Edited By Prachi Sharma,Updated: 02 Oct, 2025 06:00 AM

Inspirational Context: श्वेतकेतु ऋषि आरुणि का पुत्र था। आरुणि ने उसे घर में ही प्रारंभिक शिक्षा और संस्कार दिए। कुछ बड़ा होने पर उन्होंने श्वेतकेतु से कहा, ‘‘कुल की परम्परा के अनुरूप गुरुकुल में रहकर साधना और धर्मशास्त्रों का अध्ययन करना।
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Inspirational Context: श्वेतकेतु ऋषि आरुणि का पुत्र था। आरुणि ने उसे घर में ही प्रारंभिक शिक्षा और संस्कार दिए।
कुछ बड़ा होने पर उन्होंने श्वेतकेतु से कहा, ‘‘कुल की परम्परा के अनुरूप गुरुकुल में रहकर साधना और धर्मशास्त्रों का अध्ययन करना।

गुरुकुल ही तुम्हारा उपनयन संस्कार होगा। गुरु की सेवा और सान्निध्य से ही तुम विभिन्न उपनिषदों और वेदों में पारंगत हो सकोगे।’’
श्वेतकेतु पिता का आदेश मानकर गुरुकुल में जाकर गुरु की सेवा में लग गया। चौबीस वर्ष की आयु पूरी होने पर वह घर लौटा। उसे यह झूठा अभिमान हो गया कि वेदों का उससे बड़ा कोई दूसरा व्याख्याता नहीं है और वह शास्त्रार्थ में सभी को पराजित कर सकता है।
वह अपने को पिता से भी बड़ा विद्वान मानने लगा। पिता ने पुत्र के अभिमानी और उद्दंडी स्वभाव को सहज ही भांप लिया। वे जान गए कि इसका अमर्यादित स्वभाव और अहंकार इसके पतन का कारण बनेगा।

एक दिन पिता आरुणि ने एकांत पाकर पुत्र से धर्मशास्त्र व आत्मा संबंधी कुछ प्रश्न पूछे लेकिन वह किसी का भी उपयुक्त उत्तर नहीं दे पाया।
आरुणि ने कहा, ‘‘पुत्र तुम्हारे गुरु महान पंडित व साधक हैं। लगता है अहंकारग्रस्त होने के कारण तुम उनसे कुछ प्राप्त नहीं कर पाए। गुरु से कुछ पाने के लिए विनयशील होना आवश्यक है। अनजान और मासूम बनकर ही गुरु से कुछ सीखा जा सकता है।’’
यह सुन कर श्वेतकेतु का अहंकार भी चूर-चूर हो गया। पिता आरुणि ने उसे शास्त्रों का दृष्टांत देकर अमरत्व का सार बताया।
