Edited By Sarita Thapa,Updated: 11 Oct, 2025 03:33 PM

एक दिन गौतम बुद्ध एक वृक्ष को नमन कर रहे थे। यह देखकर उनके एक शिष्य को बड़ी हैरानी हुई। उसने बुद्ध से पूछा, “भगवन! आपने इस वृक्ष को नमन क्यों किया?”
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Gautam Buddha Story: एक दिन गौतम बुद्ध एक वृक्ष को नमन कर रहे थे। यह देखकर उनके एक शिष्य को बड़ी हैरानी हुई। उसने बुद्ध से पूछा, “भगवन! आपने इस वृक्ष को नमन क्यों किया?”

शिष्य की बात सुनकर बुद्ध बोले, “क्या इस वृक्ष को नमन करने से कुछ अनहोनी हो गई?” बुद्ध का प्रश्न सुनते ही शिष्य बोला, “नहीं भगवन, ऐसी बात नहीं है। किंतु मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि आप जैसा महान व्यक्ति इस वृक्ष को नमस्कार क्यों कर रहा है? वह वृक्ष न तो आपकी बात का जवाब दे सकता है और न ही आपके नमन करने पर खुशी दिखा सकता है।”
इस पर बुद्ध मुस्कुराए और बोले, “वत्स! तुम गलत सोच रहे हो। वृक्ष भले ही बोल नहीं पाता, लेकिन जैसे हर एक व्यक्ति के शरीर की अपनी एक भाषा होती है, उसी तरह से प्रकृति और वृक्षों की भी एक अलग भाषा होती है। अपना सम्मान होने पर ये झूमकर प्रसन्नता और कृतज्ञता दोनों व्यक्त करते हैं। इस वृक्ष के नीचे बैठकर मैंने साधना की, इसकी पत्तियों नें मुझे शीतलता दी, धूप से मुझे बचाया। इसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना मेरा कर्तव्य है। सभी को प्रकृति के प्रति हमेशा कृतज्ञ बने रहना चाहिए, क्योंकि प्रकृति ही हमें सुंदर जीवन देती है।”

फिर शिष्य को पेड़ की ओर देखने का इशारा करके बुद्ध बोले, “तुम जरा इस वृक्ष की ओर देखो कि इसने मेरे धन्यवाद को कितनी खूबसूरती से लिया है और जवाब में मुझे झूम कर बता रहा है कि आगे भी वह सभी की यों ही सेवा करता रहेगा।”
बुद्ध की बात पर शिष्य ने वृक्ष को देखा तो उसे लगा कि सचमुच वृक्ष एक अलग ही मस्ती में झूम रहा था और उसकी झूमती हुई पत्तियां, शाखाएं और फूल मन को एक अद्भुत शांति दे रहे थे। यह देखकर शिष्य खुद ही वृक्ष के सम्मान में झुक गया।
