वसीयत बनाते समय ध्यान रखें ये बात, संतान को मिलेगा जीवन का हर सुख

Edited By Updated: 05 Apr, 2023 01:30 PM

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सोने-चांदी का एक बहुत बड़ा व्यापारी था। घर-परिवार, पत्नी, पुत्र से सम्पन्न। सबसे प्रेम व्यवहार और स्नेह था, पर सीमा के अंदर बहुत संयत। एक दिन पत्नी ने देखा कि बरसों बाद पति उसके लिए आभूषणों का तोहफा

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Inspirational Story: सोने-चांदी का एक बहुत बड़ा व्यापारी था। घर-परिवार, पत्नी, पुत्र से सम्पन्न। सबसे प्रेम व्यवहार और स्नेह था, पर सीमा के अंदर बहुत संयत। एक दिन पत्नी ने देखा कि बरसों बाद पति उसके लिए आभूषणों का तोहफा लाए, पुत्र ने देखा पिता का दुलार पहले से कहीं अधिक हो रहा था फिर प्रतिदिन सोने-चांदी के उपहार आने लगे और बेटे से लाड-प्यार भी अधिक होने लगा। यह सिलसिला लगभग महीना-दो महीना ही चला होगा कि व्यापारी की हृदयगति रुकी और वह परलोक सिधार गया। पत्नी और बेटा जब इस आकस्मिक अघात से उभरे और व्यापार संभालने के बारे में सोचा तो स्थिति बहुत सुखद न थी। विवश होकर पत्नी ने बेचने के लिए आभूषणों की संदूकची निकाली। 

खोलते ही उसमें से पर्ची निकली, ‘हीरे तृष्टिपूर्ण हैं और सोना अशुद्ध, बाकी कला है।’ 

मां ने बेटे को  बुलाया और पर्ची दिखा कर कहा, ‘‘बहुत से जेवरात तेरे पिता जी ने मुझे भेंट किए थे अंतिम 2 मास में। उनकी यादों को अपने से अलग करना तो कठिन है पर उस घर और व्यापार को अगर फिर से सुचारू रूप से चलाना है तो ये आभूषण बेचने पड़ेंगे। जो धन मिलेगा उस से कुछ राहत भी होगी। कुछ आभूषण शायद नकली हैं।’’ 

बहुत सोच-विचार हुआ कि आभूषण किस को बेचे जाएं। घर की प्रतिष्ठा का प्रश्र भी था और सही मूल्यांकन का भी। अंत में तय हुआ कि जिस वयोवृद्ध कारीगर से पिता जी ने स्वयं स्वर्ण आभूषण बनाने की कला सीखी थी और जिसकी धर्म निष्ठा के कारण सोने-चांदी के व्यापारी उसे गुरु जी कहते थे उसकी शरण ली जाए। आभूषण संदूकची में बंद करके बेटा बूढ़े कारीगर की दुकान पर पहुंचा। बेटे ने माल सामने रखा और वह पर्ची भी उसे दिखा दी। बूढ़े ने एक नजर देखा और कहा, ‘‘अभी भाव कुछ ठीक नहीं मिलेगा। तू ये आभूषण अभी मत बेच। जब समय अनुकूल होगा तो मैं तुम्हें संदेश भेजूंगा।’’

तीन-चार दिन बाद बूढ़ा कारीगर उनके घर आया। उस ने मां और बेटे दोनों को पास बिठा कर कहा, ‘‘मैं तुम्हारी परेशानी समझता हूं पर ये आभूषण किसी को बेचना घाटे का सौदा होगा।’’ 

‘‘क्यों न ऐसा करें, मंदा दूर होने तक आभूषण इसी तरह रहने दें और ये तुम्हारा बेटा मेरे पास आभूषण बनाने और परखने की कला सीखना शुरू कर दे। मैं अच्छा पारिश्रमक दे दूंगा।’’

बात मां को जंची और कला सीखने का प्रयास फौरन ही शुरू हो गया।

एक दिन बूढ़े कारीगर ने घर आकर मां और बेटे से कहा, ‘‘आजकल बाजार भाव ठीक हो गया है। अब चाहो तो आभूषणों की बिक्री की बात हो सकती है।’’

मां संदूकची लाई। बेटे ने ढक्कन खोला और आभूषण देख कर जोर-जोर से हंसने लगा। 

मां ने पूछा, ‘‘क्यों हंसते हो?’’

बेटे ने कहा, ‘‘मां ये आभूषण असली हैं, बहुमूल्य हीरे और शुद्ध सोने के।’’

चौंक कर मां ने बूढ़े कारीगर की और देखा और पूछा, ‘‘आपको मालूम था?’’

बूढ़े कारीगर ने स्वीकृति में सिर हिलाया और बोला, ‘‘पर्ची चेतावनी न देती तो बेटा कला न सीखता, धन लुटाता, प्रयास न करता। अब वह योग्य है, खुद निर्णय ले सकता है और यही उसके पिता जी भी चाहते थे।’’ 

अभ्यास के लिए अंतर्मन के नेत्र खोलने का प्रयास तो स्वयं ही करना होगा और जहां सच्ची लगन से प्रयास शुरू हुआ अनंत अलोक स्वयं पूरा अस्तित्व प्रकाशित कर देता है।    

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