Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 May, 2022 12:02 PM

यह किस्सा सन् 1973 का है जब भारतीय भाषाओं के 16 लेखकों को सरकार ने सम्मान दिया। उनकी योग्यता को परखा। उन्हें एफ्रो एशियाई लेखक सम्मेलन में
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Harivansh Rai Bachchan: यह किस्सा सन् 1973 का है जब भारतीय भाषाओं के 16 लेखकों को सरकार ने सम्मान दिया। उनकी योग्यता को परखा। उन्हें एफ्रो एशियाई लेखक सम्मेलन में भेजा गया। यह ऐसा पांचवा सम्मेलन था जिसमें 16 भारतीय लेखक सोवियत संघ पहुंचे। हरिवंश राय बच्चन के साथ जो अन्य 15 लेखक थे उनमें से 2 नाम भीष्म साहनी तथा रणजीत के भी थे। भारत की संस्कृति के बारे में एक गोष्ठी पर खुल कर चर्चा की गई। एक रूसी लेखक ने भी भाग लिया जो अपने देश की खुशहाली का बखान करते नहीं थक रहे थे।
उन्हें जवाब देते हुए बच्चन जी ने अन्य अनेक बातों के साथ यह भी सगर्व कहा कि श्रीराम (दशरथ नंदन) जैसे लोकतंत्र का समर्थक राजा और कहीं नहीं मिलेगा। इसके लिए बच्चन जी ने अनेक प्रसंग सुनाए जो रामचरित मानस में हैं। उन्होंने यह बात सिद्ध कर दी कि भारत एक ऐसा महान देश है जिसमें बहुत पुरातन काल से मानवतावादी दृष्टिकोण को महत्व दिया जाता रहा है।
एक दिन आयोजक वर्ग लेखकों को भ्रमण पर ले गए। उन्हें एक सामूहिक सामुदायिक बस्ती दिखाई गई। लेखकों ने वहां एक झूला लटका हुआ देखा।

इसे देख कर बच्चन जी ने अपने साथी लेखकों से कहा, ‘‘भूल जाएं कि यह झूला बैठने के लिए प्रयोग किया जाता है, यह तो हम मेहमानों के सामने अपनी खुशहाली और सुव्यवस्था का केवल दिखावा है।’’
सोवियत लेखकों की समझ में आ गया कि भारत से आए बच्चन जी ने उन पर गहरा व्यंग्य कसा है। ऐसे थे तेज तर्रार कवि हरिवंश राय बच्चन।
