Edited By Prachi Sharma,Updated: 20 Jul, 2025 07:00 AM

Inspirational Context: एक बार संध्या समय योग गुरु स्वामी सत्यानंद सरस्वती अपने योग आश्रम में टहल रहे थे। वहां रह कर योग सीखने के उद्देश्य से उसी दिन एक सम्पन्न किसान आश्रम में आया था। पहले दिन ही उसकी भेंट स्वामी जी से हो गई।
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Inspirational Context: एक बार संध्या समय योग गुरु स्वामी सत्यानंद सरस्वती अपने योग आश्रम में टहल रहे थे। वहां रह कर योग सीखने के उद्देश्य से उसी दिन एक सम्पन्न किसान आश्रम में आया था। पहले दिन ही उसकी भेंट स्वामी जी से हो गई।
स्वामी जी ने उसका कुशल-क्षेम पूछा तो जवाब में किसान ने खीझते हुए बताया, “स्वामी जी, आपके आश्रम में खाने में जो मुझे रोटियां मिली थीं वे ठंडी, सख्त और अधपकी थीं।”

स्वामी जी बोले, “यहां लोग मिल-जुल कर खाना बनाते हैं, वे भोजन बनाने में दक्ष नहीं हैं। कल से रोटी बनाने की जिम्मेदारी आपको सौंप दी जाएगी।” इतना सुनते ही किसान परेशान हो गया।
उसने कहा, “मैंने हमेशा खेतीबाड़ी ही की है, रोटियां पकाना मेरा काम नहीं है।” हालांकि दूसरे दिन उस सम्पन्न किसान ने सचमुच रोटियां अच्छी तरह पकाईं। सभी ने तारीफ करते हुए नर्म-मुलायम रोटियां खाईं। दूसरे दिन उसने थोड़ी बेडौल रोटियां बनाईं। आगे के दिनों में तो वह अधपकी और सख्त रोटियां ही बनाने लगा। एक दिन रोटियां बनाने वह रसोई में काफी देर से पहुंचा।

यह बात स्वामी तक पहुंची तो उन्होंने उनसे भोजन में देरी होने की वजह जाननी चाही। किसान ने झेंपते हुए कहा, ‘मैं रोज-रोज रोटियां बनाते-बनाते ऊब गया हूं इसलिए देर से पहुंचा।
स्वामी जी ने किसान के साथ-साथ सभी लोगों को संबोधित करते हुए कहा, “अगर हमारा लक्ष्य परम योग को प्राप्त करना है तो हमें रोजमर्रा की छोटी-छोटी बातों पर भी ध्यान देना होगा। रोटियों में मीन-मेख निकालने की बजाय हम भोजन उपलब्ध कराने वालों का आभार करें।
जिस कार्य की हम निंदा कर रहे हैं उस कार्य को स्वयं करके जरूर देखें, तभी हम दूसरों के श्रम का सम्मान करना सीख पाएंगे।”
