Edited By Niyati Bhandari,Updated: 01 Mar, 2021 11:13 PM
हंगरी के कैरोली टैकेक्स अपने दौर के सर्वश्रेष्ठ पिस्टल शूटर थे। सेना की ओर से वह खेल में भाग लेते थे और पच्चीस मीटर रैपिड फायर पिस्टल में उनका कोई मुकाबला नहीं था। शूटिंग में वह कई राष्ट्रीय और
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हंगरी के कैरोली टैकेक्स अपने दौर के सर्वश्रेष्ठ पिस्टल शूटर थे। सेना की ओर से वह खेल में भाग लेते थे और पच्चीस मीटर रैपिड फायर पिस्टल में उनका कोई मुकाबला नहीं था। शूटिंग में वह कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार अपने नाम कर चुके थे। अब टैकेक्स की बस एक ही तमन्ना थी-1940 के ओलिंपिक खेलों में स्वर्ण पदक हासिल करना। इसकी तैयारी में वह जी-जान से लगे हुए थे। लेकिन 1938 में एक दिन सैन्य अभ्यास के दौरान उनके दाएं हाथ में अचानक ग्रेनेड फट गया और टैकेक्स को अपना हाथ गंवाना पड़ा। इसके साथ ही ओलंपिक्स में स्वर्ण जीतने का सपना भी मानो उनसे दूर छिटक गया।
दुर्घटना के बावजूद टैकेक्स ने अपने सपने को जिंदा रखा। उन्होंने निर्णय लिया कि वह अपने सपने को अब बाएं हाथ से पूरा करेंगे। उन्होंने धीरे-धीरे अभ्यास शुरू किया और उसे बढ़ाते गए। उनमें हौसले के साथ धैर्य भी था। कई बार उन्हें लगा कि इस तरह से उनका सपना पूरा नहीं हो सकता लेकिन उन्होंने धैर्य की डोर नहीं छोड़ी। वह जी-जान से अभ्यास में लगे रहे।
1939 में वह एक राष्ट्रीय शूटिंग प्रतिस्पर्धा में गए। सबने इस बात के लिए उनकी तारीफ की कि वह मुश्किल हालात में भी खेल देखने आए हैं। टैकेक्स ने उत्तर दिया कि वह देखने नहीं, बल्कि प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लेने आए हैं। उन्होंने अपने बाएं हाथ से ही उस प्रतियोगिता को जीतकर सबको हैरान कर दिया।
द्वितीय विश्व युद्ध के चलते 1940 और 1944 के ओलंपिक्स रद्द कर दिए गए। टैकेक्स ने अभ्यास जारी रखा। 1948 में हुए ओलंपिक्स खेलों में स्वर्ण जीतकर उन्होंने नया इतिहास रच दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने 1952 के ओलंपिक्स में भी जीत हासिल की और सारी दुनिया को आश्चर्य में डाल दिया। कैरोली टैकेक्स ने दिखा दिया कि हिम्मत और धैर्य से हर सपना हकीकत में बदला जा सकता है।