Inspirational Context: मृत्यु देती है जीवन की अमूल्य सीख

Edited By Updated: 11 Jul, 2025 07:01 AM

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Inspirational Context: जीवन तथा शरीर को नश्वर मानकर भी मनुष्य मृत्यु से शिक्षा नहीं लेता, जो कदम-कदम पर मनुष्य को चेतावनी देती रहती है। श्वासों के माध्यम से मृत्यु प्रतिपल मनुष्य के प्राणों को अपनी ओर खींचती रहती है, परंतु फिर भी मनुष्य की इस संबंध...

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Inspirational Context: जीवन तथा शरीर को नश्वर मानकर भी मनुष्य मृत्यु से शिक्षा नहीं लेता, जो कदम-कदम पर मनुष्य को चेतावनी देती रहती है। श्वासों के माध्यम से मृत्यु प्रतिपल मनुष्य के प्राणों को अपनी ओर खींचती रहती है, परंतु फिर भी मनुष्य की इस संबंध में बेपरवाही हैरानीजनक है। मौत तभी से ताक लगाए रहती है, जब से जीव इस संसार में जन्म लेता है।

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ज्ञानीजन समझाते हैं कि सदा भोगों में आसक्त रहना और लौकिक प्रपंचों, दुनियावी झंझटों में ग्रस्त रहना बुद्धिमानी नहीं है। मौत के बाद भी जो मन के रोगों के कीटाणु अपना फल देते हैं, जीवन रहते ही उन्हें नष्ट कर लेने का प्रयत्न कर लेना चाहिए, अन्यथा पश्चाताप के अलावा कुछ भी हाथ में नहीं रहता।  

जब कालचक्र मस्तक पर घूमने लगता है तो पल भर का समय भी उपचार करने का नहीं मिलता। करोड़ों प्रयत्न करने पर भी मौत के चंगुल से व्यक्ति बच नहीं सकता। भले ही तहखानों में छिपकर बैठा जाए, कदम-कदम पर सशस्त्र प्रहरी नियुक्त कर लिए जाएं, अचूक निशानेबाज-व्यक्तिगत सुरक्षाकर्मी रख लिए जाएं, परंतु काल के आगे सभी उपाय हार जाते हैं और उसके समक्ष मस्तक झुकाकर पीछे-पीछे चलना पड़ता है। सगे-सम्बन्धी देखते रह जाते हैं।

कोई भी मरणासन्न की रक्षा नहीं कर पाता। मृत्यु का ध्यान रखते हुए एक पल भी व्यर्थ गंवाए बिना मनोरोगों का निदान तथा उपचार करना चाहिए।

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मन का सबसे भंयकर रोग अस्थिरता है। हड़बड़ाहट, घबराहट, अधीरता और उतावलापन सब अस्थिरता के ही कारण है। अस्थिरता के कारण मनुष्य उतावली से कभी एक काम करता है और उसे अधूरा छोड़कर दूसरा कार्य प्रारम्भ कर देता है।

ऐसी मनोदशा में कोई भी काम संवरता नहीं। जल्दबाजी का काम पागलों जैसा होता है और सफलता से कोसों दूर रहता है। मन की चंचलता का कोई ठिकाना नहीं होता। एक पल में यह देवता बन जाता है और दूसरे पल में राक्षस, कभी अकूत धन-संपत्ति पर निगाह तक नहीं डालता तथा कभी रुपयों के लिए ईमान बेच देता है। कभी शहद से भी अधिक मीठा बन जाता है और कभी बिच्छू के डंक की तरह जहरीला।

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अपनी अस्थिरता की वजह से यह नाना प्रकार के कर्मों का बंधन बड़ी तीव्रता से कर लेता है। मनोयोग इतना प्रबल है कि जिस आधे क्षण में 7वीं नरक का बंधन पड़ सकता है, उसी आधे क्षण में कर्मों का सर्वनाश करके मोक्ष की प्राप्ति भी की जा सकती है।  जिसका मन स्थिर तथा अडोल होता है, वही ध्यान कर सकता है और प्रशंसा का पात्र बनता है। चंचल मन से टक्कर लेने में अतीव परिश्रम तथा साहस की आवश्यकता है।

मन वश में आने पर संसार की कोई भी शक्ति मुक्त होने से नहीं रोक सकती। मन को जीतने वाला सारे जगत को जीत लेता है। मन को न जीतकर स्वयं उसके वश में होने पर सारे संसार की अधीनता स्वीकार करनी पड़ती है।

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