Edited By Sarita Thapa,Updated: 16 Oct, 2025 06:02 AM

भारत जैसे आध्यात्मिक देश में जब भी कोई त्योहार आता है, तो उसकी शुरुआत भजन और कीर्तन के साथ होती है। चाहे मंदिरों में हो या घरों में, देवी-देवताओं की स्तुति गाकर लोग अपनी आस्था व्यक्त करते हैं।
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Importance of Bhajan and Kirtan: भारत जैसे आध्यात्मिक देश में जब भी कोई त्योहार आता है, तो उसकी शुरुआत भजन और कीर्तन के साथ होती है। चाहे मंदिरों में हो या घरों में, देवी-देवताओं की स्तुति गाकर लोग अपनी आस्था व्यक्त करते हैं। संगीत और श्रद्धा का यह संगम न केवल वातावरण को पवित्र बनाता है बल्कि मन को भी शांति और आनंद से भर देता है। इसके अवाला भजन और कीर्तन दोनों में थोड़ा अंतर हैं। तो आइए जानते हैं कि भजन और कीर्तन दोनों में अंतर के बारे में-

भजन का अर्थ और उद्देश्य
भजन शब्द ‘भज’ धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है ‘सेवा’ या ‘स्मरण’। भजन मूल रूप से भगवान के नाम, गुण और लीला का स्मरण होता है। इसे एकांत में या समूह में गाया जा सकता है। भजन का मुख्य उद्देश्य मन को ईश्वर से जोड़ना और अपने भीतर की नकारात्मकता को दूर करना है। भजन सुनने या गाने से मन में श्रद्धा, प्रेम और भक्ति की भावना गहराती है।

कीर्तन क्या होता है?
कीर्तन भजन का ही एक ऊर्जावान रूप है, जिसमें सामूहिक रूप से ईश्वर के नाम का गान किया जाता है। इसमें वाद्य यंत्र जैसे मृदंग, हारमोनियम, झांझ आदि के साथ ताल और लय का विशेष महत्व होता है। कीर्तन के दौरान भक्तगण तालियों और नृत्य के साथ भगवान के नाम का गुणगान करते हैं। इसका उद्देश्य भक्तों के बीच भक्ति का संचार और सामूहिक ऊर्जा का निर्माण करना होता है।
भजन और कीर्तन में अंतर
भजन और कीर्तन दोनों ही भक्ति के माध्यम हैं, लेकिन उनके रूप और अभिव्यक्ति में थोड़ा अंतर है। भजन आमतौर पर शांत, सरल और भावनात्मक होता है। इसे व्यक्ति अकेले भी गा सकता है। कीर्तन अधिक जोश और सामूहिकता से जुड़ा होता है, जिसमें संगीत, नृत्य और उत्साह का मेल रहता है। भजन मन को भीतर की ओर ले जाता है, जबकि कीर्तन सामूहिक भक्ति की शक्ति को जगाता है।
