Edited By Sarita Thapa,Updated: 27 Jun, 2025 12:17 PM

Inspirational Context: उन दिनों बनारस नगरी में शीतल नाम के एक तपस्वी रहते थे। वह बड़े नेकदिल इंसान थे। उनकी धैर्यशीलता और दयालुता के कारण कई लोग उन्हें त्याग एवं तपस्या का साक्षात देवता कहकर पुकारते थे।
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Inspirational Context: उन दिनों बनारस नगरी में शीतल नाम के एक तपस्वी रहते थे। वह बड़े नेकदिल इंसान थे। उनकी धैर्यशीलता और दयालुता के कारण कई लोग उन्हें त्याग एवं तपस्या का साक्षात देवता कहकर पुकारते थे। वहीं कुछ लोग ऐसे भी थे जो उनसे जलन रखते थे। कोई न कोई बहाना ढूंढकर वे हमेशा उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश में लगे रहते। वे रात्रि के समय अपने घर का तमाम कूड़ा-कर्कट एकत्रित करके उनके घर के आगे फैंक आते। कई बार वे कांटे तथा नुकीले कंकर-पत्थर भी बिछा देते थे।
प्रात: काल जब तपस्वी की नींद खुलती तो वह अपने घर के आगे फैली तमाम गंदगी को अपने हाथों से उठाकर कूड़ेदान में फैंक आते। एक दिन तपस्वी के खास मित्र ने पंचायत के समक्ष चर्चा करते हुए कहा, “तपस्वी तो शांत प्रकृति के इंसान हैं, लेकिन कुछ शरारती लोग उन्हें बेमतलब परेशान करते रहते हैं, अत: ऐसे लोगों को दंड देना चाहिए।”

पंचायत के मुखिया ने जब तपस्वी से पूछा, ‘‘उन शरारती लोगों को कैसा दंड दें?’’
इस पर तरस्वी बोले,“नहीं, मैं किसी भी तरह के दंड की आवश्यकता नहीं समझता।” मुखिया ने सवाल किया,“तो फिर आप कब तक उन दुष्ट लोगों की शरारतों को सहन करते रहेंगे?”
तपस्वी मुस्कुराते हुए बोले,“मैं तब तक सहन करता रहूंगा, जब तक कि उनके पत्थर दिल में मेरे प्रति ईर्ष्या-द्वेष की भावना समाप्त नहीं हो जाती।”
तपस्वी के जवाब के आगे उन दुष्ट लोगों को अपना शीश झुकाना पड़ा। अब वे कूड़ा-कर्कट न फैंकने का संकल्प ले चुके थे तथा उनके सच्चे शिष्य भी बन गए थे।
