Edited By Sarita Thapa,Updated: 30 Oct, 2025 06:00 AM

मन को ‘शुभ विचार’ में लगाए रखें रोग शारीरिक अथवा मानसिक कोई भी हो, कैसा भी हो, उन्नत विज्ञान वाले इस युग में प्राय: सभी रोगों का उपचार संभव है।
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Inspirational Context: मन को ‘शुभ विचार’ में लगाए रखें रोग शारीरिक अथवा मानसिक कोई भी हो, कैसा भी हो, उन्नत विज्ञान वाले इस युग में प्राय: सभी रोगों का उपचार संभव है। मनुष्य को कभी यह सोचकर निराश नहीं होना चाहिए कि हम स्वस्थ नहीं हो सकते। शारीरिक व्याधियों के लिए आज देश में अस्पतालों का बड़ा नैटवर्क है। अनगिनत डाक्टर तथा सर्जन मनुष्यों को शरीर की व्याधियों से छुटकारा दिलाने का प्रयत्न करते हैं। प्रतिदिन नई औषधियों का आविष्कार होता है तथा भयंकर रोग भी काफी सीमा तक ठीक होते हुए देखे जाते हैं।

मानसिक रोग बाहरी अर्थात शारीरिक त्रुटि से होने वाले और भीतरी अर्थात अंतर्चेतना से संबंध रखने वाले होते हैं। शरीर की व्याधियां दवाएं लेने पर ठीक होने लगती हैं और नियमित रूप से दवा का उपयोग करते रहने पर मिट जाती हैं, किंतु मन के रोग शीघ्र दूर नहीं होते। शरीर के रोगों के लिए जो औषधि दी जाती है, शरीर उसे वैसे ही ग्रहण कर लेता है। उसमें यह शक्ति नहीं कि उसे मानने तथा ग्रहण करने से इंकार कर देवे। मन में इतनी अधिक शक्ति होती है कि वह इच्छा होने पर ही उपचार को मानता है।

दृष्टिगोचर होता है कि मन का रोगी एक बार स्वस्थ हो जाने पर दोबारा, तिबारा और बार-बार उसी रोग से आक्रांत होता रहता है क्योंकि उसका अपने मन पर वश नहीं रहता इसलिए मन के रोगों का उपचार करने में अत्यंत सावधानी तथा अभ्यास करने का प्रयत्न आवश्यक है। मन को स्वस्थ तथा रोगमुक्त रखने का प्रथम उपचार मन को खाली न रखकर किसी न किसी शुभ विचार अथवा श्रेष्ठ क्रिया में लगाए रखना है। क्रियाहीन मन आनंदप्रदाय नहीं बन सकता। वही शरीर सुडौल तथा शक्तिशाली बन सकता है, जो व्यायाम करता रहे। निकम्मा शरीर रोगी तथा कुरूप हो जाता है। मन स्वभावत: ही कुछ न कुछ चिंतन करता रहता है। उच्च कोटि की साधना के द्वारा मन निष्क्रिय बनाया जाता है, परंतु यह साधारण व्यक्ति के लिए संभव नहीं।
मन को शुभ व्यापार में लगाकर रखा जाए अन्यथा वह अनिष्ट चिंतन करने लगता है। जुगनूं जब तक उड़ता है, वह प्रकाशयुक्त रहता है। उड़ने की क्रिया छोड़ते ही वह प्रकाश रहित और अंधकारमय बन जाता है। इसी प्रकार मन भी जब खाली रहता है तब उसमें पाप रूपी अंधकार के मलिन भाव प्रवेश करते जाते हैं। मानव मन काली मिट्टी की भूमि के सदृश होता है। यदि इसमें धर्म के बीज डाले जाएं तो वे लहलहाती फसल बन जाते हैं, परंतु यदि उसे यूं ही छोड़ दिया जाए तो कुभावनाओं और कुवासनाओं के झाड़-झंखाड़ पैदा हो जाते है तथा वह निष्क्रिय और नि:सत्व बन जाता है। इसलिए मन की निरोगता के लिए उसे खाली न रख कर किसी न किसी उत्तम विचार में संलग्न रखा जाए।
