Edited By Prachi Sharma,Updated: 12 Sep, 2025 02:00 PM

Inspirational Story: एक राजा रोज सुबह घूमने निकलता और जो भी पहला याचक दिखाई देता, उसकी मुंहमांगी मदद करता। एक दिन महल से निकलते ही उसे एक ब्राह्मण मिल गया। राजा ने पूछा, ‘‘कहिए, क्या सेवा करूं ?’’
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Inspirational Story: एक राजा रोज सुबह घूमने निकलता और जो भी पहला याचक दिखाई देता, उसकी मुंहमांगी मदद करता। एक दिन महल से निकलते ही उसे एक ब्राह्मण मिल गया। राजा ने पूछा, ‘‘कहिए, क्या सेवा करूं ?’’
ब्राह्मण संकोचवश बोला, ‘‘जो भी उचित समझें।’’
राजा ने कहा, ‘‘आप ही बताइए क्या चाहिए ?’’

ब्राह्मण में लोभ जाग उठा। उसने कहा, ‘‘महाराज आप सैर कर आएं तब तक मैं सोच लूंगा कि मुझे क्या चाहिए।’’
राजा चला गया। ब्राह्मण ने सोचा कि ऐसा अवसर बार-बार नहीं आता इसलिए क्यों न कुछ ऐसा मांगा जाए कि फिर मांगने की जरूरत ही न रहे।
राजा ने वापस आकर ब्राह्मण की इच्छा पूछी।
ब्राह्मण ने पूरा राज्य मांग लिया। राजा तुरंत इसके लिए तैयार हो गया।
उसने कहा, ‘‘प्रियवर मैं तो बहुत दिनों से प्रतीक्षा में था कि इस राज्य के भार से कब मुक्त हो जाऊं। आप यहीं ठहरें, मैं राज्य सौंपने का प्रबंध करता हूं।’’

इतना कह कर राजा महल के अंदर चला गया लेकिन इधर ब्राह्मण चिंता में डूब गया। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि राजा इतनी आसानी से राजपाट सौंप देगा।
ब्राह्मण में एक ईश्वरीय किरण-सी जागी और उसने सोचा, ‘‘राजा तो वास्तविक वीतरागी है। मैं तो कोरा दिखावा करता रहता हूं। यह तो सचमुच निर्लिप्त है।’’
सर्वस्व त्याग का आदर्श लेकर चलने वाले ब्राह्मण को इस घटना से वास्तविकता का बोध हुआ। उसे अपने लोभ को लेकर पश्चाताप होने लगा। जब तक राजा मंत्री को लेकर आया तब तक ब्राह्मण वहां से जा चुका था।
