Edited By Prachi Sharma,Updated: 26 Jul, 2025 02:51 PM
Inner Peace Journey: मनुष्य का चित्त सदा चंचल, अशांत और प्रश्नों से घिरा रहता है। जीवन में स्थिरता की खोज करते हुए भी हम स्वयं अपने अंतर्मन में अनगिनत उलझनों में उलझे रहते हैं। एक प्रश्न का उत्तर मिलते ही दूसरा जन्म लेता है।
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Inner Peace Journey: मनुष्य का चित्त सदा चंचल, अशांत और प्रश्नों से घिरा रहता है। जीवन में स्थिरता की खोज करते हुए भी हम स्वयं अपने अंतर्मन में अनगिनत उलझनों में उलझे रहते हैं। एक प्रश्न का उत्तर मिलते ही दूसरा जन्म लेता है। इच्छाएं कभी समाप्त नहीं होतीं- एक पूरी हो, तो दूसरी सिर उठाती है। इसी क्रम में जीवन बीतता चला जाता है और एक दिन सब कुछ समाप्त हो जाता है, फिर भी मनुष्य रुकता नहीं।
यह विस्मयकारी सत्य है कि मृत्यु की अनिवार्यता को जानकर भी हम मोह, द्वेष, ईर्ष्या और लालच में डूबे रहते हैं। जबकि जैन दर्शन हमें सिखाता है कि यह संसार अनित्य है, न कोई वस्तु शाश्वत है, न कोई संबंध, और न ही यह शरीर।
परिग्रह ही दुखों का मूल है— यह उपदेश केवल त्याग की बात नहीं करता, यह भीतर की स्वतंत्रता की बात करता है।
हम जीवन भर कुछ न कुछ पाने की होड़ में रहते हैं — पद, प्रतिष्ठा, प्रेम, पहचान — परंतु अंततः सब कुछ छूट जाता है। जैन धर्म हमें बताता है कि जो वस्तु परिग्रह का कारण बनती है, वही बंधन का कारण बनती है।
आत्मा ही सर्वोच्च है और उसका धर्म आत्मशुद्धि है — भगवान महावीर
इसलिए जीवन को जटिलता से सरलता की ओर, अशांति से आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाने का एकमात्र मार्ग आत्म संयम, वैराग्य और साधना है।
जीवन को सार्थक और शांतिपूर्ण बनाने के कुछ जैन सिद्धांत:
संयम (Self-restraint): जैन साधना का मूल है — इंद्रियों का निग्रह, वाणी की मर्यादा और आचरण की पवित्रता।
अहिंसा (Non-violence): विचार, वाणी और व्यवहार में किसी भी प्रकार की हिंसा से बचना।
अपरिग्रह (Non-possession): अधिक संग्रह से मुक्त होकर जीना। जितना कम परिग्रह, उतनी अधिक शांति।
सम्यक दर्शन, ज्ञान और चारित्र: यह तीन रत्न आत्मा के मोक्ष के लिए अनिवार्य हैं।
प्रत्याहार और ध्यान: बाहरी वस्तुओं से मन को हटाकर भीतर की ओर लाना ही सच्चा साधन है।
मृत्यु का स्मरण (मरणानुस्मृति): यह जीवन को अर्थ देता है और मोह को क्षीण करता है।
कुछ सटीक पंक्तियां जो इस विषय को संक्षेप में समेटती हैं:
ख़ुदा की खोज में जब-जब निकले हम,
तो पाया कि वो तो भीतर ही बैठा था,
हमें बस अपने भीतर उतरना नहीं आया।”
“ना क्रोध से सुलझते हैं सवाल,
ना मोह से मिलती है शांति;
बस सत्य और क्षमा ही हैं,
जिनसे जीवन की गांठें खुलती हैं।”
यह लेख उन सभी आत्माओं को समर्पित है जो जीवन के उद्देश्य को जानना चाहते हैं — न केवल जीना, बल्कि सही अर्थों में जागना चाहते हैं। जैन दर्शन, केवल एक धर्म नहीं- यह आत्मा की मुक्ति की विधा है, एक विज्ञान है भीतर की यात्रा का।
Dr. Tanu Jain, Civil Servant and Spiritual Speaker
Ministry of defence