Edited By Niyati Bhandari,Updated: 09 Jul, 2025 04:32 PM

Guru Purnima 2025: वर्ष में एक दिवस गुरु को समर्पित किया गया है जोकि आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा अथवा महर्षि वेद व्यास जयंती के नाम से विख्यात है। जीवन में आमतौर पर प्रत्येक पग पर हरेक कार्य और सफलता के लिए किसी का मार्गदर्शन जरूरी होता...
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Guru Purnima 2025: वर्ष में एक दिवस गुरु को समर्पित किया गया है जोकि आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा अथवा महर्षि वेद व्यास जयंती के नाम से विख्यात है। जीवन में आमतौर पर प्रत्येक पग पर हरेक कार्य और सफलता के लिए किसी का मार्गदर्शन जरूरी होता है जो किसी को गुरु रूप में स्वीकार कर ही प्राप्त किया जाता है।
गुरु की महिमा सर्वत्र तथा जगजाहिर है। त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम हों या द्वापर युग के सोलह कला सम्पूर्ण श्रीकृष्ण हों, सभी ने इस मृत्यु लोक में अवतार लेकर गुरु की आज्ञा को ही शिरोधार्य किया तथा उनकी सेवा-सुश्रुषा से ही उनका आध्यात्मिक मार्गदर्शन हुआ तथा जगत को भी गुरु की महत्ता से अवगत कराया।

श्रीराम ने आध्यात्मिक बल महर्षि वशिष्ठ से तथा शास्त्रोपदेश महर्षि विश्वामित्र से ग्रहण किया तथा महर्षि अगस्त्य से शस्त्र विद्या ग्रहण की। कृष्णावतार में भगवान श्रीकृष्ण के कुलगुरु गर्गाचार्य थे परन्तु अनेक विधाओं में पारंगत होने के लिए उन्हें उज्जयिनी नगरी में गुरु सांदीपनी की शरण में जाना पड़ा इसलिए देवी, देवता, असुर, मानव गुरु के बिना अधूरे हैं तथा गुरु ही आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन की वे पराकाष्ठा हैं जो परमात्मा से भी सर्वोच्च स्थान रखती है जिसे लेकर कबीरदास जी ने भी वर्णन किया है :
‘‘गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरु आपनो जिन गोविंद दियो बताए।।’’

गुरु पूर्णिमा को महर्षि वेद व्यास जी की जयंती रूप में भी मनाया जाता है। इन्होंने वेदों के 4 भाग किए, महाभारत की रचना की तथा 18 पुराणों के रचनाकार के रूप में भी ख्याति प्राप्त की। प्रसिद्ध श्रीमद्भागवत की रचना की तथा महाभारत के समय संजय को दिव्य दृष्टि भी इन्होंने ही प्रदान की। इनके पुत्र शुकदेव मुनि हुए जिन्हें जन्म से ही चारों वेदों का ज्ञान प्राप्त था।
भारतीय संस्कृति और समृद्ध आध्यात्मिक पौराणिक इतिहास में महर्षि वेद व्यास का नाम सर्वोपरि लिया जाता है तथा उनकी जयंती के रूप में गुरु पूजा अथवा वेद व्यास जयंती गुरु-शिष्य परम्परा और अपने-अपने गुरु महाराज के चरणों में अगाध श्रद्धा और भक्ति भावना प्रकट करने का सुनहरा अवसर है।
