Edited By Niyati Bhandari,Updated: 11 Jun, 2025 10:56 AM
How to reduce body heat: सुबह के ठीक 7 बजे हैं। दिल्ली की एक ठंडी सुबह का वक्त माना जाता है लेकिन जैसे ही मैं अपने ड्रॉइंग रूम में बैठकर रोज़ाना की तरह पानी का पहला घूंट लेती हूं, पसीना माथे से टपकने लगता है। पंखा थका-सा घूम रहा है और एसी ने जैसे...
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How to reduce body heat: सुबह के ठीक 7 बजे हैं। दिल्ली की एक ठंडी सुबह का वक्त माना जाता है लेकिन जैसे ही मैं अपने ड्रॉइंग रूम में बैठकर रोज़ाना की तरह पानी का पहला घूंट लेती हूं, पसीना माथे से टपकने लगता है। पंखा थका-सा घूम रहा है और एसी ने जैसे तापमान के आगे हथियार डाल दिए हों। मैं सोचने लगती हूं क्या इतनी सुबह ही इतनी गर्मी वाजिब है? फिर एक डर सताने लगता है। अगर एसी लगातार चलता रहा, तो कहीं ज़्यादा गर्मी के कारण शॉर्ट सर्किट न हो जाए। दिल्ली में ऐसी घटनाएं अब आम होती जा रही हैं।
जब गाड़ी चला रही होती हूं तो ध्यान सड़क या ट्रैफिक पर नहीं बल्कि अपने टायरों पर जाता है। लगता है जैसे वो पिघलते जा रहे हों। कुछ दिन पहले मैंने एक कार को सड़क पर जलते हुए देखा, बोनट से आग की लपटें निकल रही थीं। शायद भीषण गर्मी के कारण। उस पल ने मुझे झकझोर दिया। जलवायु परिवर्तन कोई भविष्य की बात नहीं है, यह तो हमारी आज की सच्चाई बन चुका है। हम न सिर्फ धरती को, बल्कि खुद को भी झुलसा रहे हैं।
फिर भी इस बेचैनी के बीच एक विचार गूंजता है। शायद हमने इसे पहले कभी बेहतर समझा था। शायद समाधान नए उपकरणों में नहीं, बल्कि उन पुराने तरीकों में हैं जिन्हें हमने छोड़ दिया है। मिट्टी, छाया और ऋतु के साथ सामंजस्य। जब दिल्ली तंदूर बन जाए, तो एसी नहीं, परंपराएं ही हमारी शरण होनी चाहिए।

एसी से कूलर से मिट्टी तक: धरती पर भरोसा करें
जब एसी और औद्योगिक पंखे नहीं थे, तब हमारे पूर्वज मिट्टी के घरों में रहते थे और मटकों का पानी पीते थे। मिट्टी के घर प्राकृतिक रूप से ठंडे रहते थे और बिजली की कोई ज़रूरत नहीं होती थी। एक छोटा मटका भी आज के फ्रिज को मात दे सकता है।
आज भी अगर हम घर में मटका रखें, मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाएं तो शरीर और मन, दोनों को राहत मिलती है। पानी नहीं, अमृत है—पारंपरिक पेय अपनाएं। गर्मी में सिर्फ पानी नहीं, कैसे पानी पिएं, ये भी मायने रखता है। कोल्ड ड्रिंक और बोतलबंद एनर्जी ड्रिंक छोड़िए, और अपनाइए ये देसी उपाय:
• सत्तू का शरबत – ठंडा, ताकतवर और सादा।
• आम पना – लू से बचाने वाला अमृत।
• बेल का शरबत – पेट को ठंडक देने वाला।
• छाछ या मट्ठा – पाचन के लिए बेहतरीन।
• नारियल पानी, सब्ज़ा बीज वाला नींबू पानी या जलजीरा।
ये सिर्फ पेय नहीं, आयुर्वेदिक सूत्र हैं। जिन्हें पीकर शरीर गर्मी को सहन करना सीखता है।

दोपहर के सूरज से दूर रहिए
दोपहर 12 से 4 बजे तक का वक्त सबसे ज्यादा ख़तरनाक होता है। इस समय घर से बाहर न निकलें। अगर जाना ही पड़े:
• पानी की बोतल साथ रखें
• छाता या सूती दुपट्टा साथ लें
• टोपी या स्कार्फ और अच्छे सनग्लासेस पहनें
• और जहां भी संभव हो, छांव में रुकें
ये छोटे उपाय आपकी सेहत को बड़ी राहत दे सकते हैं।

