलता है कि एकदंत चतुर्थी ब्रह्मांडीय चिंतन शक्ति और क्रिया शक्ति के संतुलन का दिन है। इस दिन चंद्रमा की स्थिति और मंगल ग्रह का सम्बन्ध विशिष्ट होता है, जिससे मन-बुद्धि का समन्वय संभव हो पाता है। इस दिन साधक के लिए द्वैत से अद्वैत की यात्रा का आरंभ माना गया है।
एकदंत रूप को साधने का अर्थ है अपनी इच्छाओं को एक बिंदु पर केंद्रित करना और नकारात्मक द्वैत (जैसे लालच-डर, मोह-त्याग) को एक दंत से काट देना। व्रत का समय चतुर्थी तिथि, संध्या काल, चंद्र दर्शन से पहले इसलिए नियत किया गया है ताकि मन की चंचलता शीतल हो और साधना गहराए।
