Edited By Niyati Bhandari,Updated: 14 Feb, 2024 07:41 AM
बसंत पंचमी के दिन मुगल शासकों ने धर्म की रक्षा के लिए छोटे बालक हकीकत राय को शहीद कर दिया था, जिसकी याद में देश के कई स्थानों पर इस दिन शहीदी मेले लगते हैं। अपनी कुर्बानी देकर देश को धन्य
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Hakikat rai story: बसंत पंचमी के दिन मुगल शासकों ने धर्म की रक्षा के लिए छोटे बालक हकीकत राय को शहीद कर दिया था, जिसकी याद में देश के कई स्थानों पर इस दिन शहीदी मेले लगते हैं। अपनी कुर्बानी देकर देश को धन्य करने वाले इस वीर बालक का जन्म 1719 में पंजाब के सियालकोट (अब पाकिस्तान में) के सम्पन्न और व्यापारी परिवार में पिता भागमल के घर माता गौरां की कोख से इकलौती संतान के रूप में हुआ।
पिता चाहते थे कि बेटा पढ़-लिख कर अच्छी सरकारी नौकरी करे, परंतु फारसी सीखे बिना ऐसा संभव नहीं था इसलिए पिता ने हकीकत को फारसी सीखने मदरसे में भेज दिया, जहां हकीकत अपनी तेज बुद्धि से सब कुछ ग्रहण कर प्रथम आने लगा। इससे मुस्लिम बच्चे हकीकत से ईर्ष्या करने लगे।
इसी दौरान हकीकत के माता-पिता ने गुरदासपुर जिला के बटाला नगर के कृष्ण सिंह और भागवती की सुंदर, सुशील और दयावान लड़की से शादी कर दी। मदरसे में एक दिन मौलवी नहीं थे तो मुस्लिम बच्चों ने हकीकत के सामने मां भगवती को अपशब्द कहे, जिसे सहन करना असम्भव था। हकीकत ने भी कह दिया कि ऐसा ही मैं यदि तुम्हारी पूज्य बीबी फातिमा के लिए कहूं तो ?
सहपाठियों ने मौलवी जी के आने पर यह बात उन्हें सिखा दी जिससे मौलवी आग-बबूला हो गए और इस बात को स्यालकोट के मिर्जा बेग की अदालत में ले गए। वहां भी हकीकत ने सही बात बताई जिससे मिर्जा भी नाराज हो गए और उसने शाही मुफ्ती काजी सुलेमान का मशवरा लिया जिसने हकीकत को जान बचाने के लिए मुसलमान होने को कहा परंतु हकीकत के ‘ऐसा नहीं होगा’ कहने पर केस को लाहौर भेज दिया गया।
वहां भी उन्होंने कहा ‘इस्लामी शरह अनुसार इसकी सजा केवल मौत है या इस्लाम कबूल करना’। इस पर बाल हकीकत ने कहा ‘मुझे है धर्म प्यारा, हंस के मैं बलिदान हो जाऊं, मुसलमान होने से बेहतर है कि मैं कुर्बान हो जाऊं।’
हकीकत ने शासक से कहा कि यदि मरना ही है तो हिन्दू ही क्यों न मरा जाए, जिससे आग बबूला हो उसे मौत की सजा सुनाई गई। 4 फरवरी, 1734 को बसंत पंचमी के दिन जल्लाद ने 14 वर्षीय बाल वीर हकीकत राय का सिर तलवार के एक ही वार में धड़ से अलग कर शहीद कर दिया।
लाहौर के हिंदुओं ने शालीमार बाग के पास उनका अंतिम संस्कार कर दिया और समाधि बना दी। वीर हकीकत के बलिदान का पंजाब के हिंदुओं पर बहुत असर पड़ा। हिन्दू जग उठा और उन्होंने मुगल शासन की ईंट से ईंट बजा दी। उधर पति की शहादत का सुनते ही इनकी पत्नी लक्ष्मी देवी, जो उस समय अपने मायके बटाला में थी, ने प्राण त्याग दिए। बटाला में इनकी याद में यहां की सामाजिक संस्था दैनिक प्रार्थना सभा द्वारा एक स्मारक का निर्माण करवाया गया है।
पंजाब सहित देश के अन्य भागों में हर वर्ष बसंत पंचमी को बाल वीर हकीकत का बलिदान दिवस बहुत श्रद्धा से मनाया जाता है। बटाला में इनकी समाधि पर हर वर्ष भारी मेला लगता है और सभी धर्मों के लिए बलिदान होने वाले इस वीर सपूत को याद कर श्रद्धासुमन अर्पित किए जाते हैं।