पहनावा भी है उपाय
हल्के रंग के सूती या लिनन के ढीले कपड़े पहनें। काले और सिंथेटिक कपड़े गर्मी को कैद कर लेते हैं। खुले सैंडल पहनें और चाहें तो गीला तौलिया गर्दन पर रखें। ये कई बार बैटरी वाले फैन से बेहतर काम करता है।
घर को ठंडा करें देसी अंदाज़ में, हमारे दादी-नाना को थर्मोस्टैट की ज़रूरत नहीं पड़ी थी:
• खस की टट्टी खिड़कियों पर, जिस पर पानी छिड़कने से खुशबूदार ठंडी हवा आती थी।
• गुलाब जल या चंदन की फुहारें—घर की हवा भी ठंडी और मन भी शांत।
• बांस या सूती परदे धूप को रोकते हैं लेकिन हवा को रोकते नहीं।
कृत्रिम ठंड की दौड़ छोड़िए, प्राकृतिक ठंड को अपनाइए, खाना जो मौसम दे, गर्मी में वही खाना चाहिए जो शरीर को ठंडक दे:
• खीरा, तरबूज़, ककड़ी, लौकी, पत्ता गोभी
• दही, रायता, छाछ
• तेलीय, मसालेदार और भारी भोजन से बचें। चाय, कॉफी, शराब कम लें।
गर्मी में पाचन-तंत्र पहले से ही गरम होता है, उसे और जलाइए मत। ठंडा मन, ठंडी चाल
पैरों को ठंडे पानी में भिगोने से शरीर की भीतरी गर्मी कम होती है। शाम को या रात को इसे ज़रूर आज़माएं।
माथे पर चंदन का लेप या एलोवेरा जेल लगाने से भी काफी राहत मिलती है—तन और मन, दोनों को ठंडक प्राप्त होती है।

खाटू श्याम मंदिर से मिली सीख: स्प्रिंकल फैन
हाल ही में खाटू श्याम मंदिर में एक खूबसूरत और विचारशील व्यवस्था देखी। स्प्रिंकल फैन, जो हवा के साथ हलकी-सी फुहार छोड़ते हैं। हज़ारों श्रद्धालुओं को चंद पलों में राहत मिलती है, वो भी बिना प्रदूषण या भारी बिजली के खर्च के।
मैंने सोचा सरकारी दफ्तरों, स्कूलों और अस्पतालों में ऐसा क्यों नहीं हो सकता ? जहां एसी संभव नहीं, वहां ये फैन एक सस्ती, टिकाऊ और मानवीय व्यवस्था हो सकती है। यह विलासिता नहीं संवेदनशीलता है। हमें अपने पब्लिक स्पेसेज़ को भी इंसानी सोच से ठंडा करना होगा।

एक क्षण विचार का जब दिल्ली की लू हमें झुलसा रही हो, तो सवाल पूछना ज़रूरी है:
• क्या तकनीक वास्तव में प्रकृति का स्थान ले सकती है?
• क्या हम अपने घरों को ठंडा और शरीर को गरम कर रहे हैं?
• क्या अब समय है कि हम धीमे चलें जैसे हमारे बुज़ुर्ग चलते थे?
गर्मी से लड़ना नहीं, गर्मी से तालमेल बनाना ज़रूरी है। हमारी संस्कृति में इससे जूझने के आसान और गहरे उपाय हैं। ये सिर्फ गर्मी झेलने की बात नहीं है बल्कि गर्मी में समझदारी से जीने की बात है।
अंत में आइए, बिजली जाने, कारों में आग लगने और लू की ख़बरों का इंतज़ार न करें। उत्तर तो हमारे पास हैं मटके में, खस की टट्टी में, नारियल पानी में और उस दोपहर की झपकी में जिसे हमने भूला दिया है।

इस गर्मी को अपना गुरु बनाइए
धीरे चलिए।
बिना केमिकल वाले पेय पीजिए।
हल्के कपड़े पहनिए।
संघर्ष से नहीं, शांति से जिएं।
और सबसे महत्वपूर्ण प्रकृति से लड़िए मत, उससे मित्रता कीजिए।
डॉ. तनु जैन, सिविल सेवक और आध्यात्मिक वक्ता
रक्षा मंत्रालय
