Edited By Sarita Thapa,Updated: 16 Oct, 2025 06:00 AM

एक बार रसायन शास्त्री आचार्य नागार्जुन को एक सहायक की जरूरत थी। उन्होंने अपने पुराने शिष्यों को बताया तो शिष्यों ने कई युवकों को आचार्य के पास भेजा।
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Inspirational Context: एक बार रसायन शास्त्री आचार्य नागार्जुन को एक सहायक की जरूरत थी। उन्होंने अपने पुराने शिष्यों को बताया तो शिष्यों ने कई युवकों को आचार्य के पास भेजा। आचार्य ने परीक्षा लेकर दो युवकों को चुना और दोनों को एक-एक रसायन तैयार करके लाने का आदेश दिया।

पहला युवक दो दिन बाद रसायन तैयार करके ले आया। आचार्य बहुत प्रसन्न हुए और युवक से पूछा, “तुमने बहुत जल्दी रसायन तैयार कर लिया, कुछ परेशानी तो नहीं हुई?” युवक बोला, “परेशानी तो आई। मेरे माता-पिता बीमार थे फिर भी समय निकाल कर मैंने रसायन तैयार कर लिया।”
कुछ देर बाद दूसरा युवक बिना रसायन लिए खाली हाथ आ गया और बोला, “आचार्य जी क्षमा करें, मैं रसायन तैयार नहीं कर पाया क्योंकि यहां से जाते हुए रास्ते में एक बुजुर्ग व्यक्ति मिल गया जो पीड़ा से कराह रहा था। मुझसे उसकी पीड़ा देखी नहीं गई। मैं उसे अपने घर ले गया और उसके इलाज में लग गया। अब वह पूरी तरह स्वस्थ है। आप यदि आज्ञा दें तो मैं रसायन तैयार करके ले आऊं।”

आचार्य नागार्जुन ने मुस्कुरा कर कहा, ‘‘वत्स, तुम्हें अब रसायन बनाने की जरूरत नहीं है। कल से तुम मेरे साथ रहकर काम कर सकते हो।’’ फिर पहले युवक से बोले, ‘‘तुम्हें अपने अंदर और सुधार करने की जरूरत है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘सच्चा चिकित्सक वह है जिसके अंदर मानवता भरी हो। उसके भीतर यह विवेक होना आवश्यक है कि पहले क्या करें।’’
