जानें कैसे 1400 साल पहले शुरू हुई थी ईद मनाने की परंपरा ?

Edited By Jyoti,Updated: 05 Jun, 2019 12:49 PM

first eid was celebrated 1400 years ago

मुस्लिम धर्म का पाक महीना आज यानि 05 जून 2019 को ईद-उल-फितर के दिन खत्म हो गया है और मुस्लिम महीना शब्वाल शुरू हो गया है। मुसलमान लोगों के लिए ईद का ये त्यौहार सबसे खास होता है। कुछ मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार इसे ईद-उल-फितर को मीठी रूप में भी जाना...

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मुस्लिम धर्म का पाक महीना आज यानि 05 जून 2019 को ईद-उल-फितर के दिन खत्म हो गया है और मुस्लिम महीना शब्वाल शुरू हो गया है। मुसलमान लोगों के लिए ईद का ये त्यौहार सबसे खास होता है। कुछ मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार इसे ईद-उल-फितर को मीठी रूप में भी जाना जाता है। हिज़री कैलेंडर के अनुसार मुस्लिम धर्म के दसवें महीने जिसे शब्वाल कहा जाता है के पहले दिन ईद के त्यौहार पूरे धूम-धाम से दुनिया भर में मनाया जाता है। इस्लामी कैलेंडर में ये महीना चांद देखने के साथ शुरू होता है। इसके अनुसार जब तक चांद नहीं दिखता तब तक रमज़ान का महीना खत्म नहीं होता। जब रमज़ान के आख़िरी रोज़े के दिन चांद दिखता है उसके अगले दिन ईद मनाई जाती है। मुस्लिम लोगों की मान्यताओं के अनुसार इस दिन हजरत मुहम्मद मक्का शहर से मदीना के लिए निकले थे।  
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इसलिए मनाई जाती है ईद
कहा जाता है मक्का से मोहम्मद पैगंबर के प्रवास के बाद पावन शहर मदीना में ईद-उल-फितर का उत्सव शुरू हुआ था। माना जाता है कि पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने बद्र की लड़ाई में जीत हासिल की थी। इस जीत की खुशी में सबका मुंह मीठा करवाया गया था, जिस कारण इसे मीठी ईद व ईद-उल-फितर के रूप में मनाया जाता है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार हिजरी संवत 2 यानि 624 ईस्वी में पहली बार (करीब 1400 साल पहले) ईद-उल-फितर मनाया गया था। पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने बताया है कि उत्सव मनाने के लिए अल्लाह ने कुरान में पहले से ही 2 सबसे पवित्र दिन बताए हैं। जिन्हें ईद-उल-फितर और ईद-उल-जुहा कहा गया है। इस प्रकार ईद मनाने की परंपरा अस्तित्व में आई थी।
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सद्भाव और मदद का पैगाम देता है ये त्यौहार
मुसलमान लोगों का सबसे अहम ईद का त्यौहार सबको साथ लेकर चलने का संदेश देता है। इस दिन अमीर-गरीब सब मुसलमान एकसाथ नमाज़ पढ़ते हैं और एक दूसरे को गले लगाते हैं। इस्लाम में चैरिटी ईद का एक महत्वपूर्ण पहलू है। जिसमें हर मुसलमान को धन, भोजन और कपड़े के रूप में कुछ न कुछ दान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। कुरान में ज़कात अल-फ़ित्र को अनिवार्य बताया गया है। ज़कात यानि दान को हर मुसलमान का फर्ज़ कहा गया है। ये गरीबों को दिए जाने वाला दान होता है। परंपराओं के मुताबिक ज़कात रमज़ान के अंत में और ईद की नमाज़ पर जाने से पहले दिया जाता है। विश्व के कुछ मुस्लिम देशों में ज़कात स्वैच्छिक है, वहीं अन्य देशों में यह अनिवार्य है।
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इस तरह मनाई जाती है ईद
ईद की शुरुआत सुबह दिन की पहली दुआ के साथ होती है। जिसे सलात अल-फ़ज़्र भी कहा जाता है। इसके बाद पूरा परिवार कुछ मीठा खाता है। वैसे ईद पर खज़ूर खाने की परंपरा है। फिर नए कपड़ों में सजकर लोग ईदगाह या एक बड़े खुले स्थान पर जाते हैं, जहां पूरा समुदाय एक साथ ईद की नमाज़ अदा करता है। इसके बाद, ईद की बधाईयां दी जाती है। उस समय एक-दूसरे को ईद-मुबारक कहा जाता है। जो एक-दूसरे के प्यार और आपसी भाईचारे को दर्शाता है। इस मौके पर एक खास दावत तैयार की जाती है जिसमें खासतौर से मीठा खाना शामिल होता है। इस कारण इसे भारत और कुछ दक्षिण एशियाई देशों में मीठी ईद भी कहा जाता है। ईद-उल-फितर पर खासतौर से सेवइयां यानf गेहूं के नूडल्स को दूध के साथ उबालकर बनाया जाता है और इसे सूखे मेवों और फलों के साथ परोसा जाता है।

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